बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन के बांग्लादेश से निर्वासन हुए 30 साल गुजर चुके हैं. लेकिन बांग्लादेश का समाज उनकी चर्चित किताब 'लज्जा' के भय से अबतक नहीं उबर सका है.
ढाका में हुड़दंगियों के एक समूह ने एक बुक स्टॉल पर धावा बोल दिया. यहां पर तसलीमा नसरीन की किताबें बिक रही थीं.
बीडीन्यूज24 की रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना सोमवार को अमर एकुशी पुस्तक मेले में पब्लिशिंग हाउस सब्यसाची प्रोकाशोनी के स्टॉल पर हुई.
बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार ने इस घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं. और इसे अमर्यादित आचरण कहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह घटना मेले के 10वें दिन हुई, जब “तौहीदी जनता” के बैनर तले एक समूह ने निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन की पुस्तकों के प्रदर्शन को लेकर सुहरावर्दी उद्यान में सब्यसाची प्रोकाशोनी के स्टॉल पर धावा बोल दिया.
इस ग्रुप ने पब्लिशर को घेर लिया और नारेबाजी करने लगा. इसके बाद पुलिस को दखल देना पड़ा. पुलिस सुरक्षा के लिहाज से सब्यसाची के प्रकाशक शताब्दी वोदो को कंट्रोल रूम में ले गई, ताकि कानून व्यस्था कायम की जा सके.
हालांकि प्रदर्शनकारियों के हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को ही घेर लिया. इस दौरान जबर्दस्त टेंशन का माहौल रहा.
इस घटना की व्यापक आलोचना के बाद, मुख्य सलाहकार यूनुस ने सोमवार शाम को अधिकारियों को आदेश दिया कि वे जिम्मेदार लोगों को न्याय के कठघरे में लाया जाए. मुख्य सलाहकार कार्यालय ने एक बयान में कहा, "इस तरह का अमर्यादित व्यवहार नागरिकों के अधिकारों और बांग्लादेश के कानूनों दोनों का उल्लंघन करता है."
बांग्ला अकादमी ने इस घटना की जांच करने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई है. ये कमेटी तीन दिनों में अपनी रिपोर्ट देगी.
इस घटना को "अवांछनीय" बताते हुए अकादमी ने कहा कि निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए समिति का गठन किया गया है.
घटना के बाद से सब्यसाची स्टॉल नंबर 128 बंद है. यानी कि यहां तसलीमा नसरीन के पुस्तकों की बिक्री नहीं हो पा रही है.
हालांकि बांग्ला अकादमी का कहना है कि उन्होंने किसी स्टॉल को बंद नहीं किया है.
सोशल मीडिया पर चल रहे वीडियो में इस्लामी पोशाक पहने कुछ लोग स्टॉल के सामने भीड़ लगाए हुए हैं और अंदर मौजूद एक व्यक्ति को कान पकड़कर माफ़ी मांगने के लिए मजबूर कर रहे हैं.
बता दें कि 1990 के दशक की शुरुआत में नसरीन के लेखन को आलोचना और समालोचना दोनों मिली. पाखंड और कट्टरवाद को उजागर करने वाले उनके लेखन ने उनके देश के रूढ़िवादी मौलवियों को भी नाराजा कर दिया. इसके बाद उनके खिलाफ ‘फ़तवा’ जारी कर दिया गया.
तसलीमा को धमकियां मिलने लगीं फिर उन्हें यूरोप और अमेरिका भागने पर मजबूर होना पड़ा.
1994 में बांग्लादेश से निकाले जाने के बाद वह 2004 से (2008 से 2010 को छोड़कर) भारत में रह रही हैं.
जुलाई 2024 में उनका भारत में रहने का परमिट समाप्त हो गया था. इसके बाद क्टूबर 2024 में, भारत ने उनके परमिट को एक और साल के लिए बढ़ा दिया.