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क्या जिनपिंग की जगह चीनी प्रीमियर के आने की वजह दोनों देशों का तनाव है? चीन के विदेश मंत्रालय ने दिया ये जवाब

जी-20 में जिनपिंग की भागीदारी न होने पर जब चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता से पूछा गया कि क्या जिनपिंग का भारत नहीं आना इस बात को दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति है? इस सवाल पर प्रवक्ता माओ निंग सिर्फ इतना कह पाईं कि चीन-भारत के संबंध कुल मिलाकर स्थिर रहे हैं और दोनों पक्षों ने विभिन्न स्तरों पर बातचीत और संवाद को बनाए रखा है.

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G-20 सम्मेलन में नहीं आ रहे हैं शी जिनपिंग
G-20 सम्मेलन में नहीं आ रहे हैं शी जिनपिंग

भारत जी-20 सम्मलेन को सफल और यादगार बनाने के लिए बड़े पैमाने पर कूटनीतिक तैयारियां कर रहा है. लेकिन भारत की हर कामयाबी को ईर्ष्या की नजर से देखने वाला हमारा पड़ोसी देश चीन इसे हजम नहीं कर पा रहा है. चीन ने इस सम्मेलन को कमतर दिखाने के लिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग का दिल्ली दौरा ही रद्द कर दिया है. हालांकि इससे पहले 2022 में इंडोनेशिया में जब जी-20 सम्मेलन हुआ था तो वहां राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहुंचे थे. लेकिन दिल्ली की बारी आने पर चीनी प्रशासन ने बहाने बनाने शुरू कर दिए हैं. 

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अब नई दिल्ली में 9-10 सितंबर को होने वाले इस सम्मेलन में चीन का प्रतिनिधित्व वहां के प्रधानमंत्री ली कियांग करेंगे. चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने एक बयान जारी कर कहा कि शी जिनपिंग नई दिल्ली में होने वाले 18वें जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे. हालांकि, माओ ने शी जिनपिंग के भारत न आने का कोई कारण नहीं बताया. 

हाल में चीन जारी किया था विवादित नक्शा

शी जिनपिंग के भारत न आने के फैसले को दोनों देशों के बीच जारी तनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. बता दें कि हाल ही में चीन ने अपने देश का नक्शा जारी किया था, जिसमें उसके विस्तारवादी नीति की झलक नीति मिली थी. इस नक्शे में चीन ने अक्साई चिन के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश को भी अपना हिस्सा बताया था. भारत ने इस नक्शे को लेकर चीन को फटकार लगाई थी. यूं तो भारत और चीन के बीच सीमा विवाद लंबा है लेकिन इस हालिया तनाव के बाद चीन ने कहा कि उसके राष्ट्रपति जी-20 में शामिल होने भारत नहीं आ रहे हैं. 

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क्या भारत-चीन के बीच तनाव की वजह से दिल्ली नहीं आ रहे जिनपिंग?

इसके बाद मंगलवार को जब चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग से पूछा गया कि क्या राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भारत नहीं आना और उनके बजाय प्रधानमंत्री ली कियांग को नई दिल्ली भेजना ये दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है? इस प्रश्न का माओ निंग ने गोल-मोल जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि चीन-भारत के संबंध कुल मिलाकर स्थिर रहे हैं और दोनों पक्षों ने "विभिन्न स्तरों पर बातचीत और संवाद को बनाए रखा है". 

गौरतलब है कि चीनी विदेश मंत्रालय ने ये स्पष्ट नहीं कहा कि दोनों देशों के रिश्ते सामान्य और मधुर हैं. प्रवक्ता माओ निंग ने दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का जिक्र किए बिना कहा कि "चीन-भारत संबंधों में निरंतर सुधार और विकास दोनों देशों और दोनों ओर की जनता की साझा हितों का पोषण करती है. हम द्विपक्षीय संबंधों को और बेहतर बनाने और आगे बढ़ाने के लिए भारत के साथ काम करने के लिए तैयार हैं."

