पाकिस्तान में फिलिस्तीन के राजदूत वलीद अबु अली ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित हाफिज सईद के साथ मंच साझा करके भारत में खलबली मचा दी है. भारत ने पाकिस्तान में फिलिस्तीन के राजदूत वलीद अबु अली के इस कदम पर कड़ा ऐतराज जताया है और इस मामले को फिलिस्तीनी सरकार के सामने उठाए जाने की बात कही है.
यह रैली रावलपिंडी के लियाकत बाग में हुई थी. इस रैली का आयोजन दिफाह-ए-पाकिस्तान काउंसिल ने किया था. पाकिस्तानी पत्रकार उमर कुरैशी ने आतंकी हाफिज सईद और पाकिस्तान में फिलिस्तीन के राजदूत के मंच साझा करने की तस्वीर को ट्वीटर पर शेयर किया है.
भारत और कुलभूषण जाधव के खिलाफ उगला जहरAmbassador of Palestine to Pakistan Waleed Abu Ali attends a large rally organized by the Difah-e-Pakistan Council in Liaquat Bagh in Rawalpindi - seen with JUD chief Hafiz Saeed pic.twitter.com/d8UXLFK8Mm
— omar r quraishi (@omar_quraishi) December 29, 2017
आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक और मुंबई हमले के मास्टरमाइंड आतंकी हाफिज सईद के कार्यक्रम में फिलिस्तीनी राजदूत की मौजूदगी से भारत सरकार ने हैरानी जताई है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा है कि इस मामले को नई दिल्ली में फलस्तीनी राजदूत और फलस्तीनी अधिकारियों के सामने सख्ती से उठाया जाएगा. जानकारी के मुताबिक इस कार्यक्रम में सईद ने भारत, कुलभूषण यादव, कश्मीर और अमेरिका के खिलाफ जहर उगला था. इस रैली में अली ने हाफिज को गले लगाया और बाद में लोगों को संबोधित भी किया.
आतंकी हाफिज सईद के साथ फिलिस्तीनी राजदूत, भारत ने जताया ऐतराज
हाफिज की है आम चुनावों में उतरने की तैयारी
आपको बता दें कि सबूतों के अभाव में नजरबंदी से रिहाई मिलने के बाद से अंतरराष्ट्रीय आतंकी हाफिज सईद पाकिस्तान की राजनीति में आने को बेताब है. पाकिस्तान में 2018 यानी आगले साल आम चुनाव होने हैं. हाफिज ने बीते दो दिसंबर को अपनी नई पार्टी- मिनी मुस्लिम लीग बनाने की घोषणा की थी. राजनीति में आने पर हाफिज को पाकिस्तानी सेना का भी समर्थन मिल रहा है. इसके अलावा, पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ अपने आपको हाफिज सईद का सबसे बड़ा समर्थक बता ही चुके हैं. इससे भारत और अमेरिका की सरकारें भी चिंतित हैं, क्योंकि तमाम प्रतिबंध लगने के बाद हाफिज राजनीति में आकर अपनी इमेज सुधारने और स्वीकार्यता बढ़ाने की कोशिश में है. अमेरिका ने हाफिज सईद पर एक करोड़ रुपये का इनाम भी घोषित किया हुआ है.
भारत ने बरकरार रखी फिलिस्तीन से दोस्ती
भारत और फिलिस्तीन की दोस्ती काफी लंबे समय से रही है और बीते दो दशकों में भारत के इस्राइल की ओर झुकाव के बावजूद दोनों देशों के बीच संबंध खराब नहीं हुए. हाल ही में भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इस्राइल को निराश करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा में येरूशलम को इस्राइल की राजधानी मानने के विरोध में वोट किया था. अमेरिका की चेतावनी के बावजूद इस प्रस्ताव के समर्थन में केवल 9 देशों के वोट पड़े थे और भारत समेत 128 देशों ने इसके खिलाफ वोट किया था. इस वोटिंग से ठीक पहले भारत में फिलिस्तीन के राजदूत अदनान ए अलीहैजा ने घोषणा की थी कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिलिस्तीन का दौरा करने पर सहमति दी है. इस घटनाक्रम से माना जा रहा था कि मौजूदा एनडीए सरकार में इस्राइल से संबंध मजबूत करने के साथ ही भारत ने फिलिस्तीन के साथ दोस्ती की अपनी पुरानी नीति नहीं छोड़ी है.
भारत की विदेश नीति में बड़े बदलाव का साल साबित हुआ 2017
स्वामी ने किया था भारत के ताजा स्टैंड का विरोध
संयुक्त राष्ट्र की महासभा में भारत के इस रुख पर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मोदी सरकार को घेरा था. स्वामी ने कहा था कि यह फैसला भारत के हित में नहीं है और इससे भारत की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा हो गया है. उन्होंने कहा था कि भारत ने हमेशा फिलिस्तीन का समर्थन किया है, जो कश्मीर के मामले में भारत का विरोधी रहा है. इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन और अन्य फोरम में फिलिस्तीन ने भारत का विरोध किया है. स्वामी ने कहा कि फिलिस्तीन का समर्थन करना कांग्रेस की पुरानी नीति है. अमेरिका और इस्रायल के पक्ष में वोट न करके भारत ने बड़ी गलती की है.
येरूशलम: अमेरिका ने सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर किया वीटो
इस्राइल से बेहतर हो रहे हैं भारत के संबंध
भारत और इस्राइल के संबंधों में एनडीए सरकार के पिछले कार्यकाल में संबंध मजबूत होने शुरू हुए थे. 2000 में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने इस्राइल का दौरा किया था. इसके बाद यूपीए के शासनकाल में भले ही राजनीतिक संबंध मजबूत न हुए हों, लेकिन तभी से इस्राइल से भारत के रक्षा और व्यापार संबंध सुधरते गए हैं. मौजूदा एनडीए सरकार में दोनों देशों के बीच संबंध और मजबूत होते गए. भारत ने फिलहाल इस्राइल और फिलिस्तीन दोनों दे्शों से संबंध बनाए रखने की रणनीति अपनाई है. देखना होगा कि एनडीए सरकार दोनों देशों को साधने की रणनीति में किस हद तक सफल हो पाती है.