लाहौर पुलिस को 1928 में एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या के मामले में दर्ज एफआईआर में शहीद-ए-आजम भगत सिंह का नाम नहीं मिला है. भगत सिंह को फांसी दिए जाने के 83 साल बाद मामले में महान स्वतंत्रता सेनानी की बेगुनाही को साबित करने के लिए यह बड़ा प्रोत्साहन है.
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष याचिकाकर्ता इम्तियाज राशिद कुरैशी ने याचिका दायर की थी, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुर के खिलाफ तत्कालीन एसएसपी जॉन पी सैंडर्स की हत्या के मामले में दर्ज एफआईआर की असली कॉपी मांगी गई थी.
भगत सिंह को सैंडर्स की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी और महज 23 साल की उम्र में 1931 में उन्हें लाहौर के शादमान चौक पर फांसी दी गई थी. उन्हें फांसी दिए जाने के आठ दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद लाहौर पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर अनारकली थाने के रिकॉर्ड की गहन छानबीन की और सैंडर्स हत्याकांड की एफआईआर ढूंढ़ने में कामयाब रही. उर्दू में लिखी एफआईआर अनारकली थाने में 17 दिसंबर 1928 को शाम को 4:30 बजे दो अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज की गई थी.
अनारकली थाने का एक पुलिस अधिकारी मामले में शिकायतकर्ता था. शिकायतकर्ता सह प्रत्यक्षदर्शी ने कहा कि जिस व्यक्ति का उसने पीछा किया 'वह पांच फुट पांच इंच लंबा था, हिंदू चेहरा, छोटी मूंछें और दुबली पतली और मजबूत काया थी. वह सफेद रंग का पायजामा और भूरे रंग की कमीज और काले रंग की छोटी क्रिस्टी जैसी टोपी पहने था.'
मामला आईपीसी की धारा 302, 120 और 109 के तहत दर्ज किया गया था. लाहौर पुलिस की विधिक शाखा के एक निरीक्षक ने अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश (लाहौर) तारिक महमूद जारगाम को सीलबंद लिफाफे में एफआईआर की असली कॉपी सौंपी.
एफआईआर की एक कॉपी प्रेस ट्रस्ट के पास भी उपलब्ध है. कोर्ट ने कुरैशी को एफआईआर की एक कॉपी सौंपी. कुरैशी ने कहा कि भगत सिंह के मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधिकरण के विशेष न्यायाधीशों ने मामले के 450 गवाहों को सुने बिना उन्हें मौत की सजा सुनाई. उन्होंने बताया कि भगत सिंह के वकीलों को उनसे जिरह का अवसर नहीं दिया गया.
कुरैशी ने लाहौर हाई कोर्ट में भी एक याचिका दायर की है जिसमें भगत सिंह मामले को दोबारा खोलने की मांग की गई है. उन्होंने कहा, ‘मैं सैंडर्स मामले में भगत सिंह की बेगुनाही को स्थापित करना चाहता हूं.’ लाहौर हाई कोर्ट ने मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा है.