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भारत को मुस्लिम विरोधी बताने वाले अमेरिका को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए, ये आंकड़े खोलेंगे पोल

अमेरिका की संस्था ने भारत को अपनी रिपोर्ट में मुस्लिम विरोधी बताया. इसके अलावा और भी कई तरह का ज्ञान दिया गया. लेकिन दूसरों को सर्टिफिकेट देने वाला अमेरिका अपने देश का हाल नहीं देख पा रहा है. आइए अमेरिका की धार्मिक स्वतंत्रता पर नजर डालते हैं-

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George Floyd की मौत के बाद प्रदर्शन
George Floyd की मौत के बाद प्रदर्शन
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अमेरिकी लोग मानते- मुस्लिमों के साथ भेदभाव
  • सिख समुदाय के लोगों पर हो रहे लगातार हमले

अमेरिका संस्था यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) ने हाल ही में अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है. उस रिपोर्ट में भारत को लेकर कहा गया है कि यहां पर धार्मिक आधार पर भेदभाव किया जाता है. मुस्लिमों पर अत्याचार होते हैं और हिंदू राष्ट्र बनाने पर जोर रहता है. ये पहली बार नहीं है जब धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर अमेरिका की तरफ से भारत को ऐसा ज्ञान दिया गया हो. पहले भी उसकी अलग-अलग संस्थाएं ऐसे आरोप लगाती रही हैं. हालांकि पूरी दुनिया को धार्मिक आजादी का सर्टिफिकेट बांट रहे अमेरिका में ही धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. खास बात ये है कि सवाल खड़े करने वाली ये एजेंसियां भी अमेरिकी ही हैं.

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अमेरिका में धार्मिक भेदभाव का शिकार मुस्लिम

Pew Research Center ने 2009, 2014, 2017, 2019 और फिर 2021 में एक सर्वे किया था. उस सर्वे में अमेरिकी लोगों से पूछा गया था कि आपकी नजरों में कौन से समुदाय के लोगों को सबसे ज्यादा भेदभाव का शिकार होना पड़ता है, ऐसा कौन सा वर्ग है जिसे धार्मिक आधार पर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इस सर्वे में अमेरिकी लोगों की एक ही राय रही है और वो हैं मुस्लिम. दूसरे समुदाय जैसे कि यहूदी, ईसाई, मॉर्मन के साथ भी समान व्यवहार नहीं किया जाता, लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना मुस्लिम समाज ही करता है. ये हाल तब है जब अमेरिका में मुस्लिमों की तादात पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ गई है. 

शक की निगाह से देखना... हमला करना

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इसी सर्वे के तहत 2017 में अमेरिका में रह रहे कई मुस्लिम लोगों से बात की गई थी. ये वो वक्त था जब वहां पर डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति थे. तब 48 प्रतिशत मुस्लिमों ने कहा था कि अमेरिका में उनके साथ कभी ना कभी धर्म के आधार पर भेदभाव हुआ था. उन लोगों का कहना था कि शक करने से लेकर उन पर हमला करने तक, कई तरह के खतरे महसूस किए गए थे. यहां पर ये भी जानना जरूरी हो जाता है कि जब Pew Research Center ने ये सवाल 2011 में मुस्लिम समुदाय के लोगों से पूछा था, तब ये आकंड़ा 43 फीसदी था, वहीं 2007 में 40 प्रतिशत के करीब रहा. ऐसे में समय के साथ अमेरिका में धार्मिक आधार पर मुस्लिमों के लिए भेदभाव बढ़ गया है.

एयरपोर्ट पर नहीं होता समान व्यवहार

अब ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक सर्वे इस ओर इशारा करता है. Institute for Social Policy and Understanding ने भी साल 2020 में एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी. उस रिपोर्ट के जरिए भी यही जानने का प्रयास हुआ था कि अमेरिका में कौन से धर्म के लोगों के साथ ज्यादा भेदभाव रहता है. तब भी ये बात प्रमुखता से कही गई कि सबसे ज्यादा भेदभाव का शिकार मुस्लिम समाज हो रहा है. उस रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि अमेरिकी एयरपोर्ट पर भी दूसरे धर्मों की तुलना में अगर कोई मुस्लिम शख्स एंट्री लेता है, तो उसे शक की निगाह से देखा जाता है और उसको ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. करीब 44 फीसदी मुस्लिम ऐसा मानते हैं कि एयरपोर्ट पर उनके साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता. वहीं यहूदी समाज के 2 प्रतिशत लोग मानते हैं कि उन्हें भी एयरपोर्ट पर भेदभाव का शिकार होना पड़ता है.

