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'भारत का प्रभाव अब...', श्रीलंका में वामपंथी राष्ट्रपति आने से खुश हुआ चीन, करने लगा ये प्रोपेगेंडा

श्रीलंका में लेफ्ट पार्टी के नेता अनुरा कुमार दिसानायके नए राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं. इसे लेकर चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स बेहद खुश है. अखबार का कहना है कि क्षेत्र में भारत का प्रभाव कम हो रहा है.

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श्रीलंका में नए राष्ट्रपति के आने से चीन खुश है (Photo- Reuters)
श्रीलंका में नए राष्ट्रपति के आने से चीन खुश है (Photo- Reuters)

श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके ने सोमवार को पद की शपथ ली. दिसानायके देश के पहले लेफ्ट नेता हैं जो इतने शीर्ष पद पहुंचे हैं. उनके सत्ता में आने से श्रीलंका की विदेश नीति में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है. ऐसे अनुमान लगाए जा रहे हैं कि दिसानायके भारत से इतर चीन के साथ अपने रिश्तों को बढ़ाएंगे. ऐसे अनुमान लगाए जा रहे हैं कि चीन के साथ वैचारिक समानता के कारण वो चीन की तरफ झुके हो सकते हैं. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भी अपने एक लेख में कहा था कि दिसानायके चीन के साथ अपने संबंधों को आगे ले जा सकते हैं. 

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चीनी अखबार ने खुश होते हुए ये भी दावा किया था कि दिसानायके के सत्ता में आने से भारत पर श्रीलंका की निर्भरता कम होगी. इस तरह की टिप्पणी करने के बाद ग्लोबल टाइम्स को याद आ रहा है कि भारतीय और पश्चिम की मीडिया ने भारत के प्रति श्रीलंका के संभावति रवैये का विश्लेषण करने में जल्दबाजी कर दी है.

ग्लोबल टाइम्स ने बकायदा भारत के कई मीडिया आउटलेट्स का नाम लेते हुए लिखा कि ये आउटलेट्स लिखने में जल्दबाजी कर रहे हैं कि दिसानायके की पार्टी नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) का 'भारत विरोधी रिकॉर्ड और चीन समर्थक झुकाव' रहा है.

ग्लोबल टाइम्स ने एक अन्य अखबार का नाम लेते हुए आगे लिखा, 'चीन और श्रीलंका के बीच दरार पैदा करने के लिए एक अखबार ने श्रीलंका के कर्ज संकट को मुद्दा बनाया.' अखबार ने दावा किया है कि भारत जहां श्रीलंका को कर्ज से राहत देने के लिए उसे रिस्ट्रक्चर करने की इच्छा रखता है वहीं, चीन को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है.

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चीनी अखबार ने सिचुआन इंटरनेशनल स्टडीज यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर लोंग शिंगचुन के हवाले से लिखा कि 'तथाकथित कर्ज जाल के जरिए चीन-श्रीलंका संबंधों को कमजोर करने की भारत की कोशिश एक महाशक्ति प्रतिस्पर्धा की मानसिकता दिखाती है. यह भारत की क्षेत्रीय आधिपत्य की महत्वाकांक्षा दिखाती है और बताती हैं कि दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव में कमी को लेकर भारत बेहद चिंतित है.'

भारत की Neighbourhood First पॉलिसी पर उगला जहर

भारत अपनी विदेश नीति में पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देता है और यही उसकी Neighbourhood First पॉलिसी है. देश की लगभग सभी सरकारों ने इस नीति का पालन किया है और वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति में भी पड़ोसी देश पहले आते हैं. इस साल जब पीएम मोदी ने तीसरी बार पद की शपथ ली तब इसी नीति के तहत लगभग सभी पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया गया था.

लेकिन चीनी अखबार ने बेतुकी बातें लिखते हुए कहा कि भारत 'इंडिया फर्स्ट की पॉलिसी अपनाता है.

अखबार ने लिखा', 'भारत ने लंबे समय से दक्षिण एशिया को अपने प्रभाव क्षेत्र के रूप में देखा है, और इस क्षेत्र के देशों से "India First" पॉलिसी का पालन करने पर जोर दिया है. हालांकि, इस तरह की आधिपत्यवादी मानसिकता श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान जैसे दक्षिण एशियाई देशों के हितों और विकास की जरूरतों के अनुरूप नहीं है. इन देशों को सबसे ज्यादा जरूरत है खुद को मजबूत बनाने और अपनी अर्थव्यवस्थाओं में सुधार करने की, और चीन के साथ सहयोग निस्संदेह एक अच्छा विकल्प है.'

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ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा कि श्रीलंका चीन के 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (बीआरआई) का स्वागत करने और इसमें शामिल होने वाले पहले देशों में से एक था. बीआरआई के अहम प्रोजेक्ट्स पोर्ट सिटी कोलंबो और हंबनटोटा पोर्ट ने श्रीलंका के आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया है और लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया है. इसे देश की आधुनिकीकरण में सुविधा हुई है. सच तो यह है कि लोग उसी दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं जहां उन्हें भी लाभ हो.'

जब चीनी कर्ज की वजह से डिफॉल्ट हुआ श्रीलंका

चीन ने बीआरआई के तहत श्रीलंका का भारी कर्ज दिया और एक वक्त ऐसा आया कि श्रीलंका चीनी कर्ज के तले दब गया. साल 2022 के आते-आते श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो गया. मई 2022 में श्रीलंका ने घोषणा कर दी कि वो दिवालिया हो गया है और उसे जो कर्ज देने है, फिलहाल नहीं चुका सकता.

श्रीलंका के ऊपर विदेशी कर्ज बढ़कर 51 अरब डॉलर पर पहुंच गया जिसमें सबसे अधिक हिस्सा चीन का था. पैसों की किल्लत को देखते हुए द्वीप देश को सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका में रखा गया अपना आधा गोल्ड रिजर्व बेचना पड़ गया था.

उस दौरान श्रीलंका में महंगाई दर 17 फीसदी को भी पार कर गई थी जिससे आम लोगों की हालत भी खराब हो गई थी. श्रीलंका की स्थिति के लिए कई एक्सपर्ट्स ने चीनी कर्ज को जिम्मेदार बताया था. एक्सपर्ट्स का कहना था कि चीन अपने कर्ज जाल में देशों को फंसाकर उनकी संप्रभुता के साथ खिलवाड़ करता है.

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हालांकि, चीन इन आरोपों से इनकार करता है. चीन का कहना है कि बीआरआई प्रोजेक्ट महज विकास कार्यों के लिए है.

ग्लोबल टाइम्स ने भी अपने पिछले लेख में लिखा था कि श्रीलंका में नए सरकार के आने से वहां बीआरआई के प्रोजेक्ट्स को गति मिलेगी.

'कोई राजनीतिक दल अपनी मर्जी से...'

ग्लोबल टाइम्स ने अपने हालिया लेख में लिखा कि दक्षिण एशिया के देश आधुनिक देशों के रूप में विकसित हुए हैं जिनमें संप्रभु समानता की अवधारणा जड़ जमा रही है.

लेख ने लिखा, 'कोई भी देश भारत के प्रभाव क्षेत्र में रहना स्वीकार नहीं करना चाहता, न ही पड़ोसी देशों में कोई राजनीतिक दल अपनी मर्जी से खुद को भारत के अधीन करना चाहता है. भारत क्षेत्र में अपना और केवल अपना आधिपत्य चाहता है इसके कारण ही श्रीलंका के चुनाव परिणामों को लेकर वो चिंतित है और चीन-श्रीलंका संबंधों को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है.'

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