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नेपाल में अड्डा जमाकर भारत के खिलाफ गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली चीनी राजदूत हाओ यांगकी (Hou Yanqi) का काठमांडू में गेम ओवर हो गया है. लंबे समय के बाद हाओ यांगकी को आखिरकार नेपाल से जाना पड़ा है. नेपाल में बदले राजनीतिक समीकरण, हाल में हुए चुनाव में नेशनल कांग्रेस की वापसी की संभावनाओं के बीच ये भारत के लिहाज से बेहतर खबर है.
सोशल मीडिया स्टार और नेपाल में चीन की राजदूत रहीं हाओ यांगकी वो डिप्लोमैट थीं जिनकी कभी नेपाल पीएम हाउस और राष्ट्रपति भवन में बेरोक टोक पहुंचती थीं. वह काठमांडू में कैसे भारत विरोध को भड़का रही थीं इसे जानने के लिए दो साल पहले का एक राजनीतिक घटनाक्रम समझना जरूरी है.
तब नेपाल अचानक भारत को आंख दिखाने लगा
साल 2020 की बात है. नेपाल के प्रधानमंत्री थे के पी शर्मा ओली. जून 2020 में नेपाल की संसद एक ऐसा प्रस्ताव पास करती है जिससे भारत की भौहें तन जाती है. नेपाल ने अपने देश का एक नया नक्शा संसद से पास करवाया, इस नक्शे में नेपाल तीन वैसी जगहों को अपना इलाका बता रहा था जो भारत की जद में हैं. ये इलाके है उत्तराखंड में मौजूद लिपुलेख लिम्पियाधुरा कालापानी.
नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली मीडिया में बयान देते हुए नजर आए. उन्होंने कहा कि इन तीनों जगहों को नेपाल अपने क्षेत्र में शामिल करेगा. भारत अपने सालों पुराने पड़ोसी के रवैये में अचानक आए बदलाव से हैरान था. आखिर सालों से जिस देश से भारत का घर आंगन जैसा रिश्ता रहा वो नेपाल अचानक भारत को आंख क्यों दिखा रहा था?
अभी हुए चुनाव में सम्मानजनक हैसियत हासिल करने के लिए जूझ रहे ओली ने तब कहा था कि अब हम कूटनीति के माध्यम से इन क्षेत्रों को प्राप्त करने का प्रयास करेंगे, यदि कोई इससे नाराज हो तो हम इसके बारे में चिंतित नहीं हैं. हम किसी भी कीमत पर उसकी जमीन पर अपना दावा पेश करेंगे.'
नेपाल के बदले तेवर के पीछे चीन
भारत ने जब नेपाल के इस बदले तेवर की वजह जाननी चाही तो इसके पीछे चीन का एंटी-इंडिया एजेंडा बेनकाब हो गया. दरअसल चीन नेपाल को अपनी महात्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट रोड इनिसएटिव का अहम हिस्सा मानता है. इसके जरिए चीन नेपाल तक अपनी सीधी पहुंच बनाना चाहता है. भारत चीन की इस कोशिश का विरोध कर रहा है.
बता दें कि चीन नेपाल के साथ मिलकर ट्रांस-हिमालयन मल्टी डाइमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क बनाना चाहता है. इससे नेपाल और चीन के बीच आवाजाही आसान हो जाएगी. लेकिन चीन की ये कोशिश भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर मायने रखती है. चीन नेपाल में हो रहे विकास के इन कथित प्रोजेक्ट के जरिए भारत पर निगाह रख सकेगा. अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए चीन नेपाल को भारत के खिलाफ उकसाता रहता है.
जिनपिंग के एजेंडे को लागू कर रही थी हाओ यांगकी
भारत ने पाया कि नेपाल की ओर से खड़ा किए गए सीमा विवाद की कर्ता धर्ता हाओ यांगकी ही थी. नई दिल्ली से सूत्रों का कहना है कि जिनपिंग के एजेंडे को लागू करने के लिए हाओ यांगकी ने काठमांडू में अपना पूरा नेटवर्क खड़ा कर लिया था. वो तत्कालीन नेपाल पीएम के पी शर्मा ओली की ऐसी मेहमान थीं जिन्हें तत्कालीन पीएम से मिलने के लिए कोई अप्वाइंटमेंट नहीं लेना पड़ता था. यही नहीं हाओ यांगकी जब 2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति बिद्या भंडारी से मिलीं तो नेपाल में विवाद खड़ा हो गया. कहा गया कि नेपाल के विदेश मंत्रालय तक को इसकी जानकारी ही नहीं थी.
