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भारत को 22 सर्विलांस ड्रोन देगा अमेरिका, ड्रैगन के माथे पर आया पसीना

ट्रंप और मोदी के बीच होने वाले रक्षा समझौते का मुख्य एजेंडा 22 अनआर्म्ड सर्विलांस ड्रोन हैं. साथ ही टाटा और लॉकहीड मार्टिन के बीच एफ-16 लड़ाकू विमानों के साझा निर्माण से जुड़े समझौते पर भी हस्ताक्षर किए जाएंगे.

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ड्रोन के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे ट्रंप-मोदी
ड्रोन के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे ट्रंप-मोदी

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चीन पूरी गंभीरता से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच सोमवार को होने रक्षा समझौते पर नजर रखे हुए है. चीन की निगाह खासतौर पर सर्विलांस ड्रोन से जुड़ी डील पर है. चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस डील से हिंद महासागर पर निगाह रखने के लिए भारत की ताकत में कई गुना इजाफा हो जाएगा.

ट्रंप और मोदी के बीच होने वाले रक्षा समझौते का मुख्य एजेंडा 22 अनआर्म्ड सर्विलांस ड्रोन हैं. साथ ही टाटा और लॉकहीड मार्टिन के बीच एफ-16 लड़ाकू विमानों के साझा निर्माण से जुड़े समझौते पर भी हस्ताक्षर किए जाएंगे.

पीकिंग यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की प्रोफेसर और सेंटर फॉर आर्म्स कंट्रोल की डायरेक्टर हान हुआ ने इंडिया टुडे से कहा कि चीन में कुछ लोग चिंतित हैं. हालांकि यह अब तक सबसे उन्नत तकनीक नहीं है, जब आप एफ-16 लड़ाकू विमानों के बारे में बात करते हैं. लेकिन रक्षा सहयोग का यह केवल एक मुद्दा है. साथ ही हिंद महासागर में सर्विलांस ड्रोन के ट्रांसफर का मुद्दा है. इससे पूरे हिंद महासागर पर नजर रखने में भारत की क्षमता में बड़ा इजाफा होने जा रहा है. जोकि एफ-16 के संयुक्त उत्पादन से ज्यादा महत्वपूर्ण है.

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मोदी के US दौरे पर है चीन की नजर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे पर चीन की पूरी नजर है. दिल्ली की तरह ही बीजिंग में भी ट्रंप को लेकर चिंता का भाव है. यद्यपि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अमेरिका दौरा कई मायनों में शानदार रहा है, जहां उनका ट्रंप के मार-अ-लागो रिसॉर्ट में स्वागत किया गया.

हान हुआ ने कहा कि भारत-अमेरिका संबंधों का प्रभाव चीन-अमेरिका संबंधों पर है. बुश प्रशासन द्वारा भारत के लिए दरवाजे खोलने के बाद चीन के उभार को टक्कर देने के लिए वॉशिंगटन भारत की भूमिका की लगातार बात कर रहा है. खासतौर पर 2005 के परमाणु समझौते के बाद इस ओर काफी चर्चा हुई है. चीनी रणनीतिकारों के लिए वॉशिंगटन और नई दिल्ली की रिलेशनशिप एक चिंता के तौर पर उभर कर सामने आई है.

उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील, केवल एक न्यूक्लियर डील नहीं है. यह दोनों देशों के बीच की रणनीतिक साझेदारी की प्रकृति को दर्शाती है. चीन के लिए यही चिंता का विषय है.

कोरिया के साथ अमेरिका की 'दुश्मनी', चीन को देगी मौका
हालांकि चीन इसको लेकर बहुत ज्यादा चिंतित भी नहीं है. भारत के साथ संबंधों को बढ़ाने में लगे ट्रंप दूसरे मोर्चे पर उत्तर कोरिया के साथ जूझ रहे हैं. हान का मानना है कि ट्रंप प्रशासन अकेले उत्तर कोरिया का मसला हल नहीं कर सकता. हो सकता है कि चीन इसका हल निकालने में मदद कर सके. जैसा कि ज्यादातर अमेरिकी मानते हैं कि इस मामले में चीन भी एक पार्टी है.'

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परमाणु मुद्दों की जानी मानी विशेषज्ञ हान का मानना है कि एनएसजी में भारत को एंट्री दिलाने के लिए ट्रंप से बहुत ज्यादा की उम्मीद नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा, 'ट्रंप प्रशासन के आने के बाद एनएसजी में भारत की एंट्री के मुद्दे पर उनकी नीतियों में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है.' हान ने कहा कि कुछ लोगों का कहना है कि अमेरिकी प्रशासन भारत की सदस्यता का समर्थन करता है, लेकिन इस मुद्दे पर अब तक कोई प्रभावी बयान नहीं जारी किया गया है.

'जापान की तरह अमेरिका का पार्टनर नहीं बनेगा भारत'
चीन में बहुत सारे विशेषज्ञ मानते हैं कि मोदी सरकार अमेरिका के साथ बहुत घनिष्ठ रिश्ता बना रही है, लेकिन उनका यह भी मानना है कि भारत, जापान और फिलीपींस की तरह अमेरिका का सहयोगी नहीं बनेगा.

हान का मानना है कि विदेश नीति के मामले में भारत की एक तय लाइन है और इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि दिल्ली में किसकी सरकार है. मोदी के बारे में लोगों की राय है कि वे बहुत ज्यादा राष्ट्रवादी हैं और कांग्रेस के बीच का रास्ता पकड़कर चलने की नीति के बजाय दुनिया के बारे में उनका दृष्टिकोण ज्यादा वास्तविक है.

'गुटनिरपेक्ष नीति की लाइन से नहीं हटेगा भारत'
हान ने कहा, 'भारत अब भी एक गर्व और यश से भरा देश है. मैं नहीं मानती कि अपनी मौजूदा विदेश नीति की लाइन से हटकर वह बहुत ज्यादा आगे जाएगा. कुछ लोगों का कहना है कि नरेंद्र मोदी रणनीतिक रूप से पहले ही अमेरिका के बहुत नजदीक जा चुके हैं, लेकिन मेरी नजर में यह थोड़ा बहुत आगे भी चलेगा, लेकिन भारत अपनी गुटनिरपेक्ष नीति से बहुत ज्यादा आगे नहीं बढ़ेगा.'

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