पाकिस्तान के आम चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के प्रमुख इमरान खान को फिलहाल देश की ताकतवर सेना का लाडला माना जा रहा है. लेकिन करीब छह साल पहले उन्होंने बयान दिया था कि पाकिस्तान में सेना के दिन अब लद गए हैं.
इमरान की पार्टी PTI ऐसे समय में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है जब उनकी प्रतिद्वंद्वी पार्टियों और कई टिप्पणीकारों का मानना है कि पूर्व क्रिकेटर अब सेना के लाडले बन गए हैं और सेना उनकी मदद के लिए पर्दे के पीछे रहकर काम कर रही है. ऐसे में इमरान के 2012 के बयान और उनके आज के रुख में बड़ा फर्क देखा जा रहा है.
साल 2012 में स्विट्जरलैंड के दावोस शहर में विश्व आर्थिक मंच (WEF) की सालाना बैठक के दौरान न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में इमरान ने कहा था, ‘सेना के दिन लद गए हैं, आप पाकिस्तान में जल्द ही एक सच्चा लोकतंत्र देखेंगे.’
इमरान के इस बयान के बाद जब पाकिस्तान में चुनाव हुए थे तो उनकी पार्टी PTI कुछ ही सीटों पर सिमट गई थी. लेकिन बुधवार हुए चुनाव के बाद सामने आ रहे नतीजों में उनकी पार्टी शानदार प्रदर्शन करती दिख रही है. गौरतलब है कि सेना के बारे में इमरान की राय में भी अब बड़ा बदलाव आ गया है.
इस साल मई में अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में इमरान ने कहा था, ‘यह पाकिस्तान की सेना है, दुश्मन की सेना नहीं है. मैं सेना को अपने साथ लेकर चलूंगा.’ साल 1947 में पाकिस्तान की आजादी के बाद से अब तक लगभग आधे समय वहां सेना का ही शासन रहा है. पाकिस्तान की लोकतांत्रिक तौर पर चुनी गई असैन्य सरकारों में भी सेना का दखल रहा है.
भारत पर बदल लिया रुख
भारत को लेकर भी इमरान की राय में अब बदलाव नजर आता है. साल 2012 में इमरान भारत के साथ बेहतरीन रिश्ते चाहते थे, लेकिन इस बार के चुनावों में उन्होंने भारत पर पाकिस्तानी सेना को कमजोर करने और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलकर साजिश रचने के आरोप लगाए.
मौजूदा चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद इमरान ने कहा कि पाकिस्तान भारत के साथ रिश्ते सुधारने के लिए तैयार है और अगर भारत एक कदम आगे बढ़ाएगा तो वह दो कदम आगे बढ़ाएंगे. उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकारों के कथित हनन का मुद्दा उठाते हुए कहा कि कश्मीरी लोगों को तकलीफ से गुजरना पड़ रहा है.
बातचीत को बताया था रास्ता
साल 2013 में दावोस में एक बार फिर एजेंसी को दिए इंटरव्यू में इमरान ने इस बात पर जोर दिया था कि सेनाएं भारत और पाकिस्तान की द्विपक्षीय समस्याओं का समाधान तलाश पाने में सक्षम नहीं हैं. उन्होंने अफसोस जताया था कि संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाओं से शांति प्रक्रिया पीछे जा रही है. उस वक्त इमरान ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान को अपने दम पर लंबित मुद्दे सुलझाने चाहिए और लगातार बातचीत होनी चाहिए.
इमरान ने कहा था, ‘दुश्मनी भारत और पाकिस्तान के लोगों के हित में नहीं है...आखिरकार समाधान वार्ता की मेज पर ही होना है और मतभेद सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण वार्ता की जरूरत है.' यह पूछे जाने पर कि क्या भारत और पाकिस्तान की सेनाओं को शीर्ष स्तर पर और ज्यादा संपर्क में रहना चाहिए, इस पर उन्होंने कहा था, ‘हमें मजबूत (राजनीतिक) नेतृत्व की जरूरत है. सेना से मसले हल नहीं होने वाले. सेना के लोग राजनीतिक समाधान तलाश पाने में सक्षम नहीं हैं.’
अमेरिका का टिशू पेपर है PAK
इमरान खान ने कहा था, ‘आखिरकार बड़े जनादेश वाले नेता ही दोनों देशों के बीच मुद्दे सुलझा सकते हैं.’उस वक्त इमरान ने कहा था कि अमेरिका, पाकिस्तान का इस्तेमाल ‘टिशू पेपर’ के तौर पर करता रहा है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका को लेकर उनका रवैया कैसा रहता है.
साल 2012 की अपनी दावोस यात्रा में इमरान ने भारतीय व्यापार चैंबरों की ओर से आयोजित समारोहों में हिस्सा लिया था जिनमें भारत के कॉरपोरेट और राजनीतिक जगत के नेताओं ने भी शिरकत की थी. इमरान ने यह भी कहा था कि अपने राजनीतिक सफर में जमात-उद-दावा जैसे संगठनों से बातचीत करने में कुछ भी गलत नहीं है.
पूर्व क्रिकेटर इमरान ने कहा था, ‘अगर मैं उन्हें (चरमपंथियों) मुख्यधारा में वापस लेकर आऊं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है और अगर आप चरमपंथियों का समर्थन करने के बारे में बात करें तो क्या अमेरिका ने तालिबान का समर्थन नहीं किया था?’
सत्ता में आने पर भारत के प्रति नीति के बारे में पूछे जाने पर इमरान ने वादा किया था कि रिश्ते सामान्य बनाने और विश्वास बहाली उपायों के लिए तेज कदम उठाए जाएंगे. अपने हाल के बयान में भी उन्होंने भारत के साथ रिश्ते सुधारने की बात पर जोर दिया है.