फेसबुक एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार गलत वजह से. अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की मदद करने वाली एक फर्म ‘कैम्ब्रिज एनालिटिका’ पर लगभग 5 करोड़ फेसबुक यूजर्स के निजी जानकारी चुराने के आरोप लगे हैं. इस जानकारी को कथित तौर पर चुनाव के दौरान ट्रंप को जिताने में सहयोग और विरोधी की छवि खराब करने के लिए इस्तेमाल किया गया है. इसे फेसबुक के इतिहास का सबसे बड़ा डेटा लीक कहा जा रहा है. आइए जानते हैं कि कैसे हुआ डेटा लीक का यह मामला पूरा मामला और किस तरह से इसका चुनाव में इस्तेमाल किया गया.
ऐसे एेप से रहें सावधान
आपके पास भी फेसबुक के माध्यम से तमाम दिलचस्प ऐप के रिक्वेस्ट आते होंगे जिनको डाउनलोड करने या उनमें आगे बढ़ने के लिए आपके पर्सनल डेटा एक्सेस की इजाजत मांगी जाती है. ऐसे में आपको अपने डेटा एक्सेस देने में सावधानी बरतनी होगी, क्योंकि डेटा चुराने का पूरा खेल यहीं से चल रहा है.
कैम्ब्रिज एनालिटिका (सीए) ने एक दूसरी कंपनी ग्लोबल साइंस रिसर्च (GSR) द्वारा विकसित एक एप्लीकेशन का इस्तेमाल करते हुए आसानी से ये डेटा हासिल किए थे. साल 2014 में जीएसआर ने एक पर्सनॉलिटी क्विज ऐप 'दिसइजयोरडिजिटललाइफ' शुरू किया, इसे कुछ 'मनोवैज्ञानिकों' द्वारा किए जाने वाला प्रयोग बताया गया. फेसबुक के माध्यम से सामने आने वाले इस अप्लीकेशन को 2,70,000 लोगों ने डाउनलोड किया. डाउनलोड करने वाले ग्राहकों का फेसबुक डेटा सीए के पास पहुंच गया.
यह अप्लीकेशन वास्तव में फेसबुक की डेवलपर नीति के पूरी तरह से खिलाफ था. लेकिन फेसबुक ने इसे रोका नहीं और इसके द्वारा लोगों की डेटा चुराने और उसे दूसरों को बेचने का सिलसिला जारी रहा. इस तरह सिर्फ 2,70,000 लोगों के डाउनलोड से सीए ने उनके पूरे फ्रेंडलिस्ट में पहुंच बनाकर करीब 5 करोड़ यूजर्स के बारे में जानकारी बिना उनकी इजाजत के हासिल कर ली.
चुनाव में कैसे मदद करती है कंपनी
कैम्ब्रिज एनालिटिका (सीए) का दावा है कि वह 'लोगों के व्यवहार में बदलाव से मिले डेटा का अध्ययन करती है और अपने क्लाइंट को चुनाव जिताने में मदद के लिए उन्हें जरूरी डेटा और उसका विश्लेषण मुहैया कराती है. इसके लिए वह अनुमान लगाने वाले एनालिटिक्स, व्यवहार विज्ञान और डेटा आधारित विज्ञापन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती है. कंपनी यूजर्स के डेटा बड़े पैमाने पर हासिल कर वोटर्स के व्यवहार का अध्ययन करती है और सोशल मीडिया तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपने लक्षित विज्ञापनों और अभियानों के द्वारा उन्हें प्रभावित करने की भी कोशिश करती है.
वैसे तो सीए भारत सहित कई देशों में सक्रिय है, लेकिन अब तक की उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के लिए काम करना और ट्रंप की जीत में मदद करना है. ऐसा माना जाता है कि कंपनी ने बिना किसी खास झुकाव वाले वोटर्स की पहचान की और उन्हें ट्रंप के पक्ष में करने में अहम भूमिका निभाई.
नीतीश को दिलाई भारी जीत!
कंपनी ने दावा किया है कि उसने साल 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार को भारी जीत दिलाने में मदद की थी. इस तरह एक बार फिर से सोशल मीडिया पर डेटा की सुरक्षा और फेसबुक की उसमें भूमिका को लेकर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं. कैम्ब्रिज एनालिटिका ने खुलासा किया है कि साल 2010 में उसकी पैरेंट कंपनी स्ट्रेटेजिक कम्युनिकेशंस लेबारेटरीज (SCL) ने बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू को भारी जीत दिलाने में मदद की थी. कंपनी का दावा है कि उसने जिन भी सीटों पर काम किया, उनमें से 90 फीसदी पर पार्टी को जीत हासिल हुई है.
वोटर्स को कैसे करती है कंपनी प्रभावित
कंपनी का दावा है कि वह जो राजनीतिक अभियान चलाती है, वह वैधानिक रूप से हासिल लोगों के व्यक्तिगत डेटा पर आधारित होती है. सीए का दावा है कि अमेरिका के 23 करोड़ वोटर्स के बीच उसने 5,000 डेटा पॉइट का इस्तेमाल किया और उनके बिल्कुल उपयुक्त प्रोफाइल तैयार किए ताकि बाद में लक्षित विज्ञापनों के द्वारा उन तक पहुंचा जा सके. हालांकि तमाम मीडिया रिपोर्ट और स्टिंग से यह खुलासा हुआ है कि सीए ने ये डेटा अनैतिक तरीके से हासिल किए हैं.
फेसबुक को इसके बारे में पता था!
वैसे तो फेसबुक इस डेटा लीक में अपनी किसी भी भूमिका से इंकार कर रही है, लेकिन यह जितने बड़े पैमाने पर हुआ है, उससे कंपनी पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती. न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, फेसबुक को काफी पहले ही डेटा चोरी की जानकारी हो गई थी, लेकिन उसने इसे सार्वजनिक करने की जगह अपने वकीलों के माध्यम से सीए से संपर्क किया. सीए ने फेसबुक को आश्वासन दिया कि उसने सभी डेटा को डिलीट कर दिया है. लेकिन अखबार ने खुलासा किया कि डेटा की कॉपियां अब भी सीए के पास है.
(www.dailyo.in से साभार)