अक्टूबर में इजरायल के हमले के बाद तबाह हुए मिसाइल उत्पादन क्षमता को ईरान फिर से खड़ा कर रहा है. इस काम में चीन उसकी मदद कर रहा है. जहाज ट्रैकिंग डेटा से पता चला है कि चीन ईरान को उसके मिसाइल प्रोग्राम के लिए 1,000 टन केमिकल्स भेज रहा है. ये केमिकल्स दो जहाजों से ईरान जाने हैं जिसमें से एक ईरानी बंदरगाह बंदर अब्बास तक पहुंच गया है. यह इस बात का संकेत है कि इजरायल के हमले से ईरान उबर गया है और वो अब सामान्य रूप से मिसाइल उत्पादन करने लगा है.
अमेरिकी अखबार 'सीएनएन' को यूरोप के दो खुफिया सूत्रों ने बताया कि चीन दो जहाजों में 1,000 टन सोडियम परक्लोरेट भरकर ईरान भेज रहा है. पहला जहाज गोलबोन तीन सप्ताह पहले चीनी बंदरगाह ताइकांग से रवाना हुआ था.
खुफिया सूत्रों के अनुसार, सोडियम परक्लोरेट ईरान की मध्यम दूरी की मिसाइलों को ताकत देने वाले ठोस प्रोपेलर के रूप में इस्तेमाल होने वाला अहम केमिकल है.
खुफिया सूत्रों का कहना है कि चीन ईरान को इतनी मात्रा में सोडियम परक्लोरेट भेज रहा है जिससे वो खेबर शेकन मिसाइलों के लिए 260 ठोस रॉकेट मोटर्स या 200 हज कासेम बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए पर्याप्त प्रोपेलर बना सकेगा.
कमजोर पड़ा ईरान फिर से खड़ा होने की कोशिश में
चीन से ईरान तक ये शिपमेंट ऐसे समय में आया है जब ईरान को मध्य-पूर्व में भारी झटकों का सामना करना पड़ा है, उसके क्षेत्रीय सहयोगी भी अमेरिका समर्थित इजरायल से लड़ाई में बेहद कमजोर हो गए हैं. सीरिया में बशर अल-असद का पतन और लेबनान में हिजबुल्लाह की हार से ईरान कमजोर पड़ा है.
अक्टूबर में ईरान के मिसाइल उत्पादन संयंत्रों पर इजरायल ने हमला किया था जिसके बाद कुछ पश्चिमी विशेषज्ञों ने कहा था कि ईरान को ठोस प्रोपेलर का उत्पादन फिर से शुरू करने में कम से कम एक साल का वक्त लग सकता है.
लेकिन चीन से सोडियम परक्लोरेट की खरीद के बाद ये साफ हो गया है कि ईरान अपनी मिसाइलों के उत्पादन से बहुत दूर नहीं है या फिर वो पहले ही उत्पादन शुरू कर चुका है.
सूत्रों ने बताया कि सोडियम परक्लोरेट की खेप सेल्फ सफिशिएंसी जिहाद ऑर्गनाइजेशन (SSJO) के खरीद विभाग की ओर से खरीदी गई थी. यह संगठन ईरान के बैलिस्टिक मिसाइलों के विकास के लिए काम करने वाली ईरानी निकाय का हिस्सा है.
सूत्रों ने बताया कि दूसरा जहाज जैरन अभी तक लोड नहीं हुआ है और चीन से नहीं निकला है. दोनों जहाजों का संचालन इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान शिपिंग लाइन्स (IRISL) कंपनी करती है. जैरन 1,000 टन में से बचा हुआ माल ईरान ले जाएगा. गोलबोन 21 जनवरी को ताइकांग बंदरगाह से ईरान के लिए रवाना हुआ था.
ईरान का सोडियम परक्लोरेट खरीदना अमेरिकी प्रतिबंधों के अधीन है?
सोडियम परक्लोरेट को खरीदना या बेचना अवैध नहीं है और न ही ईरान इसे खरीदकर पश्चिमी प्रतिबंधों का उल्लंघन कर रहा है.
ईरान को सोडियम परक्लोरेट बेचे जाने के बारे में जब चीनी विदेश मंत्रालय से पूछा गया तो मंत्रालय ने कहा, 'हमें इस मामले की बारीकियों की जानकारी नहीं है. चीन अवैध एकतरफा प्रतिबंधों, मनमाने ढंग से बदनाम करने और सबूतों के अभाव वाले आरोपों का विरोध करता है. चीन ने अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों, घरेलू कानूनों और नियमों के अनुसार दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं के निर्यात नियंत्रण का लगातार पालन किया है. सोडियम परक्लोरेट निर्यात नियंत्रण श्रेणी में नहीं आता और इसका निर्यात सामान्य व्यापार माना जाएगा.'