जी-20 पर आया ये बयान 

चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता से जब जी-20 सम्मेलन पर पूछा गया तो उन्होंने कहा कि चीन हमेशा से ऐसे सामूहिक गतिविधियों को उच्च महत्व देता है और प्रासंगिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेता है. माओ निंग ने कहा, "हम इस साल के शिखर सम्मेलन की मेजबानी में भारत का समर्थन करते हैं और जी-20 शिखर सम्मेलन को सफल बनाने के लिए सभी पक्षों के साथ काम करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए जी-20 एक अहम फोरम है.  

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सांकेतिक है ली कियांग की भागीदारी

चीन भले ही जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए भारत की मेजबानी को समर्थन देने का दावा करता हो, लेकिन शी जिनपिंग को नहीं भेजकर चीन ने अपने छिपे हुए मंसूबे को उजागर कर दिया है. चीनी की राजनीतिक व्यवस्था में राष्ट्रपति ही सर्वेसर्वा होता है. शी जिनपिंग चीनी गणराज्य के न सिर्फ राष्ट्रपति हैं बल्कि वे चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी के सुप्रीम कमांडर भी हैं और चीन से जुड़े सारे फैसले उनके ही टेबल से होकर गुजरते हैं. ऐसे में जी-20 में ली कियांग की भागीदारी महज सांकेतिक रह जाती है. 

वर्ल्ड जीडीपी का 85% जी-20 के पास

ऐसा नहीं है कि जी-20 में शी जिनपिंग के बराबरी के कद का नेता नहीं आ रहा है, या फिर जी-20 का प्लेटफॉर्म कोई छोटा-मोटा मंच हो. बता दें कि G-20 दुनिया के प्रमुख संगठनों में से एक है. जी-20 के सदस्य देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत से अधिक और विश्व जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई प्रतिनिधित्व करते हैं.  

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन, ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री एंथनी अल्बनीस, जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़, ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ऋषि सुनक, जापानी प्रधान मंत्री फुमियो किशिदा और ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा उन G20 नेताओं में से हैं जिन्होंने इस सम्मेलन में पहले ही अपनी भागीदारी की पुष्टि कर दी है.

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भारत को कामयाबी का श्रेय नहीं लेने देना चाहता चीन

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का रुख भारत को जी-20 की अध्यक्षता के अंत में किसी भी प्रकार की "सफलता" का दावा करने से रोकने के लिए एक सोचा-समझा कदम हो सकता है. पिछले साल बाली में शिखर सम्मेलन में सर्वसम्मति हासिल करने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए यह विशेष रूप से प्रासंगिक है. दिल्ली में भी बाली में प्रदर्शित सहयोग की भावना जारी रहने की उम्मीद थी, लेकिन हाल के घटनाक्रम ने इसे प्रभावित किया है. रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन भी इस सम्मेलन में अपनी राजनीतिक विवशताओं की वजह से नहीं आ रहे हैं.

भारत की चुनौती से तिलमिलाया है चीन

हाल के वर्षों में भारत ने आर्थिक, रक्षा और दूसरे भू-राजनीतिक मंचों पर चीन की दादागीरी को चुनौती दी है. चीन और भारत के बीच सीमा का विवाद तो दशकों को पुराना है. एक शक्तिशाली और आत्मनिर्भर भारत ने चीन की विस्तारवादी नीति को रोक दिया है. इसलिए चीन का चिढ़ना लाजिमी है. 

जून 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीन के विश्वासघात के बाद दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति बन गई थी. इसके बाद से भारत और चीन के बीच संबंध गंभीर तनाव में हैं.

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भारतीय और चीनी सैनिक पूर्वी लद्दाख में कुछ स्थानों पर तीन साल से अधिक समय से टकराव की स्थिति में हैं. इस टकराव को दूर करने के लिए दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच 10 से ज्यादा दौर की वार्ता हो चुकी है. भारत लगातार यह कहता रहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति और शांति समग्र संबंधों को सामान्य बनाने के लिए महत्वपूर्ण है. 

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