फरवरी 2018 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो एक हफ्ते के लिए भारत के दौरे पर आए थे. छोटे से छोटे मुल्क के प्रधानमंत्री के पास इतना वक्त नहीं होता कि वो किसी एक देश के दौरे में अपना सात दिन दे. कनाडा तो क्षेत्रफल के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. तब कहा गया कि जस्टिन ट्रूडो दुनिया के उन प्रधानमंत्रियों में से हैं जिनके पास अथाह समय है. वैश्विक स्तर पर कनाडा के प्रधानमंत्री की वो हैसियत नहीं है कि वो कुछ कहे तो उसको पूरी दुनिया सुने. कनाडा का न तो संयुक्त राष्ट्र में कोई दबदबा है और न ही सैन्य कारोबार में.
ट्रूडो के सात दिवसीय दौरे को मोदी सरकार ने बहुत तवज्जो नहीं दी थी. ऐसा लगा कि जस्टिन ट्रूडो भारत में पर्यटन पर आए हैं और बिल्कुल खामोशी के साथ एक हफ्ते तक घूमते रहे.
जब ट्रूडो का भारत दौरा रहा गुमनाम
जस्टिन ट्रूडो जब 17 फरवरी 2018 को नई दिल्ली पहुंचे तो उनका कोई हाई प्रोफाइल स्वागत नहीं हुआ.
पीएम मोदी ने अपने कृषि मंत्री को ट्रूडो के स्वागत के लिए भेजा था. जब भी कोई नेता भारत का दौरा करता है, मोदी ट्विटर पर भी उसका स्वागत करते हैं लेकिन ट्रूडो के दौरे के वक्त मोदी ने कोई ट्वीट नहीं किया.
ट्रूडो का बाकी दौरा भी इसी तरह गुमनाम रहा. ट्रूडो परिवार संग आगरा में ताजमहल देखने गए लेकिन वहां उनके स्वागत के लिए ना तो कोई मुख्यमंत्री पहुंचा और ना ही कोई जूनियर मंत्री. जिला अधिकारियों ने ही ट्रूडो को ताजमहल घुमाया. ट्रूडो मोदी के गृहराज्य गुजरात भी गए लेकिन यहां भी वो अकेले-अकेले ही घूमते रहे.
I was about Xav's age when I first visited the Taj Mahal almost 35 years ago... and it's amazing to be back with him & the family on Day 1 of our trip to India. pic.twitter.com/EN6VnkYBU2
— Justin Trudeau (@JustinTrudeau) February 18, 2018
खालिस्तानी अलगाववादियों से ट्रूडो की सहानुभूति
ट्रूडो का यह दौरा काफी विवादित रहा. इसी दौरे में 20 फरवरी 2018 को मुंबई में ट्रूडो एक इवेंट में शामिल हुए. इस इवेंट की गेस्ट लिस्ट में जसपाल सिंह अटवाल का भी नाम था. जसपाल सिंह अटवाल खालिस्तानी अलगाववादी रहे हैं. वो कनाडा के नागरिक हैं और उन्होंने 1986 में पंजाब के कैबिनेट मंत्री रहे मलकिअत सिंह सिद्धू पर कनाडा के वैंकूवर शहर में गोलीबारी की थी.
मलकिअत सिंह को गोली लगी लेकिन उनकी जान बच गई थी. इस मामले में जसपाल अटवाल को हत्या की कोशिश के लिए दोषी ठहराया गया था और 20 साल की कैद हुई थी. तब मलकिअत सिंह एक पारिवारिक कार्यक्रम में शाामिल होने के लिए कनाडा गए थे. पांच साल बाद मलकिअत सिंह की हत्या पंजाब में सिख अलगाववादियों ने ही कर दी थी.
किसान आंदोलन पर कनाडाई पीएम के बयान पर भारत की कड़ी आपत्ति
उसी जसपाल अटवाल को ट्रू़डो के कार्यक्रम में गेस्ट बनकर आना भारत के लिए चिढ़ाने वाला था. अटवाल कई तस्वीरों में ट्रूडो की पत्नी के साथ भी नजर आए थे. बाद में अटवाल ने इसे लेकर माफी मांगी थी कि उनकी वजह से कनाडा के पीएम को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी.
भारत की हमेशा से शिकायत रही है कि कनाडा में रह रहे सिख अलगाववादियों को लेकर वहां की सरकार कड़ा कदम नहीं उठाती है. भारत सरकार ने कई बार कनाडा को स्पष्ट किया है कि वो सिख अलगाववादियों से दूरी बनाकर रखे और भारत की एकता व संप्रभुता का सम्मान करे. लेकिन कनाडा भारत की इस मांग को लेकर बहुत गंभीर नहीं दिखता है.