हालांकि, अमेरिका और ब्रिटेन ने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान शिपिंग लाइन्स कंपनी के खिलाफ प्रतिबंध लगाए हैं. दोनों देशों का कहना है कि कंपनी ईरान के रक्षा क्षेत्र के साथ जुड़ी हुई है और ईरानी सरकार की शत्रुतापूर्ण गतिविधियों में संलिप्त है. इस कंपनी की तरफ से संचालित गोल्बन और जैरान, दोनों ही जहाजों पर अमेरिकी प्रतिबंध लगे हैं.
अलग-थलग पड़े ईरान को चीन का सहारा
चीन पश्चिमी प्रतिबंध झेल रहे ईरान का कूटनीतिक और आर्थिक सहयोगी बना हुआ है. चीन ने ईरान के खिलाफ लगाए गए एकतरफा अमेरिकी प्रतिबंधों की निंदा की है और उसके प्रयासों से ही ईरान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और ब्रिक्स जैसे संगठनों में शामिल किया गया है.
विश्लेषकों का कहना है कि चीन ईरान से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदकर उसका सबसे बड़ा ऊर्जा खरीददार बना हुआ है. हालांकि, चीन ने 2022 के बाद से अपने आधिकारिक सीमा शुल्क आंकड़ों में ईरानी तेल की खरीद की सूचना नहीं दी है.
ईरान और चीन के बीच ऐतिहासिक रक्षा संबंध रहे हैं. हालांकि, पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन ने पिछले एक दशक में सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए ईरान के साथ अपने सुरक्षा संबंधों को कम कर दिया है. अमेरिका ने हाल के सालों में ईरान के सैन्य ड्रोन उत्पादन में कथित मदद के लिए चीन की कई संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाए हैं.
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज के रिसर्च फेलो फैबियन हिंज ने कहा कि ईरान को छोटे वायु रक्षा हथियारों सहित कई प्रकार की मिसाइलों के लिए ठोस प्रोपेलर की जरूरत होगी, लेकिन चीन से आ रही सप्लाई का बड़ा हिस्सा संभवतः ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम के लिए होगा.
ईरान का सोडियम परक्लोरेट खरीदना पश्चिमी प्रतिबंधों के अधीन नहीं आता लेकिन इसे रासायनिक रूप से अमोनियम परक्लोरेट में बदला जा सकता है जो कि ईंधन और ऑक्सिडाइजर का काम करता है और एक नियंत्रित उत्पाद है.
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में अकार्बनिक रसायन विज्ञान की प्रोफेसर एंड्रिया सेला कहती हैं, 'अमोनियम परक्लोरेट का इस्तेमाल अंतरिक्ष यान के ठोस प्रोपेलर में भी किया गया था. चीन की तरफ से ईरान को दिए जा रहे सोडियम परक्लोरेट का इस्तेमाल काफी सीमित है. इसका इस्तेमाल रॉकेट के प्रोपेलर, पटाखों और ईंधन के लिए होता है.'
उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में परक्लोरेट्स पर नियंत्रण बढ़ता जा रहा है जिसे देखते हुए चीन इसका वैकल्पिक सप्लायर बनकर उभरा है.
लंबे समय से ईरान के मिसाइल प्रोग्राम का समर्थन करता आया है चीन
मिडिलबरी इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में पूर्वी एशिया अप्रसार कार्यक्रम के निदेशक जेफरी लुईस ने बताया कि चीन लंबे समय से ईरान के मिसाइल प्रोग्राम्स के लिए सोडियम परक्लोरेट मुहैया कराता रहा है.
लुईस ने कहा, 'चीन 2000 के दशक के मध्य से ईरान को ऐसी शिपमेंट भेजता रहा है. नया शिपमेंट उसी पैटर्न का हिस्सा है.'
1 अक्टूबर को ईरान ने इजरायल पर बैलेस्टिक मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया था. एक सूत्र ने बताया कि इस हमले में ईरान ने इजरायल पर ठोस प्रोपेलर वाली लगभग 50 मध्यम दूरी की मिसाइलें दागी थीं.
अमेरिकी वायु सेना के जनरल केनेथ मैकेंजी ने 2023 में अमेरिकी संसद को बताया था कि माना जाता है कि ईरान के पास 3,000 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें हैं. हालांकि, यह पता नहीं है कि ईरान के पास हर तरह के मिसाइलों की सटीक संख्या क्या है.