पिछले दिनों बांग्लादेश (Bangladesh) में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद से शेख हसीना (Sheikh Hasina) को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. देश के संस्थापक और शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान प्रदर्शनकारियों के गुस्से का शिकार हो रहे हैं. मूर्तियां, चित्र, प्रतिमाएं और बैंक नोट यानी बांग्लादेश को आजादी दिलाने वाले शख्स को दर्शाती हों, वो लोगों की आंखों में चुभ रही हैं. हाल ही में हुई चौंकाने वाली घटना में, बांग्लादेश के राष्ट्रपति के कार्यालय से मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटा दी गई. यह मुहम्मद यूनुस की कार्यवाहक सरकार द्वारा छात्र नेताओं के आगे झुकने का एक उदाहरण था.
साल 1971 में मुजीबुर रहमान की रहनुमाई में बांग्लादेश ने पाकिस्तान से आजादी हासिल की. अब 1971 बांग्लादेशियों के लिए एक विवादास्पद साल बन गया है.
हसीना के जाने के बाद कितना बदला बांग्लादेश?
साल 1971 बांग्लादेशी समाज में एक दरार बन चुका है, जबकि बड़ी तादाद में लोगों ने पाकिस्तानी नियंत्रण को खत्म करने के लिए लड़ाई लड़ी, आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस्लामाबाद और उसके दमनकारी तंत्र का समर्थन करता रहा.
हसीना के भागने पर मजबूर होने के बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान, मोहम्मद अली जिन्ना और उर्दू की तरफ आकर्षित हुआ, जिसके थोपे जाने से उसने खुद को मुक्त कराने के लिए संघर्ष किया था. रविवार को, बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शनों के पीछे "मास्टरमाइंड" के रूप में पेश किए गए सलाहकार महफूज आलम ने कहा कि बंगभवन के दरबार हॉल से मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटा दी गई है.
इस घटना से कई बांग्लादेशियों में हैरानी और आक्रोश है. यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने भी कहा कि मुजीब की तस्वीर नहीं हटाई जानी चाहिए थी. BNP देश में मुख्य विपक्षी पार्टी है.
राष्ट्रपति कार्यालय से मुजीब की तस्वीर हटाने का काम कार्यवाहक सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के "रीसेट बटन दबाने" के आह्वान के मुताबिक नजर आता है. अंतरिम सरकार ने मुजीब की जयंती और मौत की वर्षगांठ पर नेशनल हॉलिडे खत्म कर दिया है और करेंसी नोटों पर से उनका चेहरा हटाने के लिए डिजाइन बदल दिया है.
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मुजीब की तस्वीर हटाने का ऐलान
मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार के स्पेशल असिस्टेंट महफूज आलम ने कहा, "यह शर्म की बात है कि वे 5 अगस्त के बाद बंगभवन से उनकी (शेख मुजीबुर्रहमान की) तस्वीरें नहीं हटा पाए." उन्होंने रविवार को फेसबुक पर लिखा, "1971 के बाद के फासीवादी शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर दरबार हॉल से हटा दी गई है. माफी चाहता हूं, लेकिन जब तक लोगों की जुलाई की भावना जिंदा रहेगी, तब तक वे कहीं नहीं दिखेंगे."
क्या दबाव में काम कर रही यूनुस सरकार?
मुजीब की तस्वीर को हटाने की वजह मुमकिन है कि रविवार को दरबार हॉल में शपथ लेने वाले तीन नए सलाहकारों की तस्वीरें थीं, जिनकी बैकग्राउंड में 'बंगबंधु' की तस्वीर थी. भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के संयोजक हसनत अब्दुल्ला ने अंतरिम सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, "हम पूरा दिन अवामी लीग की आलोचना करते हुए और 'मुजीब चले जाओ' चिल्लाते हुए बिताएंगे, जबकि वे मुजीब की तस्वीर अपने पीछे लटकाएंगे और अपनी शपथ पढ़ेंगे."
भारत के सरकारी ब्रॉडकास्टर दूरदर्शन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हसनत अब्दुल्ला के नेतृत्व वाले भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन अंतरिम सरकार के नए सलाहकारों की नियुक्ति के खिलाफ पूरे बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, जिसमें शेख हसीना के शासन के दौरान उनकी भूमिका पर सवाल उठाए गए थे.
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प्रदर्शनकारी छात्रों ने सलाहकार के रूप में नियुक्त किए गए उन लोगों को तत्काल हटाने की मांग की, जिन्हें उन्होंने "फासीवादियों का सहयोगी" बताया, और इसे "छात्रों, नागरिकों और श्रमिकों का मजाक" बताया. हसनत अब्दुल्ला ने नाराजगी जताते हुए कहा, "छात्रों ने आजादी की लड़ाई के दौरान अपना खून बहाया, फिर भी ये नियुक्तियां हमसे सलाह किए बिना की गईं."
महफूज आलम उन तीन नियुक्तियों में से एक थे, जिन्होंने रविवार को सलाहकार पद की शपथ ली.