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सऊदी अरब, मिस्र और इजरायल के साथ अमेरिका गुपचुप कर रहा ये काम

अमेरिका सऊदी अरब, इजरायल और मिस्र के बीच एक शांति वार्ता की गुपचुप तरीके से मध्यस्थता कर रहा है. अमेरिका चाहता है कि सऊदी और इजरायल के बीच संबंध सामान्य हो और दोनों देश आधिकारिक रूप से राजनयिक संबंध स्थापित करें. अगर ये वार्ता सफल होती है तो अमेरिका के लिए बड़ी जीत साबित होगी.

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अमेरिका सऊदी अरब, इजरायल और मिस्र के बीच एक वार्ता की मध्यस्तता कर रहा है (Photo- Reuters)
अमेरिका सऊदी अरब, इजरायल और मिस्र के बीच एक वार्ता की मध्यस्तता कर रहा है (Photo- Reuters)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मध्य-पूर्व के देशों के बीच वार्ता की गुपचुप मध्यस्थता कर रहा अमेरिका
  • सऊदी अरब-इजरायल के संबंध सुधारने की कर रहा कोशिश
  • वार्ता को लेकर जल्द कोई समझौता होने की उम्मीद

अमेरिकी जो बाइडेन प्रशासन सऊदी अरब, इजरायल और मिस्र के बीच वार्ता की गुपचुप तरीके से मध्यस्थता कर रहा है. अगर ये मध्यस्थता सफल रही तो इससे दुश्मन समझे जाने वाले सऊदी अरब और इजरायल के बीच रिश्ते सामान्य हो सकते हैं जो बाइडेन प्रशासन के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी. इस वार्ता का उद्देश्य मिस्र से लाल सागर के दो द्वीपों (तिरान और सनाफिर द्वीप) को सऊदी अरब को वापस करना भी है.

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Axios की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये जानकारी अमेरिका और इजरायल के पांच सूत्रों ने दी है. सूत्रों का कहना है कि अगर मध्य-पूर्व के देशों के बीच अमेरिका की मदद से हो रही ये वार्ता सफल हो जाती है तो बाइडेन प्रशासन के लिए मध्य-पूर्व में विदेश नीति की बड़ी उपलब्धि होगी.

बाइडेन की मध्य-पूर्व यात्रा

अमेरिका और इजरायल के सूत्रों ने कहा है कि शांति समझौता अभी पूरा नहीं हुआ है और संवेदनशील बातचीत जारी है. सूत्रों का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति का कार्यालय चाहता है कि वार्ता को लेकर जून के अंत में राष्ट्रपति बाइडेन की मध्य-पूर्व की आगामी यात्रा से पहले एक समझौता हो जाए.

बताया जा रहा है कि अपनी इस मध्य-पूर्व यात्रा के दौरान बाइडेन सऊदी अरब भी जाएंगे. इस दौरान वो पहली बार सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मिलेंगे.

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व्हाइट हाउस और इजरायल के प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस पर किसी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. सऊदी अरब और मिस्र के दूतावासों ने भी वार्ता को लेकर किए गए सवाल का कोई जवाब नहीं दिया.

वार्ता सफल हुई तो मानी जाएगी अमेरिका की बड़ी जीत

सूत्रों के अनुसार, बाइडेन प्रशासन का मानना ​​​​है कि अगर ये वार्ता सफल होती है तो मध्य-पूर्व के इन देशों के बीच विश्वास पैदा हो सकता है. इससे इजरायल और सऊदी अरब के बीच संबंध सुधर सकते हैं और दोनों देशों के बीच आधिकारिक राजनयिक संबंध स्थापित हो सकता है.

अगर ये वार्ता सफल होती है तो अब्राहम समझौते के बाद मध्य पूर्व में अमेरिकी विदेश नीति की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी. अब्राहम समझौता ट्रम्प प्रशासन के वक्त सम्पन्न हुई थी. इस समझौते में इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मोरक्को के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश की गई थी.

सऊदी अरब ने अब्राहम समझौते का समर्थन किया था. लेकिन उसी समय ये स्पष्ट भी कर दिया था कि वो इजरायल के साथ संबंधों को तब तक सामान्य नहीं करेगा जब तक कि इजरायल फिलिस्तीन के साथ शांति प्रक्रिया को तेजी से आगे नहीं बढ़ाता.

