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पाकिस्तान: सियासी और सैन्य नाकामी ही नहीं, जिन्ना की टू नेशन थ्योरी फेल होने की कहानी है 1971 की जंग

1971 की जंग में पाकिस्तान की पराजय का जिन्न इस देश का पीछा नहीं छोड़ रहा है. पाकिस्तानी जनरल इस जंग को राजनीतिक नेतृत्व की नाकामी बता रहे हैं तो राजनीतिक वर्ग इसे सेना की विफलता बता रहा है. लेकिन ये जंग न सिर्फ पाकिस्तान की सैन्य और सियासी हार थी बल्कि जिन्ना के दो राष्ट्र के सिद्धांत की भी फेल होने की कहानी है.

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पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना, (बाएं) पूर्व आर्मी चीफ बाजवा और पाक विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो (फोटो-आजतक)
पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना, (बाएं) पूर्व आर्मी चीफ बाजवा और पाक विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो (फोटो-आजतक)

1971 में भारत के साथ जंग में पाकिस्तान की सेना नाकाम रही? या फिर राजनीतिक नेतृत्व फेल रहा. इस बात को लेकर पाकिस्तान का सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व सीधा सीधा दो धड़ों में बंटा दिखता है. अपने रिटायरमेंट भाषण से पहले बाजवा ने 1971 में पाकिस्तान की शिकस्त को सेना की हार मानने से इनकार कर दिया था और इसे राजनीतिक नाकामी करार दी थी.

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लेकिन पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष और पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने इसे राजनीतिक नाकामी मानने से इनकार कर दिया है. बिलावल भुट्टो ने इस हार को साफ साफ सेना की नाकामी कहा है. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के 55वें स्थापना दिवस पर कराची में एक जलसे को संबोधित करते हुए बिलावल ने इसे भारी सैन्य विफलता कहा है.  

जनरल बाजवा ने 1971 पर क्या क्या झूठ कहा था?

पाकिस्तान के पूर्व आर्मी चीफ जनरल बाजवा ने 23 नवंबर को रावलपिंडी एक कार्यक्रम में कहा था कि 1971 में भारत के साथ हुई जंग में पाकिस्तान की सेना नहीं हारी थी बल्कि ये नाकामी पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व की थी. रिटायरमेंट से पहले भ्रष्टाचार और अपने रिश्तेदारों के लिए माल बटोरने का आरोप झेल रहे बाजवा ने इस जंग की वजह से सेना की छवि पर लगे दाग को मिटाने की कोशिश की. 

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बाजवा ने कहा कि इस जंग में सरेंडर करने वाले पाकिस्तानी अधिकारियों और जवानों की तादाद 92 हजार नहीं बल्कि सिर्फ 34 हजार थी. बाकी लोग सरकार के दूसरे डिपार्टमेंट से जुड़े थे. उन्होंने कहा कि 34 हजार पाकिस्तानी जवानों का मुकाबाला भारत की 2.5 लाख और मुक्ति वाहिनी के 2 लाख ट्रेंड जवानों से हुआ. 

कहने का मतलब यह है कि बाजवा ये संदेश देना चाह रहे थे कि पाकिस्तानी सेना तो बहादुरी से लड़ी लेकिन राजनीतिक नाकामी की वजह से पाकिस्तान जंग हार गया. 

बाजवा के झूठ को बिलावल ने ही काटा

बता दें कि 1971 के युद्ध के बाद बिलावल के नाना जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. युद्ध के दौरान भी उनकी पार्टी पीपीपी की पाकिस्तान की राजनीति में अहम भूमिका रही. इसलिए उनके नाती बिलावल भुट्टो ने मौका मिलते ही बाजवा के इस बयान को खारिज कर दिया कि 1971 की हार के लिए देश का राजनीतिक नेतृत्व जिम्मेदार था. 

बाजवा की शेखी सही या नियाजी के आंसू? 1971 की जंग पर फर्जी इतिहास पढ़ा गए PAK आर्मी चीफ 

जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी और पाकिस्तान के पूर्व पीएम बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल ने कहा कि जब जुल्फिकार अली भुट्टो ने सरकार संभाली तो लोग टूट चुके थे और सारी उम्मीदें खो चुके थे. लेकिन जुल्फीकार अली भुट्टो ने पाकिस्तान का पुनर्निर्माण किया, लोगों के विश्वास को बहाल किया, और अंत में हमारे 90,000 सैनिकों को वापस घर ले आए जिन्हें 'सैन्य विफलता' के कारण युद्धबंदी बना दिया गया था.

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फील्ड मार्शल मानेक शॉ 71 जंग के दौरान सैन्य कमांडरों के साथ चर्चा करते हुए (फाइल फोटो)

बिलावल ने कहा कि जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन 90,000 सैनिकों को उनके परिवारों से मिलाया. और यह सब उम्मीद की राजनीति, एकता और समावेश की राजनीति के कारण संभव हुआ है.  

