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भारत, अमेरिका, रूस और चीन... छोटे से बांग्लादेश के चुनाव में क्यों दिलचस्पी ले रहे सुपरपावर देश

युद्ध की जमीन से 1971 में जन्मे बांग्लादेश का 52 सालों का इतिहास किसी से छिपा नहीं है. संघर्षों की दहलीज पार कर इस मुल्क की अर्थव्यवस्था 400 अरब डॉलर को पार कर गई है. बांग्लादेश आज आर्थिक और भूराजनीतिक रूप से ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां दुनिया के कई कद्दावर देश उसकी तरफ कदम बढ़ा रहे हैं. 

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बांग्लादेश के संसदीय चुनाव
बांग्लादेश के संसदीय चुनाव

17 करोड़ की आबादी वाले मुल्क बांग्लादेश में आज आम चुनाव हो रहे हैं. एक तरफ शेख हसीना ने रिकॉर्ड चौथी बार सत्ता में आने का दमखम लगा दिया है. वहीं, मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने बायकॉट का बिगुल बजा रखा है. इस बीच हिंसा से जूझ रहे बांग्लादेश के इन चुनावों पर दुनियाभर की नजरें टिकी हैं.

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भारत और चीन ही नहीं बल्कि रूस से लेकर अमेरिका तक की दिलचस्पी बांग्लादेश के चुनाव में बनी हुई है. लेकिन बांग्लादेश के चुनाव में इन सुपरपावर देशों की इतनी दिलचस्पी की वजह क्या है? इसका जवाब जानने के लिए इन देशों के हितों को समझने की जरूरत है.

युद्ध की जमीन से 1971 में जन्मे बांग्लादेश का 52 सालों का इतिहास किसी से छिपा नहीं है. संघर्षों की दहलीज पार कर इस मुल्क की अर्थव्यवस्था 400 अरब डॉलर को पार कर गई है. बांग्लादेश आज आर्थिक और भूराजनीतिक रूप से ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां दुनिया के कई कद्दावर देश उसकी तरफ कदम बढ़ा रहे हैं. 

भारत के लिए कितना जरूरी है बांग्लादेश?

जब भारत अपने पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश की तरफ देखता है, तो इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि 1996 से 2001 तक और फिर 2009 से लगातार भारत को बांग्लादेश की सुरक्षा एजेंसियों से सहयोग मिला है. बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने अपने देश में भारत विरोधी गतिविधियों पर लगाम लगाने के प्रयास किए हैं.

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बांग्लादेश चुनाव के नतीजों का यकीनन भारत के साथ उसके संबंधों पर असर पड़ने वाला है. प्रधानमंत्री शेख हसीना की अगुवाई में 14 पार्टियों का गठबंधन विपक्षी दल बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ खड़ा है. इसे एक तरह से विचारों की जंग कहा जा सकता है. 

बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार को लंबे समय से भारत का समर्थन मिला है. इसकी वजह है कि शेख हसीना की अवामी लीग सरकार देश में चरमपंथी और कट्टरपंथी तत्वों पर लगाम लगाने में काफी हद तक कामयाब रही है.

कहा जा रहा है कि अगर विपक्षी पार्टियों विशेष रूप से इस्लामिक पार्टियां सत्ता में आती है तो बांग्लादेश में अराजकता फैल सकती है और इसका भारत के हितों पर भी असर पड़ सकता है. यही वजह है कि भारत चाहता है कि अवामी लीग एक बार फिर चुनाव जीतकर सत्ता में वापसी करे. 

मोदी और शेख हसीना की गोल्डन पार्टनरशिप

भारत और बांग्लादेश सिर्फ पड़ोसी मुल्क ही नहीं है बल्कि गहरे पार्टनर्स भी हैं. शेख हसीना जब 2022 में भारत दौरे पर आई थीं. उन्होंने कहा था कि हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने हमारी आजादी में कितना बड़ा योगदान दिया है. वह इससे पहले भी भारत को बांग्लादेश का टेस्टेड फ्रेंड (परखा हुआ दोस्त) बता चुकी हैं. 

