हाल ही में खबर आई कि चीन अमेरिका को पछाड़कर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है. वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 118.4 अरब डॉलर रहा और चीन को भारत के निर्यात में 8.7% की बढ़ोतरी हुई है. इसे लेकर चीनी कम्यूनिस्ट सरकार के मुखपत्र माने जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी है और कहा है कि सुरक्षा मुद्दों को व्यापारिक मुद्दों पर हावी रखकर चीनी कंपनियों पर कार्रवाई करना भारत की प्रवृत्ति रही है, फिर भी द्विपक्षीय व्यापार का बढ़ना हमें यह याद दिलाता है कि दोनों अर्थव्यवस्थाओं की एकजुट ताकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि वित्त वर्ष 2021-22 और 2022-23 में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया था लेकिन अब चीन ने यह जगह हासिल कर ली है जो कई लोगों के लिए हैरानी की बात हो सकती है क्योंकि चीन के साथ तनाव के बीच भारत ने कई चीनी कंपनियों पर नकेल कसी है.
क्या भारत चीन की जगह ले सकता है?
चीनी अखबार ने आगे लिखा है, 'इस बात पर लंबे समय से बहस होती आ रही है कि क्या भारत दुनिया की फैक्टरी के रूप में चीन की जगह ले सकता है, लेकिन अगर आप उद्योगों और वैल्यू चेन को देखें तो भारत उस जगह पर नहीं है जहां चीन है. भारत फिलहाल एक मैन्यूफैक्चरिंग पावर बनने की कोशिश कर रहा है और भारत-चीन में यही अंतर दोनों देशों के लिए अहम विकास के अवसर पैदा करेगा.'
भारत चीन के उद्योग बाजार की तुलना करते हुए चीनी अखबार ने आगे लिखा, 'चीन के पास एक अच्छी तरह से विकसित औद्योगिक प्रणाली, मजबूत मैन्यूफैक्चरिंग आधार और कई क्षेत्रों में अत्याधुनिक तकनीक हैं, जबकि भारत के पास सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं में बढ़त है.'
अखबार ने लिखा है कि 'मेक इन इंडिया' की वजह से भारत के उद्योगों को समर्थन की जरूरतें बढ़ गई हैं, खासकर टेक्नोलॉजी और पूंजी आधारित उत्पादों में. भारतीय उद्योगों की यह स्थिति चीन के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के लिए नए बाजार की संभावना पैदा करती है.
उदाहरण के लिए, साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि अप्रैल 2023 में नई दिल्ली स्थित सरकारी विश्वविद्यालय, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड की तरफ से किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि चीन से किए जा रहे आयात अकार्बनिक रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, लोहा और इस्पात सहित प्रमुख क्षेत्रों में भारत के मैन्यूफैक्चर और निर्यात को बढ़ावा दे रहे थे.
चीन के साथ भारत का बढ़ता व्यापार असंतुलन और उसका उपाय
पिछले कुछ सालों में चीन के साथ भारत के व्यापार असंतुलन की कुछ लोगों ने आलोचना की है जिसका द्विपक्षीय व्यापार के विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.
जब किसी देश का आयात खर्च निर्यात से होने वाले आय से ज्यादा हो जाए तो उसे व्यापार असंतुलन कहते हैं. आसान शब्दों में, हम किसी देश से सामान खरीद ज्यादा रहे हैं जबकि उसे अपना सामान बेच कम रहे हैं.
इकोनॉमिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में चीन से भारत का आयात 3.24 प्रतिशत बढ़कर 101.7 अरब डॉलर हो गया, जबकि चीन को भारत से किया जाने वाला निर्यात 16.67 अरब डॉलर तक पहुंच गया. ग्लोबल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि व्यापार में इस असंतुलन पर ध्यान देना चाहिए और द्विपक्षीय व्यापार को स्वस्थ बनाने के लिए उपाय किए जाने चाहिए.
भारत में चीनी कंपनियों का स्थानीयकरण किया जाए- ग्लोबल टाइम्स
ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि व्यापार में मौजूदा असंतुलन को दूर करने के लिए भारत में चीनी कंपनियों का स्थानीयकरण करना अहम रणनीति साबित होगी. अगर चीनी कंपनियां भारत में ही अपना उत्पादन केंद्र खोल लेंगी तो रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी जिससे अंततः व्यापार असंतुलन कम होगा. उदाहरण के लिए, भारत के तेजी से बढ़ते स्मार्टफोन उद्योग में, केवल कुछ हिस्से ही घरेलू स्तर पर बनाए जाते हैं. भारत के स्मार्टफोन प्लांट्स में स्मार्टफोन पार्ट्स की आपूर्तिकर्ता के रूप में चीन का दबदबा कायम है.
अखबार ने आगे लिखा कि चीन भी अब धीरे-धीरे भारतीय प्रोडक्ट्स को अपने बाजार में अधिक जगह दे रहा है खासकर कृषि और सर्विस आउटसोर्सिंग जैसे क्षेत्रों में. इसके अलावा, दोनों देश ज्वाइंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर्स की स्थापना कर विज्ञान, तकनीक और नए अविष्कार में सहयोग बढ़ा सकते हैं, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और औद्योगिक प्रगति को आसान बना सकते हैं.
लेख के अंत में ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि पूरी उम्मीद है कि भारत और चीन अपनी एकजुट शक्तियों का लाभ उठाकर, सहयोग के अवसर खोज कर एक स्थिर और समृद्ध व्यापारिक संबंध बना सकते हैं जो दोनों देशों के लिए लाभ का सौदा होगा.