हालिया वार्ता की सफलता से अमेरिका और सऊदी अरब के तनावपूर्ण रिश्तों में भी नरमी आने की उम्मीद है. बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद से ही सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्ते खराब रहे हैं. अमेरिका सऊदी के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर लगातार सवाल उठाता है. सऊदी पत्रकार जमाल खाशोज्जी की हत्या के लिए भी अमेरिका सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को जिम्मेदार ठहराता है. हालांकि, सऊदी इससे इनकार करता रहा है.

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क्या है तिरान और सनाफिर द्वीप का मामला

तिरान और सिनाफिर द्वीप को लेकर मिस्र, सऊदी अरब और इजरायल के बीच तनाव है जिसे अमेरिका हालिया वार्ता के जरिए खत्म करना चाहता है. तिरान और सनाफिर द्वीप, तिरान जलडमरूमध्य को नियंत्रित करते हैं. तिरान जलडमरूमध्य जॉर्डन में अकाबा और इजरायल में इलियट के बंदरगाहों के लिए एक रणनीतिक समुद्री मार्ग है. सऊदी और मिस्र के अधिकारियों का कहना है कि सऊदी अरब ने 1950 में मिस्र को द्वीपों का नियंत्रण दिया था. बाद में 1979 की इजरायल-मिस्र शांति संधि के तहत इन द्वीपों से सेना को हटा लिया गया था.

1979 की इजरायल-मिस्र की शांति संधि के तहत, तिरान और सनाफिर पर किसी देश की सेना नहीं होनी चाहिए. द्वीपों की देखरेख के लिए अमेरिका के नेतृत्व में बहुराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के एक बल की उपस्थिति होनी चाहिए.

मिस्र की संसद ने देश में विरोध के बावजूद, जून 2017 में इन द्वीपों को सऊदी के हवाले करने का फैसला किया. मार्च 2018 में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने द्वीपों की संप्रभुता को वापस सऊदी अरब को देने के एक सौदे को मंजूरी दे दी.

लेकिन 1979 की मिस्र-इजरायल शांति संधि के कारण मिस्र के इस कदम का सऊदी को कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि अब उसे इन द्वीपों को इजरायल से वापस लेने की जरूरत थी. इजरायल ने द्वीपों को वापस सऊदी अरब को देने के लिए अपनी मंजूरी तो दे दी लेकिन इन द्वीपों की देखरेख को लेकर समझौता होना अभी भी बाकी है. इस द्वीप को लेकर तीनों देशों के बीच पेंच उलझा हुआ है जिसे अमेरिका वार्ता के जरिए सुलझाने की कोशिश कर रहा है.

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अमेरिकी और इजराइली सूत्रों ने बताया कि इस वार्ता को व्हाइट हाउस के मध्य-पूर्व कॉऑर्डिनेटर ब्रेट मैकगर्क संभाल रहे हैं. सूत्रों ने कहा कि सऊदी अरब दोनों द्वीपों पर सेना न रखने और सभी जहाजों की आवाजाही की पूर्ण स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए राजी है, लेकिन वो द्वीपों में अमेरिका के नेतृत्व में बहुराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की उपस्थिति को समाप्त करना चाहता है.

सूत्रों के अनुसार, इजराइली अधिकारी बहुराष्ट्रीय बल की उपस्थिति को समाप्त करने पर विचार करने के लिए सहमत हुए हैं लेकिन वो चाहते हैं कि द्वीपों की सुरक्षा के लिए मजबूत वैकल्पिक सुरक्षा व्यवस्था हो. सूत्रों ने कहा कि इजरायल सऊदी अरब के साथ कई मुद्दों पर समझौता करना चाहता है.

हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल को लेकर भी चल रही बातचीत

सूत्रों ने बताया कि इजरायल ने वार्ता के दौरान सऊदी अरब से कहा है कि वो इजराइली एयरलाइंस को सऊदी हवाई क्षेत्र का ज्यादा इस्तेमाल करने दे ताकि भारत, थाईलैंड और चीन के लिए उसकी उड़ानों में कम वक्त लगे.

इजरायल ये भी चाहता है कि सऊदी अरब, इजरायल-सऊदी की सीधी हवाई यात्रा को भी अनुमति दे ताकि उसके यहां के मुसलमान सऊदी के पवित्र शहरों मक्का और मदीना की तीर्थ यात्रा कर सकें. 

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