चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को बड़ा झटका लगा है. कई महीनों की अटकलों के बाद इटली आधिकारिक रूप से चीन के इस प्रोजेक्ट से अलग हो गया है. इटली 2019 में चीन के इस ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल हुआ था और वह प्रोजेक्ट में शामिल होने वाला एकमात्र यूरोपीय देश था.
जॉर्जिया मेलोनी ने पिछले साल जब इटली के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. उस समय उन्होंने संकेत दे दिए थे कि चीन के इस प्रोजेक्ट से इटली अलग होना चाहता है. इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि इस प्रोजेक्ट से इटली को कुछ खास फायदा नहीं है.
इससे पहले पांच सितंबर को बीजिंग के दौर पर इटली के विदेश मंत्री एंटोनियो तजानी ने बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट की आलोचना करते हुए कहा था कि यह प्रोजेक्ट हमारी उम्मीदों के अनुरूप नहीं है. उन्होंने कहा था कि अगर इटली इस परियोजना से बाहर निकलता है तो इसे चीन के लिए शर्मनाक माना जाएगा और दूसरे देश भी प्रोजेक्ट में शामिल होने के बारे में दोबारा सोच सकते हैं.
क्या है बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट का मकसद?
चीन ने 2013 में बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य कई देशों को सड़कों, रेलवे, और पोर्ट्स के साथ जोड़ना था. बीआरआई जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना है जिसके जरिए वो चीन को व्यापार के लिए एशिया, यूरोप, अफ्रीका से जोड़ना चाहते हैं. इसे नया सिल्क रूट भी कहा जाता है. इस प्रोजेक्ट में बड़े बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए चीन भारी खर्च कर रहा है. हालांकि, आलोचक कहते हैं कि चीन इसे अपने भूराजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को बढ़ाने के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.
चीन की बेचैनी इससे भी बढ़ी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पहले भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा शुरू करने की योजना की घोषणा की थी, जिसमें भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका शामिल हैं.
पीएम मोदी ने इसका ऐलान करते हुए कहा था कि आज हम सभी एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक साझेदारी पर पहुंचे हैं. आने वाले समय में यह भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक एकीकरण का एक प्रमुख माध्यम होगा.यह गलियारा पूरी दुनिया की कनेक्टिविटी और सतत विकास को एक नई दिशा देगा.