बता दें कि 1971 की जंग में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पाकिस्तान भारत से बुरी तरह हारा इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के लगभग 93 हजार सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया था. भारत-पाकिस्तान के बीच शिमला समझौते के बाद इन पाकिस्तानी सैनिकों को भारत ने छोड़ा.  

13 दिनों की लड़ाई में घुटनों पर आया पाकिस्तान

बता दें कि आजादी के बाद जब देश दो हिस्सों में बंट गया तो आज का बांग्लादेश और तत्कालीन पूर्वी पाक पाकिस्तान के हिस्से में चला गया. 1947 से 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान लड़खड़ाता हुआ किसी तरह पाकिस्तान के साथ बना रहा. इस बीच 1971 में पूरे पाकिस्तान में चुनाव हुए. इस चुनाव पूर्वी पाकिस्तान की पार्टी आवामी लीग शेख मुजीबुर्रहमान सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इस पार्टी को 313 में 167 सीटें मिली. लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं को ये गंवारा नहीं हुआ कि पूर्वी पाकिस्तान का एक बंगाली मुसलमान पूरे पाकिस्तान पर शासन करे.  

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आवामी लीग को पाकिस्तान में सरकार बनाने नहीं दिया गया. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पूर्वी पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगा दिया गया. इसके बाद मौजूदा बांग्लादेश में पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह की आग भड़क उठी. भारत दोनों से पाकिस्तान का पड़ोसी था. पूर्वा पाकिस्तान से लाखों लोग भारत की सीमा में आने लगे. इस बीच 3  दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ भड़काने वाली कार्रवाई की और कई ठिकानों पर हमला कर दिया, भारत ने भी जवाबी कार्रवाई की और युद्ध की घोषणा कर दी. जनरल सैम मानेकशॉ के शानदार नेतृत्व में मात्र 13 दिनों में भारत ने पाकिस्तान को धूल चटा दिया. 

1971 में फेल हो गया जन्ना को दो राष्ट्र का सिद्धांत 

पाकिस्तान का सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व जो भी दावा करे दरअसल 1971 में बांग्लादेश बनने के साथ ही पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना का दो राष्ट्र का सिद्धांत फेल हो गया. 

जंग हारने के बाद समर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करते पाकिस्तान के जनरल नियाजी (फाइल फोटो )

बता दें कि जब देश को आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था तो जिन्ना हिन्दुस्तान के मुसलमानों के लिए अलग मुल्क की मांग को लेकर अंग्रेजों और गांधी के सामने अड़ गए. जिन्ना का तर्क था कि मुस्लिमों और हिन्दुओं की अलग सांस्कृतिक पहचान है, उनकी भाषा साहित्य और संस्कृति अलग है और वे एक साथ नहीं रह सकते हैं, इसलिए भारतीय उप महाद्वीप के उन क्षेत्रों को मिलाकर मुसलमानों के लिए एक अलग देश बनाया जाए जहां उनकी आबादी ज्यादा है.  

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कई महीनों तक देश में साम्प्रदायिक तनाव रहा. कांग्रेस पहले जिन्ना की इस मांग को मानने के लिए तैयार नहीं थी. लेकिन जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की और देश के कई स्थानों में हिन्दू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़क गए.  

आखिरकार ब्रिटिश सरकार को जिन्ना की मांग के आगे झुकना पड़ा. कांग्रेस भी मजबूरी में देश के बंटवारे पर सहमत हो गई. इस तरह से 1947 में भारत की आजादी के साथ ही पाकिस्तान का जन्म हुआ. इस पाकिस्तान में मौजूदा बांग्लादेश भी पूर्वी पाकिस्तान के रूप में शामिल था. 

लेकिन बांग्ला बोलने वाले मुसलमानों को जिन्ना का पाकिस्तान और पंजाबी जुबान वाले मुसलमान कभी स्वीकार नहीं कर सके.  उनके साथ हमेशा भेदभाव होता रहा. जिन्ना का तो 1948 में ही इंतकाल हो गया, लेकिन उनके पाकिस्तान में पूर्वी पाकिस्तान के लोग प्रताड़ित होने लगे. एक तरह से पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान की कॉलोनी में तब्दील हो रहा था. 

जिन्ना का ये तर्क कि मजहबी पहचान के आधार पर पाकिस्तान एक देश बनकर आगे बढ़ेगा, धीरे धीरे फेल होने लगा. 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के नेता शेख मुजीबुर्ररहमान को बहुमत के बाद भी जब सरकार नहीं बनाने दिया गया तो पूर्वी पाकिस्तान में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी और देखते ही देखते जिन्ना का दो राष्ट्र का सिद्धांत धराशायी हो गया. इस दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान में खूब अत्याचार किए, इस युद्ध में पाकिस्तान सैनिकों ने रेप को हथियार की तरह इस्तेमाल किया. एक रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान सैनिकों ने 3 लाख बांग्लाभाषी महिलाओं के साथ रेप किया. 

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