पश्चिम अफ्रीकी देशों में इबोला वायरस का प्रकोप बदस्तूर जारी है. इबोला के प्रकोप से अब तक लगभग 900 लोगों की जान जा चुकी है, वहीं वर्ल्ड बैंक ने वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए 20 करोड़ डॉलर की आपात मदद देने की घोषणा की है. ये मदद लाइबेरिया, सेयरा लियोन और गिनी के लिए है.
जानकारी के मुताबिक, नाइजीरिया चौथा देश है जो इबोला वायरस की चपेट में आया है. खास बात यह है कि लाइबेरिया से लौटे और वायरस संक्रमण के शिकार बने नाइजीरिया के एक शख्स का इलाज करने वाले डॉक्टर भी वायरस की चपेट में आ गए हैं.
बीमारी का न तो विशेष इलाज न टीका
खास बात यह भी है कि इबोला का ना तो कोई टीका है और ना ही विशेष इलाज है. इसकी मृत्यु दर भी कम से कम 60 फीसदी है. वायरस के प्रकोप को देखते हुए बीते दिनों अमेरिकी शांति सेना ने तीन देशों से अपने सैकड़ों स्वयंसेवकों को बाहर निकाल लिया और अमेरिकी विदेश विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि दो स्वयंसेवकों को अलग रखा जा रहा है, क्योंकि वह विषाणु की चपेट में आकर मारे गए एक व्यक्ति के संपर्क में थे.
क्या है इबोला और क्या हैं रोग के लक्षण
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, इबोला एक क़िस्म की वायरल बीमारी है. अचानक बुखार, कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द और गले में खराश इसके लक्षण हैं. बीमारी होने के बाद रोगी को उल्टी होना, डायरिया और कुछ मामलों में अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव का होना सामान्य है. संक्रमण की पहचान मुश्किल है, जबकि रोगी को प्रभाव में लेने में वायरस को दो दिन से लेकर तीन सप्ताह तक का समय लगता है.
बताया जाता है कि मनुष्यों में इसका संक्रमण चिंपैंजी, चमगादड़ और हिरण आदि के सीधे सम्पर्क में आने से होता है, वहीं एक दूसरे के बीच इसका संक्रमण संक्रमित रक्त, द्रव या अंगों के मार्फत होता है. यहां तक कि इबोला के शिकार व्यक्ति के शव को छूने से भी इसका संक्रमण हो सकता है.
फिलहाल यह बीमारी अफ्रीका तक सीमित है, लेकिन इसका एक मामला फिलीपींस में भी पाया गया है. इस बीमारी की शुरुआत गिनी के दूर दराज वाले इलाके जेरेकोर में हुई, लेकिन अब इसका प्रकोप 20 लाख की आबादी वाली राजधानी कोनाक्राई तक हो गया है.
डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुसार, इबोला के रोगियों के शारीरिक द्रव और उनसे सीधे सम्पर्क से बचना चाहिए. साथ ही साझा तौलिये के इस्तेमाल से बचना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक स्थलों पर संक्रमित हो सकता है.