रूस से तेल नहीं खरीदने के अमेरिका और यूरोपीय देशों के भारी दबाव के बावजूद भारत और चीन धड़ल्ले से रूस का कच्चा तेल खरीद रहे हैं. ये बात अमेरिका को लगातार परेशान कर रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की आर्थिक सलाहकार सिसिलिया राउस का कहना है कि भारत और चीन के जरिये रूस के तेल की यह खपत उनके अनुमान से अधिक है.
वैश्विक स्तर पर वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट में कच्चे तेल की कीमत में गिरावट देखने को मिली और यह लगभग 105 डॉलर रहा. इस महीने की शुरुआत में कच्चे तेल की कीमत 122 डॉलर प्रति बैरल थी.
चीन एकमात्र ऐसे देश के तौर पर उभर रहा है, जहां रूस के प्रशांत तट के बंदरगाहों से तेल भेजा जा रहा है. रूस के पश्चिमी तटों से भारत को सबसे ज्यादा तेल का निर्यात किया जा रहा है.
भारत और चीन दो ऐसे देश हैं, जहां रूस के बंदरगाहों से सबसे ज्यादा कच्चे तेल की सप्लाई की जा रही है. चीन और भारत रूस का इन बंदरगाहों से भेजे जाने वाला लगभग आधा तेल खरीद रहे हैं.
जून के पहले हफ्ते में रूस के पश्चिमी निर्यात टर्मिनल्स के टैंकर्स में प्रतिदिन लगभग 860,000 बैरल तेल लोड किया गया. यह तेल बाद में एशियाई देशों को भेजा गया.
अमेरिका के अनुमान से अधिक रूस का कच्चा तेल खरीद रहे भारत, चीन
बाइडेन के आर्थिक सलाहकारों की परिषद की अध्यक्ष सेसिलिया राउस ने कहा, फिलहाल तेल बाजारों में काफी उथल-पुथल है. मैंने सुना है कि चीन और भारत हमारे अनुमान से कहीं ज्यादा रूस का तेल खरीद रहे हैं.
राउस ने यह बयान ऐसे समय में दिया है, जब बाइडेन ने कांग्रेस से पेट्रोल पर टैक्स तीन महीने के लिए हटाने को कहा ताकि उपभोक्ताओं को कुछ राहत दी जा सके. बाइडेन चाहते हैं कि बाजारों में तेल की सप्लाई बढ़ाने के लिए इस टैक्स को हटा दिया जाए.
बाइडेन के इस कदम पर राउस ने कहा कि वैश्विक स्तर पर तेल की कीमत में गिरावट उपभोक्ताओं को मिलेगी लेकिन चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं. उन्होंने कहा, हम कीमतों में गिरावट का स्वागत करते हैं, उम्मीद है कि उपभोक्ताओं को भी इसका लाभ मिलेगा लेकिन हम यह भी जानते हैं कि यह युद्ध (रूस-यूक्रेन युद्ध) कल समाप्त नहीं होने वाला.
हालांकि, ऐसे कोई संकेत नहीं हैं जिससे पता चल सके कि कांग्रेस बाइडेन का अनुरोध स्वीकार करने जा रही है. बाइडेन ने राज्यों से भी अपने यहां गैस पर लगाए गए टैक्स को हटाने को कहा था, कुछ राज्य पहले ही ऐसा कर चुके हैं.
बता दें कि यूक्रेन पर युद्ध के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे. इनमें रूस के तेल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद रूस ने भारत और चीन सहित कई देशों को भारी छूट पर कच्चा तेल बेचना शुरू किया था.