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चीन में ज्यादा बच्चे पैदा करने पर सरकार का जोर! दिए जा रहे ये ऑफर

चीन की स्टेट काउंसिल ने सोमवार को इस संबंध में दिशानिर्देश जारी किए हैं ताकि बच्चों के जन्मदर को बढ़ाया जा सके, चाइल्डकेयर सिस्टम का विस्तार किया जा सके, शिक्षा को और मजबूत किया जा सके. साथ ही बच्चे पैदा करने के लिए अनुकूल सामाजिक माहौल तैयार किया जा सके.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

चीन में जन्म दर लगातार घट रही है. ऐसे में चीन ने कई नीतियों का ऐलान किया है, जिनमें बच्चे के पैदा होने पर सब्सिडी सिस्टम और ज्यादा बच्चे पैदा करने पर परिजनों के टैक्स में कटौती जैसी नीतियां शामिल हैं. इसका उद्देश्य लोगों को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करना है ताकि जन्म दर को बढ़ाया जा सके.

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चीन की स्टेट काउंसिल ने सोमवार को इस संबंध में दिशानिर्देश जारी किए हैं ताकि बच्चों के जन्मदर को बढ़ाया जा सके. इनमें प्रसव सहायता सेवाओं को बढ़ाना, चाइल्ड केयर सिस्टम का विस्तार, शिक्षा, आवास और रोजगार को लेकर मदद करने जैसे 13 सूत्रीय रूपरेखा तैयार की है. साथ ही बच्चे पैदा करने के लिए अनुकूल सामाजिक माहौल तैयार करना भी सरकार की प्राथमिकता है. गाइडलाइंस में कहा गया है कि नई नीतियों के दम पर चाइल्डबर्थ सब्सिडी सिस्टम में सुधार किया जा सकेगा.

स्टेट काउंसिल ने शादी और बच्चे पैदा करने की नई संस्कृति को बढ़ावा देने पर जोर दिया है. उन्होंने कहा कि सही उम्र में विवाह और माता-पिता द्वारा मिलकर बच्चों की देखभाल का महत्व समझाया जाना चाहिए. इनमें बेहतर मातृत्व बीमा, मातृत्व अवकाश, सब्सिडी और बच्चों के लिए चिकित्सा सुविधाएं शामिल हैं. काउंसिल ने स्थानीय सरकारों से बाल देखभाल केंद्रों के लिए बजट आवंटित करने और ऐसी सेवाओं के लिए कर और शुल्क में छूट देने की सिफारिश की है.

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बता दें कि चीन की आबादी 1.4 अरब है. पिछले साल वहां की जन्म दर रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई. इस दौरान भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया और वह दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया. चीन अपनी घटती आबादी से परेशान है और जन्म दर को बढ़ाना चाहता है.

युवा भारतीय आबादी के मुकाबले चीन की जनसंख्या उम्र के ढलान पर है. इसके कई कारण हैं, जिसमें लंबी होती जीवन अवधि और घटती जन्म दर है. पिछले साल चीन में 60 साल या इससे ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या करीब 30 करोड़ पर पहुंच गई. यानी इसकी कुल आबादी का लगभग 21.1 फीसदी हिस्सा हो गई. उसके एक साल पहले यह आंकड़ा करीब 28 करोड़ था.

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