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रनवे, हैंगर और सर्विलांस कैमरे... म्यांमार के कोको द्वीप पर चीन का सीक्रेट सैन्य अड्डा! भारत के लिए बढ़ेगी चिंता

इस साल जनवरी में मैक्सर टेक्नोलॉजीज द्वारा ली गई सैटेलाइट तस्वीरों में चौंकाने तथ्य सामने आए हैं. म्यांमार के नियंत्रण में शामिल कोको आइलैंड पर सैन्य निर्माण वाली गतिविधियां देखी जा रही हैं. आशंका है कि चीन के इशारे पर म्यांमार ये निर्माण कर रहा है. असल में चीन हिंद महासागर तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए आसान विकल्प भी तलाश रहा है.

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1950 के दशक के अंत में जनरल ने विन की बनाई दंडात्मक कॉलोनी कोको द्वीप पर कुछ निर्माण कार्य देखे जा रहे हैं. ये निर्माण कार्य संदेह पैदा कर रहे हैं कि कहीं इन्हें जासूसी या विशेष निगरानी के लिए तो नहीं बनाए जा रहा है. कोको द्वीप समूह पर म्यांमार का नियंत्रण है. इस साल जनवरी में मैक्सर टेक्नोलॉजीज द्वारा ली गई सैटेलाइट तस्वीरों से ग्रेट कोको द्वीप क्षेत्र में नई इमारतों का बनना सामने आया है. यहां इसके सेंटर में दो नए बने हैंगर देखे जा सकते हैं और इसके साथ ही उत्तर में कुछ नई इमारतें भी दिख रही हैं.

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संभव है कि नौसैनिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए बड़ा बेस भी तैयार किया गया है. तस्वीर में 2300 मीटर लंबे रनवे भी देखा गया है, जो एक दशक पहले केवल 1300 मीटर का था. इस पूरे मामले पर सबसे पहले चैथम हाउस ने ध्यान आकर्षित कराया है. चैथम हाउस एक थिंक टैंक है जिसका हेडक्वार्टर लंदन में है. 

क्या म्यांमार की निर्माण गतिविधि में चीन भी शामिल?

संभव है कि म्यांमार जुंटा द्वीप पर गुप्त रूप से समुद्र में निगरानी के चलाए जाने वाले अभियानों के तहत इस तरह की तैयारी कर रहा हो. इसमें अक्सर चीन की मिलीभगत रही है. ऐसे में इस तरह के निर्माण में भी संदेह जताया जा रहा है कि कहीं न कहीं इस गतिविधि में चीन शामिल है.

तख्तापलट के बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पर जुंटा की निर्भरता इस संदेह को मजबूत करते हैं. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार के घनी आबादी वाले शहरों के भीतर चीनी संस्थाओं की ओर बड़ी संख्य में सर्विलांस कैमरे लगाए गए थे. ये सभी उस संदेह को बढ़ावा दे रहे हैं जिसके कयास निर्माण को देखते हुए लगाए जा रहे हैं. 

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कोको द्वीप पर दिख रहे निर्माण

देखते-देखते बन गई हैं 200 इमारतें

कोको द्वीप समूह में इस तरह के गुप्त उपस्थिति PLA (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) को एक मजबूत स्थिति मिलेगी. वह मलक्का जलडमरूमध्य के बजाय हिंद महासागर तक अपनी आसान पहुंच बनाने के लिए वैकल्पिक रास्तों को मजबूत कर रहा है. अभी चीन मलक्का जलडमरूमध्य पर निर्भर है. इसके लिए चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे के माध्यम से देश में कई बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू कर रहा है. एक थ्री-डाइमेंशनल व्यू को देखते हुए यहां 200 इमारतों के निर्माण की पुष्टि होती है, जिनमें कहा जा रहा है कि यहां द्वीप पर म्यांमार के सैन्य कर्मियों और उनके परिवार के आवास हैं. 

पहले भी चीन कर चुका है सैन्य उद्देश्यों के लिए द्वीप का इस्तेमाल

द्वीप पर चीन की इस तरह की रणनीतिक और संदेहजनक उपस्थिति कोई नई बात नहीं है. रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 2009 मे भारत ने म्यांमार के सामने साल 2009 में इस मुद्दे को उठाया था. 1990 के दशक की शुरुआत में भी, चीन द्वारा सैन्य और नौसैनिक उद्देश्यों के लिए इन द्वीपों का उपयोग करने की खबरें लगातार आती रही हैं.

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के 2014 के एक पेपर में कहा गया है कि चीन द्वारा अंडमान सागर में कम से कम मनौंग, हिंगगी, ज़ादेतकी और म्यांमार में कोको द्वीप समूह में SIGINT श्रवण केंद्रों के बनाए जाने की रिपोर्ट है. यहां चीनी टेक्निशियनों और प्रशिक्षकों ने यांगून, मौलमीन और मेरगुई के पास नौसैनिक ठिकानों और रडार से लैस नेवल बेस स्थापित करने के लिए काम किया है. भारतीय तट रक्षक ने अंडमान द्वीप समूह से म्यांमार के झंडे लहराते हुए मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों को रोका है. निरीक्षण करने पर वे सभी चीनी नागरिक निकले, जिनके पास से चालक दल के रेडियो और गहराई में प्रयोग किए जाने वाले ध्वनि मिले जो कि पनडुब्बी में उपयोग किए जाते हैं. 

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कोको द्वीप पर बना रनवे

चीन का स्पाई बेस बनाना, चिंता का विषय

अंडमान और निकोबार कमांड विशिष्ट रूप से नौसेना, वायु सेना और सेना के साथ मिलकर काम करने वाली भारत की एकमात्र कमांड है. यह क्षेत्र भारत के लिए महत्वपूर्ण सामरिक महत्व रखता है क्योंकि कई व्यापारिक चैनल इसके माध्यम से गुजरते हैं. इस क्षेत्र में चीन का बढ़ती दखल के बाद, भारत वहां अपनी समुद्री और निगरानी क्षमताओं को मजबूत करने पर विचार कर रहा है.

एकीकृत कमांड की स्थापना 2001 में दक्षिण पूर्व एशिया में भारत के रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए की गई थी, जिससे क्षेत्र में अधिक सैन्य ताकत की तैनाती हुई. हाल के वर्षों में, चीन हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में अपने नौसैनिक संचालन का विस्तार कर रहा है, अक्सर अपनी पनडुब्बी गतिविधियों से एंटी-पायरेसी ऑपरेशन करता है.

यहां पास में एक स्पाई बेस बनाकर चीन इस संचालन पर बारीकी से निगरानी कर सकता है और यह चिंता का विषय है. यहां से ओडिशा के तटीय क्षेत्र के पास श्रीहरिकोटा स्थित इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) और डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान और सैन्य संगठन) पर भी संभावित निगरानी हो सकती है और यह चिंता की बात है.

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