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कौन थीं Comfort Women, जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना का सबसे खौफनाक चेहरा देखा

जापान की शाही सेना ने सालों तक कोरिया, वियतनाम और फिलीपींस की लड़कियों को यौन गुलाम बनाकर रखा. ये कमउम्र लड़कियां थीं, जिन्हें नाम दिया गया कंफर्ट वुमन. हर दिन 20 से 40 बलात्कार झेलती इन बच्चियों को एक केमिकल भी दिया जाता, ताकि वे प्रेग्नेंट न हों. नब्बे के दशक में पीड़िताओं ने पहली बार अपनी सच्चाई दुनिया को बताई.

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जापानी इंपीरियल आर्मी ने कई देशों की महिलाओं को यौन गुलाम बनाकर रखा. (Getty Images)
जापानी इंपीरियल आर्मी ने कई देशों की महिलाओं को यौन गुलाम बनाकर रखा. (Getty Images)

दूसरे विश्व युद्ध को खत्म हुए 7 दशक से ज्यादा बीता, लेकिन जख्म अब भी ताजा हैं. हाल ही में दक्षिण कोरिया ने जापानी सैनिकों के सताए हुए अपने लोगों के लिए भारी-भरकम मुआवजे का एलान किया. इसके बाद भी लोगों में गुस्सा है. वे मानते हैं कि जापान ने तकलीफ दी, तो उसकी भरपाई भी उन्हें ही करनी चाहिए. इस बीच कंफर्ट वुमन का भी जिक्र आ रहा है, जिनसे माफी तक मांगने से जापान कतराता रहा. 

क्या है ताजा मामला
साल 2018 में कोरियाई सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि जापान की दो कंपनियों को साउथ कोरिया के उन पीड़ितों को मुआवजा देना होगा, जिनसे लंबे समय तक जबरन मजदूरी करवाई गई. मामला साल 1910 से लेकर 1945 के बीच का है, जब कोरिया समेत एशिया के कई हिस्सों पर जापान का राज था. तब इस देश ने लोगों पर कई जुल्म किए. बाद में टोक्यो ने माफी तो मांगी लेकिन मुआवजा देने से इनकार कर दिया. इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था. अब चीन और नॉर्थ कोरिया की बढ़ती ताकत को देखते हुए इन दोनों ने दोबारा करीब आने का फैसला लिया. ताजा फैसले को इसी से जोड़ा जा रहा है. 

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इस तरह हुई कंफर्ट स्टेशनों की शुरुआत
सेकंड वर्ल्ड वॉर की शुरुआत में जापान के लाखों सैनिक जंग में उतरे हुए थे. उनके पास खाने-पीने और गोला-बारूद की कोई कमी नहीं थी. कमी थी तो शरीर की जरूरत पूरी करने के लिए लड़कियों की. जापान ने इसका भी तरीका खोजा. उसने कंफर्ट स्टेशन तैयार किए. ये वो इमारतें थीं, जहां खाने-पीने की चीजों के साथ औरतें भी रखी जातीं. ये सेक्स स्लेव थीं, जिन्हें इस आधार पर चुना जाता कि वे यौन तौर पर एक्टिव न रही हों. ऐसे में ज्यादातर बच्चियां ही कंफर्ट स्टेशन पर लाई जाने लगीं. 

comfort women south korea by japan imperial army during world war second
वॉर क्राइम के तहत महिलाओं पर हिंसा पर कम ही बात होती है. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

ऐसा था चुनाव का तरीका
आमतौर पर गरीब घर की लड़कियों को टारगेट किया जाता. उन्हें किसी फैक्ट्री में काम के बदले अच्छे पैसों का लालच दिया जाता. परिवार के राजी होते ही लड़कियां ट्रकों में भरकर ऐसी जगहों पर भेज दी जातीं, जहां वे अकेली पड़ जातीं. यहां वे कंफर्ट वुमन कहलातीं, जिनका कोई नाम नहीं, बल्कि एक नंबर होता था. कई बार सैनिक लड़कियों को गांव से जबरन भी उठा लाते थे. कोई उनका विरोध नहीं कर पाता था. 

