अफगानिस्तान (Afghanistan) पर दो दशक बाद फिर से तालिबान (Taliban) का शासन शुरू हो गया है. इस बीच तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद (Zabiullah Mujahid) ने दावा किया है कि वो सालों तक अफगानिस्तान की राजधानी काबुल (Kabul) में अपने विरोधियों की 'नाक' के नीचे ही रहे जो उन्हें 'भूत' की तरह मानते थे.
एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार को दिए इंटरव्यू में मुजाहिद ने कहा, 'उन्हें (अमेरिका और अफगान सेना) लगता था कि मैं हूं ही नहीं.' मुजाहिद ने कहा, 'मैं कई बार उनकी पकड़ में आने से बचा इसलिए वो मानने लगे थे कि 'जबीउल्लाह' कोई काल्पनिक व्यक्ति है. ऐसा कोई व्यक्ति असल में है ही नहीं.'
सालों बाद किसी मीडिया को दिए इंटरव्यू में मुजाहिद ने कहा, 'मुझे लगता है कि इसकी वजह से मुझे काफी मदद मिली. मैं सालों तक काबुल में रहा. हर किसी की नाक के नीचे. मैं देश में हर जगह घूमा. मैं उन फ्रंटलाइन तक भी पहुंचने में कामयाब रहा, जहां तालिबान अपने कामों को अंजाम देता था. ये हमारे विरोधियों के लिए काफी हैरान करने वाला था.'
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मुजाहिद ने कहा कि वो सालों तक इतना बचकर भागा कि अमेरिकी और अफगान सेना मानने लगी कि वो एक 'भूत' हैं. उसने कहा, 'मेरी तलाश में अमेरिकी सेना लोगों से पूछताछ करती थी. पता नहीं उसने कितने दर्जनों ऑपरेशन मुझे ढूंढने के लिए चलाए होंगे. लेकिन मैंने कभी भी अफगानिस्तान छोड़ने के बारे में न सोचा और न ही कोशिश की.'
मुजाहिद ने ये भी माना कि उसने उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान में स्थित हक्कानिया मदरसे से पढ़ाई की है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान यूनिवर्सिटी या 'जिहाद यूनिवर्सिटी' भी कहा जाता है. मुजाहिद के अलावा तालिबान सरकार के आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी, पानी और बिजली मंत्री मुल्ला अब्दुल लतीफ मंसूर, सूचना प्रसारण मंत्री नजीबउल्लाह हक्कानी और उच्च शिक्षा मंत्री अब्दुल बकी हक्कानी भी पाकिस्तान की इसी जिहादी यूनिवर्सिटी से पढ़े हैं.
जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि उसने तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर (Mullah Umar) को कभी नहीं देखा, लेकिन उसने शेख मुल्ला मंसूर और शेख हेब्तुल्लाह के साथ काम किया है.