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श्रीलंका में चीन के इस कदम से भारत के लिए बढे़गा खतरा

चीन श्रीलंका में एक रडार बेस बनाने की योजना बना रहा है जो भारत के लिए एक चिंता का विषय है. इसके जरिए वो हिंद महासागर में भारत की गतिविधियों पर नजर रख सकता है. हंबनटोटा पोर्ट के जरिए चीन ने पहले ही भारत की चिंता बढ़ा रखी है, अब इस नए प्रोजेक्ट से भारत की चिंता और बढ़ने वाली है.

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चीन का जासूसी जहाज हंबनटोटा पोर्ट पर छह दिन रुका था (Photo- AFP)
चीन का जासूसी जहाज हंबनटोटा पोर्ट पर छह दिन रुका था (Photo- AFP)

चीन हिंद महासागर में भारत की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए श्रीलंका में एक रडार बेस स्थापित करने की योजना बना रहा है. इस रडार बेस के जरिए वो हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति और भारतीय नौसेना की गतिविधियों पर नजर रखने के अलावा कुडनकुलम और कलपक्कम परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर नजर रख सकेगा. देश के दक्षिणी हिस्से में सामरिक संपत्तियों को भी चीन इसके जरिए निगरानी में रखने की कोशिश करेगा.

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प्रस्तावित रडार डिएगो गार्सिया (हिंद महासागर में ब्रिटेन का समुद्री क्षेत्र) में अमेरिकी सैन्य गतिविधियों को ट्रैक करने में भी सक्षम होगा. इकॉनोमिक टाइम्स को सूत्रों ने बताया है कि चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज का एयरोस्पेस इंफॉर्मेशन रिसर्च इस प्रोजेक्ट को श्रीलंका के डोंड्रा खाड़ी के पास जंगलों में लगाएगा.

सूत्रों का कहना है कि अगर चीन श्रीलंका में यह रडार लगा लेता है तो यह क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों के लिए हानिकारक होगा. इससे भारत के दक्षिणी हिस्से की सामरिक संपत्तियां रडार की सीमा में आ जाएंगी.

आशंका जताई जा रही है कि रडार अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की यात्रा करने वाले भारतीय नौसेना के जहाजों की आवाजाही को ट्रैक कर सकता है. चीनी रडार कुडनकुलम और कलपक्कम परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की निगरानी भी कर सकता है.

श्रीलंका में चीन का बढ़ता दखल

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श्रीलंका दक्षिणी हिंद महासागर में चीन की महत्वाकांक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है. वहीं, आर्थिक तंगी में फंसे श्रीलंका ने चीन से भारी कर्ज ले रखा है, इसलिए वो चीन की इन मांगों को अस्वीकार भी नहीं कर सकता.  जानकार मानते हैं कि चीन ने श्रीलंका को अपने कर्ज के जाल में फंसा लिया है. द्वीप देश की विदेश नीति में भी चीन का दखल देखने को मिल रहा है. चीन श्रीलंका के बड़े संस्थानों में भी अपना प्रभाव रखता है.

डोंड्रा खाड़ी श्रीलंका के सबसे दक्षिणी सिरे पर स्थित है. यह ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि एक वक्त यह श्रीलंका की राजधानी हुआ करता था.

हंबनटोटा बंदरगाह भारत के लिए चिंता का विषय

चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के लिए लीज पर ले रखा है और पिछले साल चीनी सेना के एक जासूसी जहाज यहां रुका था. 

चीनी जासूसी जहाज युआन वैंग 5 हंबनटोटा बंदरगाह पर 6 दिन रुका था. कहा गया कि यह जहाज ईंधन भरने और अन्य दूसरी तरह की आपूर्ति के लिए रुका था. भारत ने आधिकारिक तौर पर आपत्ति जताते हुए श्रीलंका से कहा था कि वो चीनी जहाज को वहां रुकने की अनुमति न दे लेकिन श्रीलंका चीन के दबाव के आगे झुक गया था. चीन का जहाज सैटेलाइट और मिसाइल ट्रैकिंग प्रणाली से लैस था और उसे खोजबीन और पड़ताल में महारत हासिल थी. 

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रिपोर्ट्स में कहा गया कि जहाज को इस शर्त पर अनुमति दी गई थी कि वह श्रीलंका के समुद्र में शोध नहीं करेगा और स्वचालित पहचान प्रणाली ( Automatic Identification System) को चालू रखेगा.

हंबनटोटा बंदरगाह को चीन ने 1.12 अरब डॉलर में 99 साल की लीज पर लिया है और साल 2017 से वो इसे चला रहा है. इस बंदरगाह को बनाने के लिए श्रीलंका ने चीन के एक फर्म को 1.4 अरब का भुगतान किया था. यह पैसा भी चीनी कर्ज से आया था. भारत इसे लेकर चिंतित इसलिए भी रहता है क्योंकि दक्षिणी राज्यों से इस पोर्ट की दूरी महज कुछ किलोमीटर ही है.

चीन हंबनटोटा पोर्ट को बना सकता है सैन्य अड्डा

भारत हमेशा से यह चिंता जाहिर करता रहा है कि ये बंदरगाह चीन का सैन्य अड्डा बन सकता है. भारत हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति को लेकर हमेशा से आशंकित रहा है. रडार बेस बनाने की खबर भारत के लिए चिंता का विषय होने वाला है.

श्रीलंका स्थित एक स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक और एक थिंक टैंक, सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज, त्रिंकोमाली के प्रमुख ए. जतींद्र ने कहा, 'समय-समय पर, श्रीलंकाई सरकारें 'गुटनिरपेक्षता', 'तटस्थता' और 'इंडिया फर्स्ट' जैसी अपनी विदेश नीति के रुख के बारे में बयानबाजी करती रही हैं. इसके अलावा, श्रीलंका
कहता रहा है कि वो महाशक्तियों के सत्ता संघर्ष में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता है. हालांकि, चीन द्वारा रडार बेस स्थापित करने की योजना की खबर ने श्रीलंका की विदेश नीति के बारे में गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.'

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भारत को चारों तरफ से घेरने की कोशिश में चीन

चीन भारत से लगे अपने पड़ोसी देशों के आसपास अलग-अलग बेस के जरिए भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है. चीन भारत के चारों ओर एक घेरा बना रहा है जिसे 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' के नाम से जाना जाता है.

'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' हिंद महासागर क्षेत्र में संभावित चीनी इरादों का एक जियो पॉलिटिकल थ्योरी है. इसके जरिए चीन सैन्य और वाणिज्यिक सुविधाओं का नेटवर्क तैयार कर रहा है. स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स चीन से सूडान बंदरगाह तक फैला हुआ है.

स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स के जरिए ही चीन ने बांग्लादेश में कंटेनर सुविधा, पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह और श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को स्थापित किया है. चीन अपने नौसैनिक ठिकानों के जरिए भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों में बंदरगाह परियोजनाओं का समर्थन कर रहा है. 

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