अमेरिका और ईरान के बीच खींचतान बढ़ती जा रही है. अब अमेरिका की ट्रंप सरकार ने ईरान के विदेश मंत्री पर प्रतिबंध लगा दिया है. पहले से ही खराब चल रहे अमेरिका और ईरान के संबंधों में तल्खी और बढ़ सकती है. अमेरिका के इस फैसले के बाद ईरानी विदेश मंत्री और कूटनीतिक मामलों के प्रमुख जावेद जरीफ भविष्य में वॉशिंगटन और तेहरान के बीच होने वाली किसी भी बातचीत का हिस्सा नहीं बन पाएंगे.
मीडिया को दिए एक बयान में अमेरिका के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि जरीफ ने अब तक ईरान के विदेश मंत्री नहीं बल्की प्रचार मंत्री के तौर पर काम किया है. वहीं, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने जरीफ पर निशाना साधते हुए मिडिल ईस्ट में ईरान की उग्र गतिविधियों में जरीफ की मिलीभगत का आरोप लगाया.
Recently, President @realDonaldTrump sanctioned Iran’s Supreme Leader, who enriched himself at the expense of the Iranian people. Today, the U.S. designated his chief apologist @JZarif. He’s just as complicit in the regime’s outlaw behavior as the rest of @khamenei_ir’s mafia. pic.twitter.com/XhDdqR6rik
— Secretary Pompeo (@SecPompeo) July 31, 2019
पोम्पियो ने एक बयान में कहा कि यह कार्रवाई ईरान को आतंक और ईरानी जनता का शोषण करने के स्रोतों को रोकने की दिशा में एक कदम है. जरीफ पर लगाए गए इस प्रकार के प्रतिबंधों से अमेरिका में उनकी सभी संपत्तियों पर प्रतिबंध लग जाएगा. उनका अमेरिका के किसी भी नागरिक से लेन-देन बंद हो जाएगा. इससे जरीफ को डॉलर पर आधारित अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में परेशानी आएगी.
हालांकि, इसके तुरंत बाद जरीफ ने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर वॉशिंगटन के उन पर लगाए गए प्रतिबंध का मजाक उड़ाते हुए लिखा कि अमेरिकी अधिकार क्षेत्र में उनके पास कोई संपत्ति नहीं है, तो इस तरह के प्रतिबंध से उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
The US' reason for designating me is that I am Iran's "primary spokesperson around the world"
Is the truth really that painful?
It has no effect on me or my family, as I have no property or interests outside of Iran.
Thank you for considering me such a huge threat to your agenda.
— Javad Zarif (@JZarif) July 31, 2019
अमेरिका और ईरान के लगातार बिगड़ते रिश्तों को लेकर दुनियाभर में पहले से ही कई आशंकाएं हैं. खासकर इन दोनों देशों के बीच बढ़ती तल्खी का सीधा असर पूरे मिडिल ईस्ट और दक्षिण एशिया पर पड़ना तय है. मौजूदा हालात में दोनों देशों के रिश्तों में सुधार की गुंजाइश तो न के बराबर ही दिख रही है.