कंप्यूटर्स की दुनिया में अब से पहले तेजी और सटीकता को लेकर लड़ाई लड़ी जा रही थी, लेकिन अब एक नई जंग की शुरुआत हो चुकी है. अब ऐसे कंप्यूटर्स बनाने की होड़ मची है, जो खुद देख पाएं, सुन पाएं, सोच सकें और इंसान की तरह व्यवहार कर सकें.
सोचने वाले कंप्यूटर्स की रेस में आईबीएम के पास 'वाटसन' है तो गूगल के पास अपनी नई 'क्वांटम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लैब' है, जिसमें नासा और यूनिवर्सिटी स्पेस रिसर्च एसोसिएशन (USRA) पार्टनर हैं.
इसी साल सितंबर में फेसबुक ने अपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लैब की घोषणा की थी. तभी लगा था कि फेसबुक भी गूगल और आईबीएम से पीछे रहना नहीं चाहता. इसी कड़ी में 9 दिसंबर 2013, सोमवार, को एक ऐसे शख्स को हायर किया है, जिसका कंप्यूटर्स की दुनिया में बहुत बड़ा नाम है और वह कंप्यूटर्स को सोचना सिखाता है. इस शख्स का नाम है यान लीकुन. लीकुन न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में एक प्रोफेसर हैं.
लीकुन ने खुद इसके बारे में अपनी फेसबुक वॉल पर जानकारी दी. लीकुन पार्ट टाइम में फेसबुक की लैब पर काम करेंगे, पार्ट टाइम ही पढ़ाएंगे भी और फेसबुक व न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर डाटा साइंस के बीच पार्टनरशिप भी देखेंगे.
यान लीकुन का कंप्यूटर्स के साथ पुराना रिश्ता है. वे काफी समय से कंप्यूटरों को सिखाते आए हैं. लीकुन ने ही कंप्यूटर को हैंडराइटिंग पहनाने की तकनीक सिखाई. यह तकनीक अब दुनिया के बहुत से बैंक इस्तेमाल करते हैं. हाल ही में उन्होंने एक ऐसी तकनीक इजाद की है कि कंप्यूटर्स खुद से सीख पाएं. इस कॉन्सेप्ट को 'अनसुपरवाइज्ड लर्निंग' का नाम दिया गया है.
'अनसुपरवाइज्ड लर्निंग' का कॉन्सेप्ट लीकुन का अकेले का नहीं था. उनके साथ थे यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के जैफरी हिंटन. हिंटन को मार्च 2013 में गूगल ने हिंटन को हायर कर लिया था. तो अब फेसबुक को भी कोई ऐसा ही खिलाड़ी चाहिए था सो लीकुन को हायर कर लिया.
इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की नई जेनरेशन को 'डीप लर्निंग' कहा जाता है. इस क्षेत्र में फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग और इसी कंपनी के सीटीओ मिशेल स्क्रोप्फर का बड़ा नाम है.
आने वाले दिनों में यदि कंप्यूटर इंसानों जैसा व्यवहार करते दिखें तो चौंकने वाली कोई बात नहीं. इसी को लेकर बड़े स्तर पर तैयारियां चल रही हैं. इस खेल में याहू भी कूद चुका है. स्पीच रिक्गनाइजेशन पर माइक्रोसॉफ्ट काम कर रहा है.
इस क्रांति के बाद कंप्यूटर किसी की तस्वीर और आवाज को आसानी से पहचान सकेंगे. यही नहीं, वे तब-तब आपके बच्चों की तस्वीर भी लेंगे, जब वे मुस्कुराएंगे या फिर जब कुछ खास पल होंगे. तस्वीरें लेने के बाद जब लंबे समय बाद आप खोजेंगे तो ये उन तस्वीरों को खोजने में आपकी मदद भी करेंगे.