न्यूजीलैंड के बेबी W का मामला चर्चा में है. लगभग 6 महीने के बच्चे को दिल की बीमारी के चलते सर्जरी और खून की जरूरत थी, लेकिन पेरेंट्स ब्लड लेने से मना करने लगे. वे चाहते थे कि शिशु को उसी का खून मिले, जिसने वैक्सीन न ली हो. पेरेंट्स की जिद के कारण बच्चे की जान को खतरा था. आखिरकार कोर्ट के आदेश पर हेल्थ एजेंसी ने उसकी गार्जियनशिप ली और सर्जरी हो सकी.
बच्चा अब स्वस्थ है. लेकिन हर जगह पेरेंट्स की बात हो रही है जो वैक्सीन के इतने खिलाफ थे कि अपने ही बच्चे की जान खतरे में डाल दी. ये एंटी-वैक्सर्स हैं. ऐसे लोग किसी भी तरह की वैक्सीन लेने को गलत मानते हैं.
यहां से चला वैक्सीन के खिलाफ अभियान
18वीं सदी की शुरुआत थी, स्मॉलपॉक्स के खिलाफ टीका बना और लोगों को दिया जाने लगा. ये उस सदी की जानलेवा बीमारियों में से थी, यानी वैक्सीन मिलने पर लोगों में राहत होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. लोग डरे हुए थे कि जैसे ही सीरिंज से लिक्विड भीतर जाएगा, कुछ भयंकर होने लगेगा. वे मानते थे कि वैक्सीन लेना ईश्वर की मर्जी से छेड़खानी करना है. शुरुआत में हल्का-फुल्का विरोध हुआ, फिर आई वो बात, जिसने लोगों की एक पूरी की पूरी जमात खड़ी कर दी, जो वैक्सीन के खिलाफ थी.
डॉक्टरों ने दिया अजीबोगरीब तर्क
ब्रिटिश मेडिकल संस्था रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन के सीनियर सदस्य विलियम रॉली ने साल 1805 में एक पर्चा छपवाया और लंदन में लगवा दिया. पर्चे में वैक्सीन लगाने पर सबसे बड़े खतरे की बात कही गई थी. ये खतरा औरतों की वजह से था. बकौल डॉक्टर रॉली, वैक्सीन लेने वाली महिलाओं में कुछ ऐसे केमिकल बदलाव होंगे कि उनमें सांड से यौन संबंध बनाने की इच्छा जाग जाएगी.
ऐसे दिखेंगे भविष्य के बच्चे
इससे जन्म लेने वाले बच्चे आधे इंसान, आधे पशु दिखने लगेंगे. उनके सिर पर सींगें उग आएंगी और पैरों की जगह खुर होगी. ये बात कई दूसरे डॉक्टर भी दोहरा रहे थे, जिनमें उस दौर के नामी फिजिशियन बेंजमिन मोजले भी शामिल थे.
लंदन से होता हुआ पर्चा पूरे ब्रिटेन में फैल गया
पर्चे पर अंग्रेजी में तो वैक्सीन के इस भयानक साइड-इफैक्ट पर बात थी ही, साथ ही तस्वीरों के जरिए भी दिखाया गया था ताकि पढ़-लिख न पाने वाले भी वैक्सीन से दूर रहें. मोजले और रॉली दोनों मिलकर पूरे देश में वैक्सीन न लेने के लिए सभा करने लगे. इसका असर भी हुआ. लोग वैक्सीन के खिलाफ हो गए और टीका अभियान लंबे समय के लिए ठंडा पड़ा रहा.
मानसिक तौर पर कमजोर होगा शिशु
कुछ सालों बाद जब आधा इंसान-आधा गाय वाली थ्योरी में ज्यादा दम नहीं बचा और लोग वैक्सीन लेने के लिए राजी होने लगे, तभी कुछ नई कंस्पिरेसी उग आई. कहा जाने लगा कि वैक्सीन लेने पर होने वाली संतान ऑटिस्टिक होगी, या फिर किसी भी तरह से चैलेंज्ड रहेगी. कुछ गलतियां वैक्सीन देने वालों से भी हुई, जैसे एक ही सीरिंज का इस्तेमाल करना. इससे भी लोगों में गुस्सा बना रहा.
साल 1853 में वैक्सिनेशन एक्ट के बाद मामला कुछ ठंडा पड़ सका
हालांकि तब एक नई सोच आ गई कि हमारे शरीर पर हमारा अधिकार है, और सरकार इसपर जबर्दस्ती नहीं कर सकती. एंटी-वैक्सिनेशन लीग नाम की संस्था बन गई, जो ऐसे लोगों को भागने में मदद करती, जो टीका नहीं लेना चाहते थे.
वक्त के साथ वैक्सीन्स आती गईं, लेकिन विरोध बना रहा
सत्तर के दशक में डीटीपी का टीका आया, जिसके खिलाफ ब्रिटेन, अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया और एशिया तक खड़े हो गए. यहां की ज्यादातर आबादी टीका लेने से डर रही थी क्योंकि वो मानती थी इससे उनका दिमाग कमजोर हो जाएगा. डीटीपी के खिलाफ फिल्में बनने लगीं, और किताबें तक लिख दी गईं.
अ शॉट इन द डार्क नाम की किताब तब खूब पढ़ी गई
इसमें ऐसे कई दावे थे कि टीका लेने पर दिमाग से लेकर खून की क्वालिटी तक खराब हो जाएगी. लेकिन सबसे ज्यादा डर भावी संतानों में ऑटिज्म को लेकर था कि वैक्सीन ली हुई मां के बच्चे दिमागी तौर पर विकसित नहीं होंगे. इसी दौरान एक और अभियान चला, जिसका नाम था- ग्रीन अवर वैक्सीन. डरे हुए मांग कर रहे थे कि टीके से सारे केमिकल हटा दिए जाएं. हालांकि ये मुमकिन नहीं है वरना टीका असरदार नहीं होगा.
ट्रंप तक रहे टीके के खिलाफ
ये तो हुई लगभग 50 साल पुरानी बात, लेकिन अब भी दुनिया में एंटी-वैक्सर्स की कमी नहीं. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद इस बिरादरी से हैं. याद दिला दें कि पद पर रहने के दौरान उन्होंने कई बार वैक्सीन को ऑटिज्म से जोड़ा था. वे बार-बार कहते रहे कि वैक्सीन भावी पीढ़ी के दिमाग पर असर डालती है. यहां तक कि सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन को कहना पड़ा कि ऑटिज्म का वैक्सीन से कोई संबंध नहीं.
सालभर पहले कोविड वैक्सीन के दौरान भी बहुत से देशों ने उलजुलूल बातें की. ये तक कह दिया गया कि वैक्सीन लेने पर महिलाओं की मूंछें उग आएंगी.
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान टीके को औरतों की बजाए पुरुषों से जोड़ता है
साल 2000 में वहां के एक कट्टरपंथी लीडर फजलुल्लाह ने कह दिया कि पोलियो का टीका एक साजिश है ताकि पाकिस्तानी पुरुष नपुंसक हो जाएं. इसके बाद वहां के लोगों में इसे लेकर इतना डर बैठ गया कि वे टीका देने वालों को मारने-पीटने लगे. कई हेल्थ सेंटरों को आग के हवाले कर दिया गया. यहां तक कि नेशनल इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर को पोलियो टीकाकरण रोकना पड़ा ताकि स्टाफ की जान बचाई जा सके.