अमेरिका ने सऊदी अरब पर लगाया बड़ा प्रतिबंध हटा लिया है. सोमवार को अमेरिका ने पुष्टि की कि वो सऊदी अरब को आक्रामक हथियारों की बिक्री फिर से शुरू करेगा. यमन के साथ चल रहे सऊदी अरब के युद्ध में मानवाधिकारों पर चिंता जताते हुए अमेरिका ने यह प्रतिबंध लगाया था. हालांकि, अब अमेरिका ने गाजा युद्ध को सुलझाने में सऊदी की भूमिका को देखते हुए उसे बड़ी राहत दी है.
तीन साल पहले यमन में सऊदी हमलों को देखते हुए अमेरिका ने मानवाधिकारों का हवाला देकर उसे आक्रामक हथियारों की बिक्री रोक दी थी. अब प्रतिबंध हटाने के बाद अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि अमेरिका सऊदी अरब को आक्रामक हथियारों की बिक्री वाले समझौते पर दोबारा लौट आएगा.
विदेश विभाग के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने मीडिया से बात करते हुए कहा, 'सऊदी अरब अमेरिका का करीबी रणनीतिक साझेदार बना हुआ है और हम उस साझेदारी को बढ़ाने के लिए तत्पर हैं.'
जो बाइडेन प्रशासन और सऊदी के खट्टे-मीठे रिश्ते
साल 2021 में जो बाइडेन ने अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभालते ही मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर सऊदी को घेरना शुरू कर दिया था. उन्होंने पद संभालने के तुरंत बाद घोषणा की थी कि अमेरिका के पुराने हथियार ग्राहक सऊदी को अब केवल रक्षात्मक हथियार दिए जाएंगे.
बाइडेन ने यह कदन तब उठाया था जब ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों, जिनका यमन के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा है, के खिलाफ सऊदी नेतृत्व वाले हवाई हमलों में बच्चों सहित हजारों नागरिकों के मारे जाने का अनुमान लगाया गया था.
हालांकि, तब से क्षेत्र में काफी बदलाव आया है. संयुक्त राष्ट्र ने, अमेरिका के समर्थन से, 2022 की शुरुआत में यमन में युद्धविराम किया, जो काफी हद तक कायम है.
पटेल ने इसे लेकर कहा, 'संघर्ष विराम के बाद से यमन में एक भी सऊदी हवाई हमला नहीं हुआ है और यमन से सऊदी अरब में सीमा पार से गोलीबारी काफी हद तक बंद हो गई है. सऊदी ने समझौतों की शर्तों को पूरा किया है और हम भी अपने समझौते को पूरा करने के लिए अब तैयार हैं.'
गाजा युद्ध में सऊदी की भूमिका
एक समय जहां सऊदी हूतियों पर हमले कर रहा था. वहीं, अब गाजा युद्ध की वजह से हालात ये हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन और इजरायल जहां यमन में हूतियों के ठिकाने पर हमले कर रहे हैं, सऊदी अरब चुपचाप है.
इजरायल के साथ युद्ध में गाजा में हजारों की संख्या में फिलिस्तीनी मारे जा रहे हैं. हूती फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग लाल सागर में सामान से लदे जहाजों पर मिसाइलें दाग रहे हैं.
इजरायल-हमास युद्ध रोकने के लिए और इसका स्थायी समाधान ढूंढने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कई बार सऊदी की यात्रा की है. ब्लिंकन इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सऊदी इजरायल को मान्यता दे दे.
बदले में क्या चाहता है सऊदी?
सऊदी अरब ने बदले में अमेरिकी सुरक्षा गारंटी, हथियारों की निरंतर सप्लाई की मांग की है. सऊदी की ये भी मांग है कि अगर इजरायल के साथ रिश्ते सामान्य हो जाते हैं तो अमेरिका उसके साथ नागरिक परमाणु समझौता करे.
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी अरब देशों के साथ संबंध सामान्यीकरण समझौते को अपना लक्ष्य मानते हैं. यूएई, जॉर्डन जैसे देश इजरायल को मान्यता दे भी चुके हैं लेकिन सऊदी अरब के साथ यह समझौता करना अमेरिका और इजरायल दोनों के लिए ही टेढ़ी खीर है.
सऊदी अरब का कहना है कि जब तक फिलिस्तीन को एक देश का दर्जा नहीं मिल जाता, वो इजरायल के साथ किसी भी समझौते पर आगे नहीं बढ़ेगा. बाइडेन प्रशासन की इस पर सहमति है लेकिन नेतन्याहू और उनके धुर-दक्षिणपंथी सहयोगियों ने इसका कड़ा विरोध किया है.
ईरान की धमकी के बाद अरब देशों को मनाने में लगा अमेरिका
7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर हमला कर हजारों लोगों को मार दिया जिसके जवाब में इजरायल ने हमास के नियंत्रण वाले गाजा पर हमले शुरू किए जो अब तक जारी हैं. 7 अक्टूबर से पहले, खाड़ी के अरब देश, बड़े पैमाने पर ईरान के साथ दुश्मनी के कारण इजरायल के करीब आ रहे थे.
सीरिया में ईरानी राजनयिक भवन पर इजरायल ने हमला कर दिया था. जवाबी हमले ने ईरान ने भी इजरायल के खिलाफ मिसाइल और ड्रोन से हमला किया जिसे विफल करने में सऊदी ने जॉर्डन और यूएई के साथ मिलकर अमेरिका का साथ दिया था. हालांकि, गाजा में चल रहे इजरायली युद्ध के बाद स्थितियां बदल गई हैं.
गाजा से साथ चल रहे युद्ध के बीच इजरायल ने कुछ समय पहले ही हमास के मुखिया इस्माइल हानिया की हत्या कर दी. हानिया की हत्या ईरान की राजधानी तेहरान में की गई जिसे देखते हुए ईरान ने बदला लेने की धमकी दी है. अपने सहयोगी इजरायल को ऐसी धमकी मिलते देख अमेरिका उसके बचाव में अपने अरब साझेदारों से फिर से समर्थन की उम्मीद कर रहा है.