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भारत भी अपने पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा संबंधी हितों के लिए बांग्लादेश पर भरोसा करता है. यही वजह भी है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा और घुसपैठ करने वाले जिहादी संगठनों पर बांग्लादेश समय-समय पर चाबुक चलाता रहा है. 

ऐसे में कह सकते हैं कि भारत और बांग्लादेश के हित एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. एक तरफ जहां पूर्वोत्तर के राज्यों की सुरक्षा और जिहादी संगठनों पर नकेल कसने के लिए भारत को बांग्लादेश की जरूरत है. मोदी सरकार की 'लुक ईस्ट' और 'एक्ट ईस्ट' पॉलिसी के लिए भी बांग्लादेश बहुत जरूरी है. इन नीतियों में क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, डिजिटिल इंटीग्रेशन, व्यापार, निवेश और एनर्जी कोलेबोरेशन शामिल हैं. वहीं, बांग्लादेश के लिए भी भारत के मायने बहुत हैं. भारत ने रक्षा आयात के लिए बांग्लादेश को 50 करोड़ डॉलर का ऋण भी दिया है. 

बांग्लादेश पर आंख गड़ाए बैठा है अमेरिका

बांग्लादेश के चुनाव पर अमेरिका की पैनी नजर है. अमेरिका अक्सर शेख हसीना सरकार पर भ्रष्टाचार और लोकतंत्र का गला घोंटने के गंभीर आरोप लगाते रहा है. अमेरिका मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का लगातार समर्थन कर शेख हसीना सरकार का आड़े हाथों लेता रहा है.

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, ढाका में अमेरिकी दूतावास विपक्ष के लिए जमीन तलाशने में जुटा हुआ है. बांग्लादेश के अर्धसैनिक बल रैपिड एक्शन बटालियन का कहना है कि दिसंबर 2021 से ही अमेरिका एक तरह से शेख हसीना पर लगातार दबाव बना रहा है. इसी कड़ी में पिछले साल अमेरिका ने विशेष रूप से बांग्लादेश के आला अधिकारियों, नेताओं और न्यायपालिका से जुड़े लोगों के लिए वीजा पर प्रतिबंध लगा दिए थे.  

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राष्ट्रपति बाइडेन ने 2021 और 2023 में 'डेमोक्रेसी समिट' से बांग्लादेश को कथित तौर पर जानबूझकर बाहर भी रखा था. कहा गया कि इसके लिए बांग्लादेश की आंतरिक स्थिति को जिम्मेदार ठहराया गया था. 

लेकिन बांग्लादेश पर अमेरिका इतना सख्त क्यों?

बांग्लादेश पर दबाव से अमेरिका के अपने हित जुड़े हुए हैं. इंडो पैसिफिक में बांग्लादेश का अपना एक स्थान है. यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि इंडो पैसिफिक में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को कम करने के लिए अमेरिका पूरा जोर लगा रहा है. लेकिन चीन के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव में बांग्लादेश की दिलचस्पी अमेरिका को रास नहीं आ रही. बांग्लादेश 2016 में चीन की इस परियोजना से जुड़ा था. 

जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा है बांग्लादेश

चीन ने हाल के सालों में बांग्लादेश के साथ बेहद करीबी रिश्ते बनाए हैं. इन संबंधों की बदौलत बांग्लादेश को ऐसे समय में 'पदमा ब्रिज' के लिए कर्ज मिला, जब वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक और इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक ने अपने हाथ पीछे खींच लिए थे.

चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में साझेदार होने के अलावा चीन एक तरह से बांग्लदेश की कई बड़ी परियोजनाओं की फंडिंग भी कर रहा है, जिनमें सड़क, सुरंग, रेलवे और पावर प्लांट शामिल हैं. इसके साथ ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बांग्लादेश को 20 अरब डॉलर के कर्ज का वादा भी किया है. 