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ऑर्गेनाइज्ड तरीके से सेक्स इंडस्ट्री खड़ी हो गई
रोज एक-एक लड़की 30 से 40 सैनिकों की जरूरत पूरी करती. विरोध पर मारपीट मामूली बात थी. वैसे कई संस्थाएं मानती हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के काफी पहले से ही जापान ने यौन गुलाम रखने शुरू कर दिए थे. यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के मुताबिक साल 1932 से अमेरिका के सामने समर्पण यानी 1945 तक जापान ने बड़े ही संगठित तरीके से पूरी की पूरी सेक्स इंडस्ट्री खड़ी कर दी. इसमें लाखों लड़कियां कोरिया की थीं, तो बहुत सी वियतनाम, फिलीपींस और चीन से भी थीं. 

क्या होता था लड़कियों के साथ
कंफर्ट वुमन यानी आराम या राहत देने वाली महिला. ये जापानी टर्म ianfu से आया है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है- ian यानी राहत और fu यानी महिला. युद्ध के दौरान महिलाओं पर हिंसा के ढेरों वाकये होते हैं, लेकिन जापान ने क्रूरता की सारे हदें पार कर दीं. रेप से सहमी और चीखती हुई लड़कियों का गैंगरेप होता ताकि बाकी लड़कियों को उससे सबक मिल सके. अगर कोई लड़की यौन रोग से ग्रस्त हो जाती तो उसे या तो जला दिया जाता, या बंदूक के कोने से मारकर उसकी जान ले ली जाती क्योंकि सैनिक गुलाम लड़कियों पर गोली भी खर्च नहीं करना चाहते थे.

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comfort women south korea by japan imperial army during world war second
जापान की सेना ने दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान जमकर तबाही मचाई थी. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

दिया जाता था इंजेक्शन
लड़कियां प्रेग्नेंट न हों, इसके लिए हर हफ्ते उन्हें एक इंजेक्शन दिया जाता. नंबर 606 नाम के इस इंजेक्शन के साइड इफेक्ट्स पर काफी बाद में रिसर्च हुई. इसमें पता लगा कि प्रेग्नेंसी रोकने के नाम पर दिए जा रहे इस केमिकल ने लाखों लड़कियों की सेहत खत्म कर दी. इंजेक्शन में डाला जाता सेल्वरर्सन नाम का केमिकल एक ऑर्गेनोऑर्सेनिक कंपाउंड है, जो पेनिसिलिन की खोज से पहले सिफलिस से जूझते मरीजों को दिया जाता था. हर थोड़े दिन में इस जहरीले केमिकल की मात्रा शरीर में जाने के ढेरों साइड इफेक्ट हैं, जिसमें से कुछ हैं वजाइनल ब्लीडिंग, पेट में लगातार दर्द, वजन कम या ज्यादा होना, उल्टियां होना और फर्टिलिटी खत्म हो जाना. 

लापता हो गईं ज्यादातर औरतें
युद्ध खत्म होने और जापान के अमेरिका के सामने सरेंडर के बाद भी यौन गुलाम की तरह सालों या महीनों काट चुकी लड़कियां सामान्य जिंदगी नहीं जी सकीं. ज्यादातर किसी न किसी स्थाई विकलांगता से जूझ रही थीं, किसी की आंखें फोड़ दी गई थीं, किसी के हाथ-पैर काट दिए गए थे. बहुतों के शरीर पर गर्म लकड़ी से कुछ न कुछ उकेर दिया गया था. लगभग सब भीषण ट्रॉमा से जूझ रही थीं.

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कइयों ने घर लौटना भी चाहा लेकिन वहां समाज ने उन्हें अपनाया नहीं. छोटी उम्र में एकाएक लापता हुई ये लड़कियां फिर हमेशा के लिए लापता हो गईं. जो बाकी रहीं, उनमें से कुछ ने आवाज उठाई. 

comfort women south korea by japan imperial army during world war second
रेस्क्यू की गई कोरियाई महिलाएं (The Fight for Justice)

इस तरह सामने आई असलियत
अपनी कहानी कहने वालों में सबसे पहली महिला थी किम-हक-सुन. अगस्त 1991 में किम टेलीविजन पर आईं और अपनी कहानी सुनाई. इसके बाद कंफर्ट वुमन नाम की अफवाह को एक चेहरा मिला. इससे पहले दब-छिपकर ही बात होती रही थी. फिर तो चेहरे से चेहरे जुड़ते ही चले गए. ये वो औरतें थीं, जिनके शरीर और दिमाग अब भी कंफर्ट स्टेशन के जख्म झेल रहे थे.

