चीन में इन दिनों कोरोना के चलते हाहाकार मचा हुआ है. खबरें आ रही हैं कि वहां अस्पतालों में मरीज वेटिंग में हैं. इस बीच एक बड़ा तबका घरेलू इलाज की तरफ जा रहा है, जिसमें नींबू के सेवन से लेकर जड़ी-बूटियां खाना भी शामिल है. इसी साल के मध्य में WHO ने कोविड के इलाज में चीनी मेडिसिन के असर को जांचने की भी बात की थी, जिसमें नेशनल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ ट्रेडिनशल चाइनीज मेडिसिन ने भी मदद का वादा किया था.
चीन में ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन (TCM) पर काफी जोर दिया जाता है. यहां तक कि लगभग 100 साल पहले फैले स्पेनिश फ्लू तक में चीन ने सांप के तेल से बीमारी के इलाज का दावा किया था. दावा इतना तगड़ा था कि स्नेक ऑइल का बाजार अमेरिका तक में कॉपी किया जाने लगा.
सबसे पहले समझिए, क्या है टीसीएम
ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन चीन में हजारों साल पुरानी विधा है, हालांकि इसका सबसे पुराना लिखित रिकॉर्ड ईसापूर्व तीसरी सदी में मिलता है. इसमें Qi यानी शरीर में मौजूद एनर्जी को ठीक करके बीमारियों के इलाज का दावा किया जाता है. प्राचीन चीन में माना जाता था कि जैसे ही शरीर की एनर्जी गड़बड़ाती है, कोई न कोई बीमारी हो जाती है. टीसीएम में इसी गड़बड़ी पर फोकस किया जाता है, जिसके कई तरीके हैं.
क्या-क्या शामिल है इसमें
एक्युपंक्चर को टीसीएम के तहत रखा जाता है. इसके अलावा मॉक्सिबक्शन एक तरीका है, जिसमें शरीर के प्रभावित हिस्से पर गर्म जड़ी-बूटियां छुआई जाती हैं. हर्बल मेडिसिन भी इसका बड़ा हिस्सा है. इसके तहत जड़ी-बूटियां ही नहीं, बल्कि जानवरों के मांस या तेल का भी सेवन किया जाता है. टीसीएम में लगभग 19 सौ दवाएं हैं, जिन्हें अलग-अलग या मिलाकर सेवन करके सारी बीमारियों के इलाज की बात होती है. यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज के मुताबिक साल 2020 में टीसीएम का कारोबार 160 बिलियन युआन (चीनी मुद्रा) से ज्यादा का रहा, ये आंकड़ा सिर्फ चीन का है, जबकि इसके अलावा हांगकांग, सिंगापुर, वियतनाम और जापान में भी टीसीएम का बाजार फैला हुआ है.
ये नजारा आम है
अगर आप किसी टीएमसी दवा दुकान जाएं तो लगेगा कि छोटे-मोटे नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में पहुंच गए हों कांच के मर्तबानों या अलमारियों में प्लांट मटेरियल यानी जड़ी-बूटियों से लेकर एनिमल मटेरियल तक रखा होता है. इसमें सांप, बिच्छू, कीड़े-मकोड़े, यहां तक कि गधे का मांस भी शामिल है. खासकर सांप की अलग-अलग किस्मों से न सिर्फ बीमारियों का इलाज होता है, बल्कि कॉस्मेटिक्स में भी इसका खूब इस्तेमाल होता है.
सांप के तेल से स्पेनिश फ्लू के इलाज का दावा
ये बात पहले विश्व युद्ध में फ्लू फैलने से पहले की है. व्यापार में बेहद कुशल चीनी व्यापारी जब अपने साथ मसाले, रेशम, हाथी दांत का सामान ले जाते, साथ में सांप का तेल भी दूसरे देशों में ले जाते. वे कहते कि चीन के आसपास मिलने वाले ये सांप जादुई गुण वाले हैं, जिनका तेल लगाने पर बीमारियां, खासकर स्किन से जुड़े रोग खत्म हो जाते हैं. तब चीन में स्किन की गंभीर समस्या में मरीजों का इलाज स्नेक ऑइल से किया जाता था. आगे चलकर इसका उपयोग गंभीर बीमारियों के इलाज में भी होने लगा. स्पेनिश फ्लू महामारी के दौरान चीनियों ने इसका जमकर प्रचार-प्रसार किया.
अमेरिका भी करने लगा कॉपी
तेल बनाने वाली अमेरिकी कंपनी क्लार्क स्टेनलेज स्नेक ऑइल ने पूरे देश को इस तेल से पाट दिया. बाद में जांच हुई तो पता लगा कि प्रोडक्ट में न तो स्नेक ऑइल था, न ही कोई हर्बल गुण. हालांकि फ्लू के दौरान कई और कंपनियां निकल गईं जो स्नेक ऑइल बनाने और उससे इलाज के दावे करती थीं. यहां तक कि अखबारों में बाकायदा इसके विज्ञापन होते, जैसे Scioto Gazette न्यूजपेपर में मिलर्स एंटीसेप्टिक ऑइल का एड आया, जो फ्लू को ठीक करने की बात कहता.
ये पशु भी मारा जा रहा
टीसीएम के तहत गधे से भी कई दवाएं बनाई जाती हैं. खासकर एजिआओ नाम की दवा कथित तौर इम्युनिटी और यौन क्षमता बढ़ाती है. किसी चॉकलेट बार की तरह दिखती इस दवा के लिए बड़ी संख्या में हर साल गधों का आयात पाकिस्तान और अफ्रीकी देशों से हो रहा है. गधों पर काम करने वाली ब्रिटिश संस्था द डंकी सेंक्चुरी के मुताबिक हर साल गधों से बनने वाली एक ही दवा एजिआओ का उत्पादन 20 फीसदी बढ़ रहा है, जिसके लिए 50 लाख से ज्यादा गधों की जरूरत होती है. इसी जरूरत को पूरा करने का काम दूसरे गरीब देश कर रहे हैं.
चूंकि पशुओं की ट्रेडिंग अवैध है इसलिए असल डाटा नहीं मिल पा रहा है कि चीन कितने गधे वाकई में मारता है. इस बीच याद दिला दें कि बीते सालों में कई बार पाकिस्तान में गधों की आबादी में भारी गिरावट की खबरें आती रहीं.