अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने चीन का सामना करने के उद्देश्य से एक सुरक्षा साझेदारी की स्थापना की है. इस परियोजना के तहत तीनों देश मिलकर ऑस्ट्रेलिया में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों का निर्माण करेंगे. इस पार्टनरशिप के बाद चीन काफी भड़क गया है. चीन के वॉशिंगटन दूतावास के प्रवक्ता का कहना है कि कुछ देशों को 'शीत युद्ध वाली मानसिकता' के साथ काम करना बंद करना चाहिए.
गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के सहारे संयुक्त रूप से इसकी घोषणा की है. इस प्रोजेक्ट का नाम Aukus है. मॉरिसन ने कहा कि तीनों देशों की टीमें आने वाले डेढ़ साल में एक संयुक्त योजना तैयार करेंगी. इस योजना के तहत ऑस्ट्रेलिया की परमाणु संचालित पनडुब्बी को असेंबल करने का काम किया जाएगा. ऑस्ट्रेलिया दुनिया का सातवां ऐसा देश होगा जिसके पास परमाणु रिएक्टरों द्वारा संचालित पनडुब्बियां होंगी.
ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के इस प्रोजेक्ट के आलोचकों ने चिंता जताते हुए कहा है कि इस समझौते के बाद परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के लूपहोल का फायदा उठाने की कोशिश कुछ देश कर सकते हैं. दरअसल एनपीटी गैर-परमाणु हथियार वाले देशों को परमाणु हथियार संचालित पनडुब्बियों का निर्माण करने की अनुमति देती है लेकिन इससे किसी भी देश के लिए परमाणु हथियार बनाने की संभावना काफी बढ़ जाती है.
एनपीटी का ही करेंगे पालन-ऑस्ट्रेलियन सरकार
एनपीटी के इस लूपहोल का फायदा उठाकर ऑस्ट्रेलिया परमाणु हथियार बना सकता है और अपनी सैन्य क्षमता में इजाफा कर सकता है. हालांकि ऑस्ट्रेलियाई प्रशासन ने लगातार इस बात को दोहराया है कि उनका परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाने को लेकर कोई इरादा नहीं है और वे परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का ही पालन करेंगे. हालांकि कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, ऑस्ट्रेलियाई सरकार का अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर ये कदम भी परमाणु हथियारों के प्रसार को बढ़ावा देने का काम कर सकता है.
कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में परमाणु नीति कार्यक्रम के को-चेयरमैन जेम्स एक्टन ने इस मामले में बात करते हुए कहा कि 'मेरी चिंता ये नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया परमाणु सामग्री का दुरुपयोग करेगा और लूपहोल का फायदा उठाकर परमाणु हथियार बनाने की कोशिश करेगा. मेरी चिंता ये है कि ये एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है उन देशों के लिए जो इस ख़ामी का दुरुपयोग कर सकते हैं. ईरान इस मामले में एक खास उदाहरण है.'