कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का राजनीतिक भविष्य अनिश्चितता से घिरा हुआ है. उनकी अपनी ही पार्टी में उनका विरोध हो रहा है और उनसे लिबरल पार्टी की कमान छोड़ने की अपील की जा रही है. आम चुनाव से पहले वह बड़ी दुविधा में घिर गए हैं और सिख मतदाताओं को साधने के लिए हर संभव जतन कर रहे हैं, माना जा रहा है कि भारत के साथ भी उनका टशन इन्हीं रणनीतियों का हिस्सा है.
पिछले हफ्ते ही जस्टिन ट्रूडो 2019 और 2021 के कैनेडियन चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप की जांच कर रही समिति के सामने पेश हुए थे, जहां उन्होंने विदेशी ताकतों द्वारा चुनावों को प्रभावित करने की कोशिशों के आरोपों का सामना किया था. यह दोनों चुनाव ट्रूडो की अगुवाई में लिबरल पार्टी ऑफ कैनेडा ने ही जीते थे.
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मसलन, ट्रूडो के आरोप जिस लेवल के थे, उस हिसाब से चुनाव में ऐसा कोई प्रभाव नहीं हुआ था और विदेशी ताकतों पर उनके दावे अब तक झूठे साबित हुए हैं. यह दावे हालांकि, शुरुआती रिपोर्ट में किया गया है, लेकिन ट्रूडो के इन आरोपों पर एक कंप्लीट रिपोर्ट इस साल के आखिरी तक जारी किए जाने की उम्मीद है.
चुनाव का दौर, भारत के साथ तनाव
जस्टिन ट्रूडो के दावे और आरोपों से कनाडा और भारत के रिश्ते सबसे बुरे दौर में हैं. उन्होंने खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की जांच के संबंध में भारतीय राजनयिकों को "पर्सन ऑफ इंटरेस्ट" के रूप में नामित किया है. इसके बाद भारत ने कनाडाई हाई कमिश्नर समेत उसके छह डिप्लोमेट्स को निष्कासित कर दिया.
आलम ये है कि, जस्टिन ट्रूडो के आरोपों और दावों को लेकर कैनेडियन फॉरेन इंटरफेरेंस कमिशन ने इसी साल मई में चीन, रूस, ईरान, भारत और पाकिस्तान को 2019 और 2021 के चुनावों में हस्तक्षेप की कोशिश करने वाले देशों के रूप में लिस्ट किया था. हालांकि, रिपोर्ट में चीन को "प्रमुख अपराधी" के रूप में नामित किया था, लेकिन फिर भी ट्रूडो की अगुवाई वाली लिबरल पार्टी ने दोनों चुनाव जीते थे.
चुनाव हस्तक्षेप की जांच में त्रुटियां
जस्टिन ट्रूडो ने शुरुआत में विदेशी हस्तक्षेप की जांच के लिए कमीशन स्थापित करने का विरोध किया था. हालांकि, "विदेशी हस्तक्षेप के सबूतों के लिए लगातार संकेत" और "कनाडाई खुफिया एजेंसियों की मीडिया में लीक करने की एक सीरीज" ने उन्हें जांच आयोग स्थापित करने के लिए मजबूर कर दिया. इस जांच से खुलासा हुआ कि जस्टिन ट्रूडो और उनके सीनियर अधिकारियों ने कनाडाई खुफिया और डायसपोरा रिपोर्ट को दबाने की भी कोशिश की थी.
चीन का खतरा, लेकिन निशाना भारत पर
कैनेडियन खुफिया सेवा (CSIS) ने विदेशी हस्तक्षेप आयोग को बताया कि 2019 और 2021 के चुनावों में चीनी सरकार ने "गुप्त और धोखाधड़ी से" हस्तक्षेप किया. हालांकि चीन को सबसे बड़ा खतरा माना गया था, लेकिन इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि भारतीय "एजेंट" ने भी कुछ चुनाव क्षेत्रों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की थी.
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बेचैन चीन को लेकर, ट्रूडो की सरकार पर दबाव बढ़ गया है. जब ट्रूडो विदेशी हस्तक्षेप आयोग के सामने आए, तब यह सवाल उठे कि खालिस्तानी आतंकवादी की हत्या के मामले में भारत पर नए सिरे से आरोप लगाना कहीं ध्यान भटकाने की कोशिश तो नहीं है? क्या यह भारत को बलि का बकरा बनाने की एक चाल है ताकि चीन को बचाया जा सके?