नक्शा विवाद में नेपाल का साथ
राजदूत हाओ यांगकी ने तब नक्शा विवाद पर एक नेपाली वेबसाइट के साथ बाद करते हुए ओली के कदम का समर्थन किया था. उन्होंने कहा था कि यह नेपाली सरकार द्वारा संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की दृढ़ता से रक्षा करने और जनता की राय का पालन करने के लिए किया गया एक उपाय है. हाओ यांगकी ने कहा कि 'चीन के इशारे पर नेपाल' के काम करने का आरोप निराधार है. इस तरह के आरोप न केवल नेपाल की इच्छा का अपमान है, बल्कि चीन-नेपाल संबंधों को बाधित करने का प्रयास भी है.
भारत विरोधी प्रदर्शन को हवा
बताया जाता है कि नेपाल के जिन लोगों ने मानचित्र विवाद से जुड़े उस विवादास्पद बिल को तैयार किया था वो लगातार हाओ यांगकी से मिल रहा था. हाओ यांगकी ने इस विवाद को खड़ा करने में भरपूर रोल अदा किया. हाओ यांगकी का दखल तत्कालीन पीएम केपी शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (UML)में था. रिपोर्ट के अनुसार हाओ यांगकी कम्युनिस्ट नेताओं को नेपाल में भारत विरोधी प्रदर्शनों के लिए भी उकसा रही थीं.
जून-जुलाई 2020 में ओली की पार्टी ने नेपाल के कई शहरों में भारत विरोधी प्रदर्शन किए थे.
नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी में भी दखल
बाद में जब केपी शर्मा ओली का अपनी पार्टी के कद्दावर नेता पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड से टकराव हुआ तो एक विदेशी राजदूत होने के बावजूद हाओ यांगकी ने नेपाल की एक राजनीतिक पार्टी के विवाद को सुलझाने में अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया. हालांकि हाओ यांगकी की ये कोशिश नाकाम रही और ओली की पार्टी दो भागों में बंट गई.
बता दें कि ओली अलग अलग समय में तीन बार नेपाल के प्रधानमंत्री रहे. उनके कार्यकाल में नेपाल-भारत के रिश्ते तनावपूर्ण रहे. नेपाल-भारत की सदियों की मित्रता की नीति से अलग चलकर उन्होंने चीन के साथ पींगे बढ़ाने पर जोर दिया.
सोशल मीडिया स्टार, उर्दू की जानकार
51 साल की हाओ यांगकी 2018 से 2022 तक के कार्यकाल में नेपाल में छाई रहीं. ट्विटर पर उनकी तस्वीरें नेपाल की सोशल मीडिया में चर्चा का विषय रहीं. कभी वे नेपाल के पर्यटन को प्रमोट करती दिख रहीं थी तो कभी काठमांडू मे वीआईपी कार्यक्रम में शामिल हो रही थीं. उनके ट्विटर और फेसबुक अकाउंट पर हजारों नेपाली उन्हें फॉलो करते हैं.
True beauty always touches the deep heart. Beautiful Nepal with history, diversity and nature deserves a visit. Wish #VisitNepal2020 successful! @yogesbhattarai
— Ambassador Hou Yanqi (@PRCAmbNepal) December 31, 2019
२०२० नेपाल भ्रमाण वर्ष सफलताको शुभकामना ! pic.twitter.com/uXXnYWu7Iv
हाओ यांगकी उइगर मुसलमानों की स्थिति पर भी चीन के एजेंडे के मुताबिक काम कर चुकी हैं. उनकी पोस्टिंग पाकिस्तान में भी रही है. इस दौरान वे उर्दू के तल्लफूज उनकी जुबान पर चढ़ गए और जल्द ही उन्होंने इस भाषा पर अधिकार हासिल कर लिया.
हाओ यांग की नेपाल में बीजिंग का सॉफ्ट पावर बढ़ाने के लिए गैर पंरपरागत होने से भी गुरेज नहीं करती हैं. 2020 में जब नेपाल में चीनी दूतावास ने महिला दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किया तो वे लहंगा चोली में नजर आईं. इसके अलावा उन्होंने लोकप्रिय नेपाली गाने पर नृत्य भी किया.
नेपाल के लिए चीन ने नए राजदूत की नियुक्ति की
समाचार एजेंसी के अनुसार 2018 में बतौर राजदूत नेपाल आईं हाओ यांगकी ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है और अब वे वापस लौट गई हैं. चीन ने चेन सॉन्ग (Chen song) को नेपाल में अपना नया राजदूत भी नियुक्त कर दिया है. चेन वर्तमान में चीनी विदेश मंत्रालय में उप महानिदेशक हैं और चीनी विदेश मंत्रालय में नेपाल मामलों की देखभाल कर रहे हैं.