रूस में आयोजित होने वाले ब्रिक्स (BRICS) शिखर सम्मेलन में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) हिस्सा नहीं लेंगे. रूसी राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से इसकी जानकारी दी गई है. रूस ने बताया कि क्राउन प्रिंस की जगह शिखर सम्मेलन में सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल-सउद हिस्सा लेंगे. शिखर सम्मेलन 22-24 अक्टूबर के बीच रूस के कजान शहर में आयोजित हो रहा है.
ब्रिक्स ब्राजील, रूस, भारत चीन और दक्षिण अफ्रीका का एक गुट है जिसमें इसी साल की शुरुआत में इथोपिया, ईरान, मिस्र, और संयुक्त अरब अमीरात आदि देश शामिल हुए हैं.
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विदेश नीति सहयोगी यूरी उशाकोव ने कहा कि रूस के कजान शहर में होने वाले सम्मेलन में 10 ब्रिक्स सदस्यों में से 9 देश अपने राष्ट्राध्यक्षों को बैठक के लिए भेज रहे हैं, सऊदी अरब अपने विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान को भेजेगा.
हालांकि, उन्होंने ये नहीं बताया कि सऊदी क्राउन प्रिंस एमबीएस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए क्यों नहीं आ रहे हैं. पिछले महीने रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए रूस ने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस को निमंत्रण भेजा है.
जनवरी में समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दो सूत्रों ने बताया था कि सऊदी ब्रिक्स समूह में शामिल होने को लेकर काफी सोच विचार कर रहा था.
एक सूत्र ने बताया था कि गुट में शामिल होने से सऊदी को काफी फायदा है क्योंकि ब्रिक्स के सदस्य देश भारत और चीन सऊदी अरब के अहम व्यापारिक साझेदार हैं. फरवरी में एक सऊदी अधिकारी ने बताया था कि किंगडम में ब्लॉक में शामिल होने के निमंत्रण को अभी तक स्वीकार नहीं किया है और वो अभी भी ब्रिक्स में शामिल होने को लेकर सोच-विचार कर रहा है.
क्या अमेरिकी दबाव में है सऊदी अरब?
सऊदी अरब अमेरिका का पारंपरिक दोस्त रहा है. लेकिन हाल के सालों में किंगडम की दोस्ती चीन के साथ मजबूत हुई है. सऊदी अरब की चिंता है कि अमेरिका धीरे-धीरे गल्फ की सुरक्षा पर कम ध्यान दे रहा है और इसीलिए वह चीन समेत बाकी देशों के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.
नइफ अरब यूनिवर्सिटी फॉर सिक्योरिटी साइंसेज में सिक्योरिटी रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर जनरल ने रॉयटर्स से कहा, 'सऊदी अरब के लिए भले ही ब्रिक्स में शामिल होना कई तरह से फायदेमंद है लेकिन उसे देखना होगा कि बाकी महाशक्तियों के साथ उसके संबंधों पर इसका कैसा असर पड़ेगा. सऊदी अरब सभी शक्तिशाली देशों के साथ अपने रिश्तों में एक संतुलन बनाकर चल रहा है और वह यह संदेश बिल्कुल नहीं देना चाहता है कि वह किसी एक की तरफ झुका हुआ है.'
उशाकोव का कहना है कि पश्चिमी देश कई देशों पर दबाव डाल रहे हैं कि वो ब्रिक्स में शामिल न हों. साथ ही उन्होंने कहा कि ब्रिक्स एक ऐसा गुट है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि ब्रिक्स के सदस्य देशों की कुल जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का 45% हिस्सा है, समूह वैश्विक तेल उत्पादन का 40% तेल उत्पादन करता है और वैश्विक व्यापार के एक चौथाई व्यापार के लिए जिम्मेदार है.
BRICS पहले BRIC था और इस टर्म को Goldman Sachs के अर्थशास्त्री जिम ओ नील ने 2001 में विश्व की उभरती हुई चार अर्थव्यवस्थाओं के लिए इस्तेमाल किया था. यह टर्म ब्राजील, रूस, भारत और चीन के लिए इस्तेमाल करते हुए उन्होंने कहा था कि आने वाले आधी सदी में ये देश पश्चिम की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को पछाड़ देंगे.
साल 2009 में चारों देशों ने मिलकर BRIC समूह बनाया और अगले ही साल दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने से गुट का नाम BRICS हो गया.