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ब्रिटेन और अर्जेंटीना की लड़ाई में बीजेपी नेताओं की चर्चा क्यों?

फॉकलैंड द्वीप को लेकर अर्जेंटीना और ब्रिटेन के बीच लंबे समय से विवाद रहा है. फॉकलैंड द्वीप को लेकर अर्जेंटीना की सरकार ने एक कमीशन बनाया है जिसकी पहली बैठक में नई दिल्ली में रविवार को हुई. इस बैठक में अर्जेंटीना के विदेश मंत्री भी शामिल हुए. हालांकि, इस कार्यक्रम में बीजेपी नेताओं की गैरमौजूदगी की चर्चा हो रही है.

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ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (फोटो-रॉयटर्स)
ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (फोटो-रॉयटर्स)

दक्षिण अटलांटिक में फॉकलैंड द्वीप को लेकर ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच 1982 में युद्ध हो चुका है. यह द्वीप ब्रिटेन के नियंत्रण में है लेकिन अर्जेंटीना अपना दावा करता है. अर्जेंटीना कहता है कि 21वीं सदी में उपनिवेश के लिए कोई जगह नहीं है. इस विवाद को सुलझाने के लिए अर्जेंटीना के विदेश मंत्री ने रविवार को नई दिल्ली में एक कैंपेन कमिशन लॉन्च किया.

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इस लॉन्चिंग समारोह में बीजेपी प्रवक्ता शाजिया इल्मी और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु को शामिल होना था. कहा जा रहा है कि ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन के दौरे के बाद बीजेपी इस तरह के कार्यक्रम में अपने नेताओं को भेजने को लेकर असहज थी. सुरेश प्रभु कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए और शाजिया इल्मी भी गईं लेकिन लॉन्चिंग से पहले ही निकल गईं.

सुरेश प्रभु ने ट्विटर पर कहा है कि वह अभी अमेरिका में हैं इसलिए नहीं गए. शाजिया इल्मी ने भी सुरेश प्रभु के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा कि वह भी इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाएंगी.

इस कार्यक्रम में भारत की तरफ से कांग्रेस के सांसद शशि थरूर मौजूद थे. कमीशन के सदस्य शशि थरूर ने उपनिवेशवाद के खिलाफ भारत की भूमिका का जिक्र करते हुए कहा कि भारत फॉकलैंड विवाद का बातचीत के जरिए समाधान निकालने का समर्थन करता है.

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अर्जेंटीना के विदेश मंत्री कैफिरो ने तमाम राजनयिकों की मौजूदगी में कमीशन को लॉन्च किया. उन्होंने क्षेत्रीय विवाद सुलझाने में भारत के ऐतिहासिक सहयोग की सराहना की. उन्होंने कहा कि भारत और अर्जेंटीना के औपनिवेशिक मानसिकता के खिलाफ साझा मूल्य और विचार रहे हैं.

कैफिरो ने कहा कि भारत और अर्जेंटीना के बीच हमेशा से भाईचारा रहा है. उन्होंने ब्रिटेन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि 1982 में हुए फॉकलैंड युद्ध से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक किए जाएं जिससे कई नई और अहम जानकारियां सामने आएंगी.

उन्होंने कहा, "ब्रिटेन ने दक्षिणी अटलांटिक क्षेत्र में परमाणु हथियार लाकर पूरे क्षेत्र को खतरे में डाल दिया था. युद्ध के दौरान ब्रिटेन जो परमाणु हथियार यहां लाया था, वो 20 हिरोशिमा बम के बराबर थे."

कैफिरो ने कहा, हमें उम्मीद है कि भारत सुरक्षा परिषद समेत कई वैश्विक मंचों पर हमें अपना समर्थन देगा. 21वीं सदी में उपनिवेशवाद की कोई जगह नहीं है और हम कमीशन की लॉन्चिंग के मौके पर भारत से मिले समर्थन को लेकर खुश हैं. कमीशन की लॉन्चिंग से पहले अर्जेंटीना के विदेश मंत्री कैफिरो ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भी मुलाकात की थी.

क्या है विवाद?

फॉकलैंड द्वीप दक्षिणी अटलांटिक सागर में स्थित है जिससे अर्जेंटीना की समुद्री सीमा लगती है. इस द्वीप पर अर्जेंटीना अपना दावा करता है और इसे माल्विनस कहता है. अर्जेंटीना दावा करता है कि ब्रिटेन ने द्वीप को 1833 में उससे अवैध तरीके से छीना था. 

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अर्जेंटीना ने 1982 में इस ब्रिटिश उपनिवेश पर हमला कर दिया था जिसके बाद फॉकलैंड युद्ध छिड़ गया. ये युद्ध तीन महीने तक चला जिसमें ब्रिटेन की जीत हुई.

फॉकलैंड द्वीप ब्रिटेन के लिए रणनीतिक रूप से काफी अहम है. दोनों विश्व युद्ध के दौरान भी ब्रिटेन ने इसे मिलिट्री बेस के तौर पर इस्तेमाल किया. 

अर्जेंटीना क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फॉकलैंड द्वीप पर अपनी संप्रभुता के दावे को वैधता दिलाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. चीन ने भी हाल ही में उसके इस दावे का समर्थन किया था.

 
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