ट्रूडो की सिख वोट बैंक की राजनीति
मंगलवार को किसानों के आंदोलन पर ट्रूडो के बयान पर भारत में काफी विवाद हुआ. सरकार ने ट्रूडो के बयान को खारिज करते हुए कड़ी आपत्ति जताई तो सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई. कुछ लोगों ने समर्थन किया तो ज्यादातर लोगों ने यही कहा कि ट्रूडो सिख वोट बैंक की राजनीति चमकाने के लिए भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी कर रहे हैं. ट्रूडो ने कहा था कि भारत में किसानों के चल रहे आंदोलन पर सरकार के रुख से वो चिंतित है और कनाडा शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का समर्थन करता है. कनाडा की राजनीति में ट्रूडो की लिबरल पार्टी, कन्जरवेटिव पार्टी और जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी तीनों के लिए सिख वोट बैंक मायने रखता है. 3.6 करोड़ की आबादी वाले कनाडा में पांच लाख के करीब सिख हैं.
मोदी और ट्रूडो में दूरी की वजह कहीं 33 साल पुराना ये किस्सा तो नहीं
सिखों के प्रति उदारता के कारण कनाडाई पीएम को मजाक में जस्टिन 'सिंह' ट्रूडो भी कहा जाता है. कनाडा में खालिस्तान विद्रोही ग्रुप सक्रिय रहा है और जस्टिन ट्रूडो पर वैसे समूहों से सहानुभूति रखने के आरोप लगते हैं. यहां तक कि ट्रूडो टोरंटो में एक अतिवादी गुरुद्वारे की ओर से आयोजित कराई गई खालसा दिवस की परेड में भी शामिल हो चुके हैं. कनाडा के कुछ गुरुद्वारों में भारतीय राजदूतों की एंट्री तक बैन है.
ट्रूडो की कैबिनेट में सिखों का दबदबा
साल 2015 में जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि भारत की कैबिनेट से ज्यादा सिख उनकी कैबिनेट में हैं. तब ट्रूडो की कैबिनेट में चार सिख मंत्री थे. ट्रूडो पर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी ट्रूडो पर कनाडाई सिख अलगाववादियों के साथ सहानुभूति रखने का आरोप लगा चुके हैं. जब ट्रूडो भारत आए तो चारों सिख मंत्री भी उनके साथ थे. अमरिंदर सिंह ने ट्रूडो के रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन से मुलाकात करने से इनकार कर दिया था. कनाडा के प्रधानमंत्री भी अपने मंत्रियों की तीखी आलोचना की वजह से नाराज थे और उन्होंने अपने दौरे में अमरिंदर सिंह से मुलाकात नहीं की थी.
कनाडा की कुल आबादी में 5.6 फीसदी लोग भारतीय मूल के हैं. इनकी आबादी 19 लाख है. कनाडा की कैबिनेट में भी कई भारतीय मूल के लोग शामिल हैं. भारतीय मूल की अनीता आनंद जस्टिन ट्रूडो की कैबिनेट में हैं और वो हिंदू हैं. इसके बावजूद दोनों देशों के रिश्तों में गर्मजोशी नहीं है. 2015 के अप्रैल महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कनाडा के दौरे पर गए थे. मोदी का ये दौरा 42 सालों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री का कनाडा का पहला दौरा था. इसी से पता चलता है कि कनाडा भारत के लिए कितना मायने रखता है.
दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते भी नहीं हैं मजबूत
द्विपक्षीय रिश्तों में किसी देश से कितनी गर्मजोशी है, यह उस पर निर्भर करता है कि दोनों देशों के बीच कारोबार कितने का है. इस लिहाज से देखें तो कनाडा और भारत दोनों एक दूसरे के लिए बहुत मायने नहीं रखते. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2018-19 में कनाडा और भारत के बीच का द्विपक्षीय कारोबार महज 6.3 अरब डॉलर का था. जाहिर है कि यह कारोबार अमेरिका, चीन और खाड़ी के देशों की तुलना में कुछ भी नहीं है. मोदी ने अपने अब तक के कार्यकाल में चीन, अमेरिका और खाड़ी के देशों के सबसे ज्यादा दौरे किए हैं. इन देशों से तुलना में कनाडा कहीं नहीं ठहरता है.