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'भारत गए तो शर्मिंदगी उठानी पड़ी...', ट्रूडो के इस्तीफे के बाद क्या बोल रहा कनाडाई मीडिया?

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. इसके साथ ही उन्होंने अपनी सत्ताधारी लिबरल पार्टी के शीर्ष नेता का पद भी छोड़ दिया है. पार्टी को अब नए नेता का चुनाव करना होगा और नए नेता के चुने जाने तक जस्टिन ट्रूडो ही कनाडा के प्रधानमंत्री बने रहेंगे. जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे देने के बाद से कनाडा की स्थानीय मीडिया में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं.

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फोटो- जस्टिन ट्रूडो
फोटो- जस्टिन ट्रूडो

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. इसके साथ ही उन्होंने अपनी सत्ताधारी लिबरल पार्टी के शीर्ष नेता का पद भी छोड़ दिया है. पार्टी को अब नए नेता का चुनाव करना होगा और नए नेता के चुने जाने तक जस्टिन ट्रूडो ही कनाडा के प्रधानमंत्री बने रहेंगे. पिछले काफी समय से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी ही पार्टी में आंतरिक लड़ाइयों से घिरे हुए थे. कनाडा की बिगड़ती अर्थव्यवस्था ने भी जस्टिन ट्रूडो के विरोधियों को मौका दिया हुआ था. 

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हाल ही में जस्टिन ट्रूडो की कैबिनेट के मंत्रियों ने इस्तीफा देना शुरू कर दिया था. जस्टिन ट्रूडो को उस समय सबसे बड़ा झटका लगा था जब सरकार में उनकी करीबी कही जाने वाली उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने भी इस्तीफा दे दिया था.

सोमवार को जस्टिन ट्रूडो ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री पद छोड़ने की घोषणा की. इस दौरान उन्होंने जो भाषण दिया, उसको लेकर कनाडा की स्थानीय मीडिया में अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. इसमें कई अखबारों ने ट्रूडो की विदेश नीति के मोर्चे पर भी कड़ी आलोचना की है और भारत के साथ संबंध खराब करने को लेकर घेरा है.  

ट्रूडो ने अपने कार्यकाल में बिगाड़ लिए भारत और चीन से संबंध

द ग्लोब एंड मेल में छपे एक आर्टिकल में प्रोफेसर टर्नर बल लिखते हैं कि जस्टिन ट्रूडो ने सरकार और अपनी परंपरा से नियंत्रण खो दिया है. यह इसलिए हुआ क्योंकि वह स्वीकार नहीं करना चाहते थे कि उनकी सरकार अगले चुनावों में हार की ओर बढ़ रही है. 

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आर्टिकल में जस्टिन ट्रूडो को लेकर कहा गया कि उन्होंने सत्ता में आने के बाद जो कहा, वह सिर्फ देश ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ठीक से पूरा नहीं कर पाए.

साल 2015 में जब जस्टिन ट्रूडो सत्ता में आए तो उन्होंने यूएन सुरक्षा परिषद में जगह न बनाने पर पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर की जमकर आलोचना की थी लेकिन वह इस मामले में खुद भी कुछ नहीं कर पाए. विरोधियों ने चीन को लेकर भी ट्रूडो की विदेश नीति को अनुभवहीन करार दिया. उनका कहना था कि ट्रूडो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कनाडा विरोधी और आक्रामक विदेश नीति को समझने में नाकाम रहे.

अखबार ने लिखा, "ट्रूडो की साल 2018 में भारत की आधिकारिक यात्रा भी खूब चर्चा में रही जब वह भारत में कई दिनों तक घूमते रहे, अपने परिवार के साथ भारतीय परिधान पहन फोटो खिंचवाते हुए नजर आए. ट्रूडो की इस यात्रा के दौरान भारत में जो अनदेखी हुई, उसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया में शर्मनाक बताया गया."

ट्रूडो कनाडा में खालिस्तानियों को सपोर्ट करते रहे हैं जिसको लेकर भारत सरकार लगातार आपत्ति जताती रही है.