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अस्पताल तक में मुस्लिमों के साथ भेदभाव

इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि करीब 25 प्रतिशत मुस्लिम मानते हैं कि अस्पताल में मिल रहीं स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में भी उनके साथ भेदभाव किया जाता है. 5 फीसदी यहूदी आबादी भी इसी भेदभाव की ओर इशारा करती है. यहां पर ये जानना जरूरी हो जाता है कि USCIRF की रिपोर्ट में ये कहा गया कि कोरोना काल के दौरान भारत के अस्पतालों में मुस्लिम लोगों के साथ भेदभाव हुआ था. आदिवासी और दलित समाज को भी इस लिस्ट में डाल दिया गया था. लेकिन खुद को 'विकसित' देश बताने वाले अमेरिका में अभी भी धर्म के आधार पर भेदभाव जारी है. एक अमेरिकी पोर्टल को दिए इंटरव्यू में थॉमस जेफरसन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आदिल सोलेमान बताते हैं कि उन्हें जब भी बाहर कही ट्रैवल करना होता है, वे एक अच्छी शर्ट पहनना हमेशा याद रखते हैं. उनके मुताबिक उन्हें 'अलग नजरिए' से देखा जाता है, ऐसे में वे खुद को प्रोफेशनल अंदाज में ढालते हैं जिससे इमिग्रेशन डेस्क पर ज्यादा सवाल-जवाब नहीं पूछे जाएं. 

एशियन अमेरिकन के खिलाफ बढ़े हमले

वैसे अमेरिका में सिर्फ मुस्लिम समाज के साथ भेदभाव नहीं हो रहा है, बल्कि 'हेट क्राइम' में भी बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. पहले आपको हेट क्राइम का मतलब बताते हैं. अगर किसी की जाति, धर्म, लिंग देखकर उस पर हमला किया जाए, तो इसे हेट क्राइम की श्रेणी में रखा जाता है. अब इस मामले में अमेरिका का हाल काफी बुरा है. इतना बुरा कि साल 2021 में एशियन अमेरिकन के खिलाफ बड़े स्तर पर हेट क्राइम देखने को मिला. Center for the Study of Hate and Extremism ने एक रिपोर्ट तैयार की है. उस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 में एशियन अमेरिकन के खिलाफ हेट क्राइम में 339 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली. 

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यही नहीं, अमेरिका के सबसे प्रगतिशील शहर माने जाने वाले न्यूयॉर्क,  सेन फ्रांसिस्को और लॉस एंजेलिस में हेट क्राइम की संख्या में भारी उछाल देखने को मिला. अकेले न्यूयॉर्क में साल 2020 की तुलना में 2021 में 343 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल गई. अगर 2020 में न्यूयॉर्क में एशियन अमेरिकन के खिलाफ हेट क्राइम की 30 घटनाएं हुई थीं, तो वही आंकड़ा अगले साल 133 पहुंच गया. इसी तरह सेन फ्रांसिस्को में 2020 में हेट क्राइम की सिर्फ 9 घटनाएं दर्ज हुईं, लेकिन फिर अगले साल वही आंकड़ा 60 पर पहुंच गया, यानी की 657 प्रतिशत की बढ़ोतरी. FBI ने भी जो डेटा इकट्ठा किया है, वो भी बताता है कि एशियन अमेरिकन के खिलाफ 2019 से 2020 के बीच में 77 फीसदी तक हेट क्राइम बढ़ा है. इस सब के ऊपर अमेरिका में श्वेत-अश्वेत की लड़ाई आज भी जारी है. वहां पर गोरे-काले के नाम पर लोगों को जान तक से मार दिया जाता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण साल 2020 में  जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के रूप में देखा जा चुका है.

सिख समुदाय नहीं सुरक्षित

इसके अलावा खुद को सेकुलर बताने वाला अमेरिका आज भी अपने देश में सिख समुदाय को सुरक्षित महसूस नहीं करवा पाया है. मानवाधिकार विशेषज्ञ अमृत कौर आकरे ने खुद अमेरिकी सांसदों को ये दो टूक कहा है कि अमेरिका में सिख समुदाय के खिलाफ धार्मिक आधार पर भेदभाव काफी बढ़ गया है. उनके खिलाफ हेट क्राइम में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है. उनकी मानें तो कई जगहों पर काम से संबंधित जांच की वजह से सिख समुदाय के लोगों को अपने केश तक काटने पड़े हैं, जो उनकी धार्मिक मान्यताओं के प्रतिकूल हैं.

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ऐसे में अब जब अमेरिका की एक संस्था भारत पर धार्मिक स्वतंत्रता के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाती है, जब ये संस्था खुलकर कहती है कि भारत में मुस्लिमों पर हमले होते हैं, वे यहां पर असुरक्षित महसूस करते हैं तो ये जरूरी हो जाता है कि खुद अमेरिका में अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित वातावरण पैदा करने पर फोकस किया जाए.

भारत ने अमेरिका की बोलती बंद की!

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