डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद कई कार्यकारी आदेश जारी किए हैं. ट्रंप के आदेश के तहत अमेरिका में जन्म के आधार पर नागरिकता की संवैधानिकता को खत्म कर दिया गया है, जिसका देशभर में विरोध भी हो रहा है. लेकिन अब इस आदेश को अदालत में चुनौती दी गई है.
डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रभुत्व वाले 22 राज्यों और कई सिविल राइट ग्रुप्स ने ट्रंप के इस कार्यकारी आदेश को अदालत में चुनौती दी है. इस संबंध में अदालत में मामला दर्ज कराया गया है.
डेमोक्रेटिक प्रभु्त्व वाले राज्यों के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया और सैन फ्रांसिस्को ने मंगलवार को बॉस्टन की संघीय अदालत में पहला मामला दर्ज कराया. कहा गया कि राष्ट्रपति ट्रंप का ये फैसला अमेरिकी संविधान का उल्लंघन है. इस मुकदमे के बाद अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन और इमिग्रेंट्स संगठन ने भी अदालत का रुख किया.
न्यूजर्सी के डेमोक्रेटिक अटॉर्नी जनरल मैथ्यू प्लैटकिन ने मंगलवार को कहा कि ट्रंप के आदेश पर रोक के लिए अदालत का रुख किया गया है. राष्ट्रपति के पास व्यापक शक्ति होती हैं, लेकिन वह शहंशाह नहीं हैं. ट्रंप के फैसले के खिलाफ अदालत जाने से ट्रंप प्रशासन को ये स्पष्ट संदेश गया है कि हम हमारे लोगों और उनके बुनियादी संवैधानिक अधिकारों के लिए खड़े रहेंगे .
क्या कहता है अमेरिकी कानून
अमेरिकी संविधान में हुए 14वें संशोधन के तहत जन्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है. इसका मतलब है कि अमेरिका मे जन्म लेने वाला हर बच्चा खुद ही अमेरिका का नागरिक बन जाता है, भले ही उसके माता-पिता की नागरिकता कुछ भी रही हो.
बता दें कि अमेरिका में सबको बराबरी का अधिकार देने के मकसद से ये संविधान संशोधन 1868 में लागू हुआ था. लेकिन इसके बाद से लगातार अवैध प्रवासियों और घुसपैठ का मुद्दा सियासी दलों की ओर से उठाया जाता रहा है. खासतौर पर ट्रंप इसके सख्त खिलाफ थे और उन्होंने शपथ लेते ही कानून बदलने के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिया है.
ट्रंप का आदेश अमेरिकी कानून के उलट है जो वहां जन्मे हर बच्चे को नागरिकता प्रदान करता है. लेकिन नए आदेश के मुताबिक अगर जन्म के साथ किसी बच्चे को अमेरिका नागरिकता चाहिए तो उसके माता या पिता में से एक का अमेरिकी नागरिका होना अनिवार्य होगा. साथ ही किसी एक के पास ग्रीन कार्ड होना चाहिए या किसी एक का अमेरिकी सेना में होना जरूरी है.