आर्टिकल में कहा गया कि ट्रूडो के कार्यकाल के दौरान ही पिछले कुछ सालों में कनाडा के भारत और चीन से लगातार संबंध खराब ही हुए हैं. कुछ सालों पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक बड़ी डील कनाडा के साथ करने की तैयारी में थे लेकिन कनाडा में टेक कंपनी हुआवै की एक महिला अधिकारी की गिरफ्तारी के बाद यह डील नहीं हो पाई.

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इसी तरह कनाडा ने भारत पर भी आतंरिक मामलों में दखलअंदाजी के आरोप लगाते हुए संबंध खराब कर लिए. दोनों देशों से संबंध इतने बिगड़े कि भारत और चीन ने अपने राजनायिक अधिकारियों को भी राजधानी ओटावा से वापस बुला लिया है.

इस्तीफा बेशक दिया लेकिन सत्ता शायद अभी चाहते हैं ट्रूडो 

कनाडा के स्थानीय अखबार नेशनल पोस्ट में राजनीतिक विश्लेषक ताशा खैरिद्दीन का एक लेख छपा है जिसमें उन्होंने ट्रूडो के इस्तीफा देते समय दिए हुए भाषण पर सवाल उठाया है. ताशा कहती हैं कि ट्रूडो ने इस्तीफा तो दे दिया है लेकिन क्या पता इसके पीछे उनकी मंशा आगे भी सत्ता में रहने की हो. 

राजनीतिक विश्लेषक ताशा आगे लिखती हैं कि जस्टिन ट्रूडो ने जिस तरह से भाषण दिया है और गवर्नर से 24 मार्च तक संसद को स्थगित करने के लिए कहा है, इससे लगता है कि उन्होंने अपनी पार्टी को फिर से संगठित होने का समय दे दिया है और विपक्ष और मतदाताओं को फंसा दिया है. अब अगले ढाई महीने तक अविश्वास मत और चुनाव का कोई मौका नहीं होगा. ताशा ने कहा कि ऐसा भी हो सकता है कि आगे चुनाव हो और जस्टिन ट्रूडो ही सत्ता में बने रहें.

वहीं ताशा ने लेख में आगे कहा कि ट्रूडो का सत्ता से बाहर जाना उनकी नहीं बल्कि पार्टी नेताओं की गलती है, क्योंकि ट्रूडो ने अपनी परेशानियों का दोष पूरी तरह से पार्टी और दूसरों पर मढ़ दिया है. लेख में आगे कहा गया कि ट्रूडो ने भाषण में खुद को फाइटर बताया और कहा कि यह साफ हो गया है कि उन्हें अब आंतरिक लड़ाइयों को लड़ना होगा. इसके बाद उन्होंने अपने भाषण में पूर्व वित्त मंत्री फ्रीलैंड से लेकर अन्य पार्टियों पर भी दोष मढ़ दिया.

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इस्तीफा देकर जस्टिन ट्रूडो ने वही किया जो वह करना चाहते थे 

स्थानीय अखबर 'द स्टार' में जस्टिन ट्रूडो को लेकर छपे एक आर्टिकल में ओटावा बेस्ड कम्युनिकेशन प्रोफेशनल क्रेग स्टीनबर्ग कहते हैं कि, ''उनका भाषण बहुत शानदार नहीं था. लेकिन मुझे लगता है कि उन्होंने वही किया जो उन्हें करना था. जाहिर है कि यह फैसला वह नहीं चाहते होंगे लेकिन मेरा मानना है कि उनकी राजनीतिक चतुराई है कि उनका उत्तराधिकारी चाहे कोई भी हो, उन्होंने वास्तव में उस पर कोई बोझ नहीं डाला.''

नेशनल स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशंस एंड अटलांटिक कनाडा के वाइस प्रेसिडेंट डेविड टारंट ने आर्टिकल में कहा कि ट्रूडो अब लोकप्रिय नेता नहीं हैं.  ट्रूडो के भाषण में उनके लिए गए किसी भी निर्णय के बारे में कोई पश्चाताप या विनम्रता नहीं थी जिस वजह से यह संकट पैदा हो गया हो. उन्होंने अपने भाषण में सिर्फ और सिर्फ यह बताना चाहा कि वह एक फाइटर हैं और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कितने बड़े-बड़े काम किए हैं.
 

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