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चीन ने हाल ही में बांग्लादेश को दो पनडुब्बियां भी बेची हैं. इसे उसकी पनडुब्बी डिप्लोमेसी का हिस्सा बताया जा रहा है, जो भारत के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है. 

क्या अमेरिका का विरोध है बांग्लादेश चुनाव में रूस की दिलचस्पी की वजह?

रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव पिछले साल सितंबर में बांग्लादेश दौरे पर गए थे. उनका यह दौरा ऐसे समय पर हुआ था, जब अमेरिका और यूरोपीय संघ एक तरह से बांग्लादेश सरकार पर निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने का दबाव बना रहे थे. 

फॉरेन पॉलिसी की रिपोर्ट के मुताबिक, यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अमेरिका अपनी 'गवर्मेंट चेंज' की अघोषित पॉलिसी के जरिए अस्थिर देशों में सरकार बदलने की मंशा रखता है. ऐसे में रूस विरोधस्वरूप अमेरिका के खिलाफ खड़ा नजर आता है. यही वजह है कि जब अमेरिका ने बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी के सुर में सुर मिलाते हुए शेख हसीना सरकार पर निशाना साधा तो रूस एक तरह से बांग्लादेश की सत्तारूढ़ सरकार के पाले में खड़ा नजर आया.

बांग्लादेश के पहले न्यूक्लियर पावर प्लांट के पीछे रूस का हाथ

हालांकि, बांग्लादेश से रूस की बढ़ रही नजदीकियों की एक वजह यूरेनियम भी है. रूस कुछ समय से बांग्लादेश को यूरेनियम की सप्लाई कर रहा है. 

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पिछले साल जून में रूसी यूरेनियम की पहली खेप बांग्लादेश पहुंची थी. बांग्लादेश के रूपपुर में 2400 मेगावॉट का न्यूक्लियर पावर प्लांट तैयार किया जा रहा है. यह बांग्लादेश का पहला न्यूक्लियर पावर प्लांट है. इस पावर प्लांट को रूस की परमाणु एजेंसी रोसएटॉम ही तैयार कर रही है. इस पावर प्लांट से 1.5 करोड़ घरों को बिजली सप्लाई होगी. इसके लिए लगभग 11 अरब डॉलर का कर्ज भी रूस ने ही दिया है. 

बंगाल की खाड़ी है अलादीन का चिराग

बांग्लादेश की स्ट्रैटेजिक लोकेशन भी है. इसके दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है, जिसे विश्व की सबसे बड़े खाड़ी भी कहा जाता है. बंगाल की खाड़ी समुद्री कम्युनिकेशन का बहुत अहम हिस्सा है. यह चीन, जापान और कोरिया को मिडिल ईस्ट और अफ्रीका से जोड़ता है. ये सब वो समुद्री रास्ता है, जहां से बड़ा कारोबार होता है. ऐसे समय में जब Sea-Politics का प्रभुत्व बढ़ा है, बंगाल की खाड़ी बांग्लादेश का चिराग साबित हो रही है.

क्या है शेख हसीना का स्मार्ट बांग्लादेश?

शेख हसीना का वादा है कि 2041 तक बांग्लादेश को स्मार्ट राष्ट्र बनाना है. उन्होंने 2030 तक युवाओं के लिए 1.5 करोड़ नौकरियों के सृजन का भी वादा किया है. अवामी लाग ने स्मार्ट बांग्लादेश के लिए 11 प्राथमिकताएं तय की हैं जिनमें एक आधुनिक, तकनीक युक्त देश का निर्माण करना और देश के हेल्थकेयर सेक्टर को आधुनिक बनाना है. 

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बांग्लादेश में शेख हसीना के चुनावी वादों, मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी के बायकॉट और 48 घंटे की हड़ताल और हिंसा की खबरों के बीच रविवार को देश में आम चुनाव हो रहे हैं. जिस पर पूरी दुनिया की नजरें हैं. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इन चुनावों से आगे की पॉलिटिक्स और जियोपॉलिटिक्स कैसे प्रभावित होती है.

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