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कौन हैं अफगान के राष्ट्रपति होने का दावा करने वाले अमरुल्लाह? तालिबान से जानी दुश्मनी

सोवियत संघ और अफगानिस्तान के बीच जब युद्ध हो रहा था, तब अमरुल्लाह सालेह बड़े हो रहे थे. पंजशीर में पैदा हुए अमरुल्ला का लड़कपन इस युद्ध को देखते हुए गुजरा. कम उम्र में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था.

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अमरुल्ला सालेह
अमरुल्ला सालेह
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अमरुल्ला सालेह ने एक जासूस के तौर पर किया है काम
  • अफगानिस्तान के खुफिया तंत्र में अहम भूमिका निभाई
  • अपने जीवन की शुरुआत से तालिबान के खिलाफ लड़े

अमरुल्लाह सालेह. सोवियत संघ और अफगानिस्तान के बीच जब युद्ध हो रहा था, तब अमरुल्लाह सालेह बड़े हो रहे थे. 1972 में पंजशीर में पैदा हुए अमरुल्ला का लड़कपन इस युद्ध को देखते हुए गुजरा. कम उम्र में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था. 

1989 में सोवियत की फौजें अफगानिस्तान से चली गईं. इसके बाद यहां तालिबान मजबूत होता चला गया. हालात बदलने लगे और तालिबान के खिलाफ अहमद शाह महमूद जैसे राजनेता और फौजी खड़े हो गए. अमरुल्लाह ने भी मिलिट्री ट्रेनिंग ली और अहमद शाह मसूद के साथ जुड़ गए. इस तरह अमरुल्ला तालिबान के खिलाफ लड़ाई में शामिल हो गए. यहीं से उनका सियासी और स्पाई वाला सफर शुरू हो गया.

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अमरुल्ला ने पूरी दुनिया को चौंका दिया

आज हालात ये हैं कि जब अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है, अफगान सेना ने सरेंडर कर दिया और राष्ट्रपति अशरफ गनी ने मुल्क छोड़ दिया है तो उपराष्ट्रपति की जिम्मेदारी संभालने वाले अमरुल्ला सालेह ने दावा कर दिया है कि वो अब राष्ट्रपति का कार्यभार संभालेंगे. 

अमरुल्ला के इस ऐलान ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है. वजह साफ है, तालिबान पूरी तरह अफगानिस्तान पर कब्जा जमा चुका है. राष्ट्रपति भवन में अब तालिबान के हथियारशुदा लोग मौजूद हैं. सरकार गठन की तैयारी चल रही है. पूरी दुनिया के सामने बयान दिये जा रहे हैं. देश की संपत्ति, हथियार और अन्य सभी जखीरों पर तालिबान ने कब्जा जमा लिया है. फिर भी अमरुल्ला तालिबान से टकराने को तैयार हैं. 

शुरुआत से ही तालिबान के खिलाफ लड़े हैं अमरुल्ला

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तालिबान की ताकत के सामने अमरुल्ला का यूं हौसला दिखाना चौंकाने वाला जरूर है, लेकिन ये उनके लिए कोई नई बात नहीं है. अमरुल्ला की तालिबान से पुरानी अदावत है. तालिबान का गठन 1994 में हुआ. इस दौरान तालिबान के खिलाफ लड़ाई के लिए जो मिलिट्री फ्रंट का अफगान नॉर्दर्न अलांयस बना, अमरुल्ला उसके सदस्य थे. 1997 में अमरुल्ला को ताजिकिस्तान के अफगान एंबेसी ऑफिस से इंटरनेशनल मामले देखने की जिम्मेदारी दी. इस तरह उन्होंने शुरुआत से ही तालिबान के खिलाफ काम किया. 1999 में अहमद शाह मसूद ने ने अमरुल्ला को ट्रेनिंग के लिए अमेरिका में मिशिगन की यूनिवर्सिटी भेजा. यहां से उन्होंने ऑपरेशंस समेत अन्य तमाम बारीकियां सीखीं. वो एक बेहतर इंटेलिजेंस ऑफिसर बन गए.

लादेन को तलाशने में की अमेरिका की मदद

अमेरिका पर 2001 में जब 9/11 का हमला हुआ तब अमरुल्लाह ने अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की मदद की. 2004 में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान बनने पर अमरुल्ला को NDS यानी नेशनल डायरेक्टोरेट ऑफ सिक्योरिटी का हेड बनाया गया. तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई ने उन्हें ये जिम्मेदारी दी. इसके बाद अमरुल्ला ने ओसामा बिन लादेन की तलाश के लिए काफी काम किया, अलकायदा और तालिबान के आतंकियों के खिलाफ भी काम किया. लादेन का सटीक ठिकाना बताने का श्रेय भी अमरुल्ला को जाता है. एक इंटेलिजेंस ऑफिसर के तौर पर वो काफी कामयाब रहे. CIA से भी उनके काफी अच्छे रिश्ते रहे हैं.

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बीच में उतार-चढ़ाव भी देखने को मिले. एक मौका ऐसा भी आया अफगानिस्तान में एक हमले के बाद सुरक्षा अफसर होने के नाते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. वो करजई सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करते भी नजर आए. 

अशरफ गनी ने बनाया मंत्री

राष्ट्रपति अशरफ गनी ने दिसबंर 2018 में सालेह को अफगानिस्तान का गृह मंत्री बनाया. इसके बाद जनवरी 2019 में उन्हें उपराष्ट्रपति बनाया गया. यानी कभी स्पाई रहे अमीरुल्ला अफगान सरकार में शामिल हो गए और उनकी इस नियुक्ति को भी तालिबान के खिलाफ एक बड़ा कदम माना गया. 

हुए जानलेवा हमले

अमीरुल्ला पर जानलेवा हमले भी किए गए हैं. जुलाई 2019 में तीन आत्मघाती हमलावर काबुल स्थित अमरुल्ला के दफ्तर में घुस गए. उन्होंने खुद को उड़ा लिया. इस हमलें में 20 लोग मारे गए जबकि पचास से ज्यादा घायल हो गए. सालेह को कोई नुकसान नहीं पहुंचा लेकिन उनके भतीजे इस अटैक में मारे गए. यूरोपियन यूनियन ने भी इस हमले की निंदा की थी. 

इसके बाद सितंबर 2020 में उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए उन्हें निशाना बनाया गया. सड़क किनारे एक बम धमाका किया. गनीमत रही कि उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा. लेकिन इस हमले में कई नागरिकों की मौत हो गई. हालांकि, तालिबान ने इस हमले से इनकार किया. हालांकि, सालेह की बहन की हत्या के आरोप तालिबान पर लगते हैं. 

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तालिबान के सामने न झुकने का ऐलान

तालिबान से सालेह की दुश्मनी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने 2009 में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि मैंने अपने परिवार से बोला हुआ है अगर वो मुझे मारते हैं तो किसी से शिकायत मत करना, क्योंकि मैंने उनमें से बहुत लोगों को फख्र के साथ मारा है. 

अब जबकि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा है. अमेरिकी फौज वहां से जा चुकी है. कहीं से भी सैन्य मदद की आस नहीं है. ऐसे हालात में भी अमरुल्ला ने ऐलान किया है कि वो कभी भी तालिबान के सामने नहीं झुकेंगे. सालेह ने कहा है कि मैं कभी भी अपने हीरो अहमद शाह महमूद की विरासत और उनकी आत्मा से दगाबाजी नहीं करूंगा. इस ऐलान के साथ ही उन्होंने खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया है. 


 

 

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