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अमेरिका में भी असम के NRC का विरोध, बदलाव की मांग

अगस्त 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को एनआरसी अपडेशन की पूरी प्रक्रिया को तीन साल के भीतर पूरा करने का आदेश दिया था.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

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असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) का ड्राफ्ट जारी होने के बाद देश में सियासी घमासान मच गया है. कांग्रेस और टीएमसी समेत अन्य विपक्षी पार्टियां लगातार इस ड्राफ्ट का विरोध कर रही हैं. इन सबके बीच अब इस ड्राफ्ट का विरोध अमेरिका में भी होने लगा है.  

दरअसल, भारतवंशी अमेरिकी मुस्लिमों के एक समूह ने असम में NRC को तत्काल खारिज करने की मांग की है.  समूह का कहना है कि जब तक रजिस्ट्रेशन में बरती गई अनियमितताओं को दूर नहीं किया जाता है तब तक के लिए उसे खारिज कर दिया जाए.  समूह के अनुसार, अनियमितताओं के कारण ही 40 लाख लोगों को शामिल ड्राफ्ट में शामिल नहीं किया जा सका.   

इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) ने एक रिलीज जारी कर कहा, "असम में मताधिकार से वंचित रहने वालों में सबसे ज्यादा वहां निवास करने वाला बांग्ला भाषी मुस्लिम समुदाय प्रभावित हुआ है. इनपर घुसपैठिया होने का आरोप लगाया जाता है जबकि ये लोग भारतीय नागरिक हैं." संगठन ने कहा कि नागरिकता खोने के खतरे का सामना करने वालों में भारत के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के रिश्तेदार भी शामिल हैं.    

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आईएएमसी के प्रेसिडेंट अहसान खान ने कहा, "दरअसल, यह लोकतंत्र को नष्ट करने की कवायद है और साफतौर से यह पक्षपात और भेदभावपूर्ण एजेंडा है.  इस वजह से भारत के पूर्व राष्ट्रपति के रिश्तेदारों को भी ड्राफ्ट से अलग रखा गया है. "

क्या है असम का एनआरसी

असम का एनआरसी असल में साल 1951 में बने एनआरसी को अपडेट करने की ही कवायद है. इसमें उन सभी लोगों को शामिल किया जा रहा है जिनका नाम 1971 से पहले की मतदाता सूची या 1951 के एनआरसी में शामिल है.असल में सभी राज्यों में 1951 में जो एनआरसी तैयार की गई थी, वह जनगणना पर आधारित थी, इसमें लोगों का समुचित वेरिफिकेशन नहीं किया गया था. इस तरह असम में एनआरसी का अपडेशन, वह भी सिटीजनशिप के वेरिफिकेशन के साथ करने की इतनी बड़ी कवायद किसी राज्य में पहली बार हुई है.

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