अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ओबामा प्रशासन के जलवायु परिवर्तन की नीतियों को छलावा बताया है और पेरिस समझौता से अमेरिका को अलग करने की धमकी दी है. यह समझौता पिछले साल से प्रभावी हो हुआ है. सोमवार को व्हाइट हाउस के प्रवक्ता सीन स्पाइसर ने बताया कि आज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पूर्ववर्ती ओबामा प्रशासन के जलवायु परिवर्तन समझौते को उलटने के लिए कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करेंगे.
ओबामा प्रशासन ने जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने की कोशिश के तहत यह समझौता किया था. शिन्हुआ न्यूज एजेंसी ने सीन स्पाइसर के हवाले से बताया कि ट्रंप कानूनी बाधाओं को कम करके देश के ऊर्जा संसाधनों का इस्तेमाल करने के लिए कार्यकारी आदेश जारी करेंगे. इससे सस्ती बिजली उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी, जिससे आर्थिक विकास में तेजी आएगी और नौकरियां पैदा होंगी.
रविवार को अमेरिकी पर्यावरण संरक्षक एजेंसी के एडमिनिस्ट्रेटर स्कॉट प्रिट ने बताया कि इस कार्यकारी आदेश से स्वच्छ ऊर्जा योजना को उलट दिया जाएगा. ओबामा प्रशासन ने ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों को कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पेरिस समझौता किया था. भारत की लंबी कोशिश के बाद इस समझौते पर सहमति बनी थी.
जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में ओबामा प्रशासन की यह शुरुआत दुनिया भर में सराही गई थी. एक सप्ताह पहले ट्रंप के पहले संघीय बजट में भी जलवायु परिवर्तन को उलटने की मंशा साफ जाहिर की गई थी. उन्होंने इसमें स्वच्छ ऊर्जा योजना के लिए फंड में कटौती समेत अन्य कदम उठाए.
क्या है पेरिस समझौता
जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने और वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को दो डिग्री सेल्सियस तक नीचे लाने के लिए यह समझौता किया गया था.
इसके तहत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कदम उठाने पर सहमति बनी थी. पेरिस में 197 देशों ने जलवायु परिवर्तन समझौते
को स्वीकार किया था. इसके तहत जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकसित देशों की ओर से विकासशील देशों की मदद के लिए साल 2020 से
100 अरब डॉलर हर साल देने की प्रतिबद्धता जताई गई. लिहाजा इस समझौते को विकासशील देश अपने खिलाफ मानते हैं. ऐसे में ट्रंप ने इसे अब
उलटने की योजना बनाई है.