संयुक्त राष्ट्र ने जापान की इंपीरियल आर्मी की जघन्यता को इतिहास की सबसे बड़ी सेक्सुअल स्लेवरी माना, जिसे सरकार तक ने दबाकर रखा था. 

एक महिला की कहानी...
कोरियाई महिला ह्वांग सो-गुन की टेस्टिमोनी ने यूएन में शामिल लोगों को रुला दिया. उन्होंने बताया- मैं 17 साल की थी, जब कुछ सैनिक घर आए और ट्रक में बिठाकर दूर ले गए. ट्रक में मेरी उम्र की और भी लड़कियां थीं. लंबे सफर के बाद हमें एक नदी के पास बनी सूनी फैक्ट्री में छोड़ दिया गया. हर लड़की को एक छोटे कमरे में- और हर कमरे का एक नंबर था. कई घंटों बाद एक सैनिक मेरे कमरे में आया, रेप किया और मारपीट कर चला गया. कमरे के बाहर बहुत से सैनिक थे. वे बारी-बारी से अंदर आते और रेप करके मुझे दूसरे के हवाले कर देते. उस एक रात में कितने लोग कमरे के अंदर आए, मुझे याद नहीं. विरोध पर गैंगरेप होता और फिर कपड़े उतारकर बर्फीली पड़ी नदी में फेंक दिया जाता. बाद में जाना, वो मुंडन नदी थी. 

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जापान की वो लैब, जहां खतरनाक प्रयोग होते थे. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

इंपीयिरल आर्मी ने कई खौफनाक काम किए
उसके यूनिट 731 को दुनिया के सबसे क्रूर वॉर क्राइम में गिना जाता है. जापानी सेना ने सालों तक चीनी सेना और यहां तक कि आम चीनियों पर भी खतरनाक एक्सपेरिमेंट किए. यूनिट 731 दरअसल एक लैब हुआ करती, जहां कई तरह के खौफनाक बायोलॉजिकल प्रयोग युद्ध बंदियों पर हुए. चीन में बनाई थी लैब यूनिट 731 नाम की ये लैब चीन के हर्बिन क्षेत्र में थी. जापानी इम्पीरियल आर्मी ने बहुत सोच-समझकर लैब चीनी इलाके में बनाई थी ताकि किसी को शक न हो और प्रयोग चलते रहें. 

लेफ्टिनेंट जनरल इशाई शिरो ने इस यूनिट की शुरुआत की. वे मानते थे कि युद्ध बंदियों को खाना-पीना देने के दौरान उनके शरीर का कोई इस्तेमाल भी होना चाहिए ताकि आगे मेडिकल साइंस को फायदा मिल सके. तो इनपर खतरनाक प्रयोग किए जाने लगे, जैसे जानलेवा वायरस या बैक्टीरिया को शरीर में डालना.

ऐसे भयंकर प्रयोग हुआ करते थे
तब सिफलिस, गोनोरिया और एंथ्रेक्स जैसी बीमारियां लगातार सैनिकों को जान ले रही थीं. जापानी साइंटिस्ट चीनियों के शरीर में इन यौन रोगों के बैक्टीरिया डालने लगे और फिर दवा देकर देखने लगे कि किस दवा से, कैसा असर होता है. औरतों को प्रेग्नेंट कर गर्भ पर भी प्रयोग हद तो तब हुई, जब सेहतमंद चीनी औरतों को, बीमार चीनी सैनिकों से जबर्दस्ती संबंध बनाने को कहा जाने लगा ताकि ये समझ आए कि यौन बीमारियां कैसे और कितनी तेजी से फैलती हैं. या फिर बैक्टीरिया का गर्भ में पल रहे शिशु पर कैसा असर होता है.
 

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