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UNSC में कश्मीर पर चीन की चालबाजी नाकाम, पाकिस्तान के भी धरे रह गए सारे पैंतरे

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में पाकिस्तान और चीन को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी. कश्मीर मुद्दे को यूएनएससी में ले जाने के लिए पाकिस्तान अपने अजीज दोस्त चीन के आगे गिड़गिड़ाया. लेकिन फिर भी दोनों की चाल कामयाब नहीं हुई. बैठक के बाद चीन ने ऐसा बयान दिया ताकि पाकिस्तान भी खुश हो जाए और भारत नाराज न हो.

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पाक पीएम इमरान खान और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Photo-Xinhua news)
पाक पीएम इमरान खान और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Photo-Xinhua news)

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में पाकिस्तान और चीन को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी. कश्मीर मुद्दे को यूएनएससी में ले जाने के लिए पाकिस्तान अपने अजीज दोस्त चीन के आगे गिड़गिड़ाया लेकिन फिर भी दोनों की चाल कामयाब नहीं हुई. बैठक के बाद चीन ने ऐसा बयान दिया ताकि पाकिस्तान भी खुश हो जाए और भारत नाराज न हो.

वहीं रूस ने एक बार फिर भारत से दोस्ती निभाते हुए कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय नहीं बल्कि दोनों देशों के बीच का मामला है. दरअसल पाकिस्तान को समर्थन देना अब चीन की मजबूरी बन गया है. चीन के राजदूत ने कहा, यह जाहिर है कि भारत ने जो संवैधानिक संशोधन किया है और इससे स्थिति बदल गई है. चीन ने इस पर चिंता जाहिर की और कहा कि किसी भी एकतरफा फैसले से बचना चाहिए और ऐसा करना वैध नहीं है.

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चीन का यह बयान साफ तौर पर दिखाता है कि उसने भारत के प्रति कोई आक्रामक रुख नहीं अपनाया है. उसने वही किया जो पाकिस्तान को खुश करने के लिए वह कर सकता था. पाकिस्तान में चीन ने भारी निवेश किया है. दोनों देशों के बीच 46 बिलियन डॉलर की बड़ी लागत से चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) बन रहा है.

इसका मकसद पाकिस्तान से उत्तर पश्चिमी क्षेत्र शिंजियांग तक ग्वादर बंदरगाह, रेलवे और हाईवे के जरिए तेल और गैस की सप्लाई करना है. यह गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान होते हुए जाएगा. ग्वादर बंदरगाह को इस तरह बनाया जा रहा है ताकि 19 मिलियन टन कच्चा तेल सीधा चीन भेजा जा सके.  

लेकिन चीन इस मुद्दे पर भारत को सीधे तौर पर कुछ कह भी नहीं सकता. क्योंकि हांगकांग मसला भी उसके लिए कश्मीर से कम नहीं है. दरअसल हांगकांग ब्रिटेन का एक उपनिवेश था और 1997 में ब्रिटेन ने  हांगकांग को स्वायत्ता की शर्त के साथ चीन को सौंपा था. इस दौरान हांगकांग से अपनी राजनीतिक, स्वतंत्रता, सामाजिक और कानूनी व्यवस्था को कायम रखने का वादा किया गया था.

इसी वजह से हांगकांग में रहने वाले लोग खुद को चीन का हिस्सा नहीं मानते और सरकार की आलोचना करने में पीछे नहीं रहते. लिहाजा अगर सीधे तौर पर चीन ने भारत को कुछ कहा तो भारत भी उसे हांगकांग मसले पर घेर सकता है. हालांकि यूएनएससी में चीन और पाकिस्तान की चाल तो नाकामयाब हो गई है. अब देखना यह होगा कि अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के दर्द के कराह रहा पाकिस्तान अब किसके आगे गिड़गिड़ाता है.

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