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मरने के बाद नई तकनीक से जिंदा हुए 7 लोग

अगर कोई मरने के बाद जिंदा लौट आए तो इसे करिश्‍मा ही कहा जाएगा और यह करिश्‍मा ऑस्‍ट्रेलिया के मेलबर्न में हुआ है, जहां क्लिनिकली डेड होने के 40 मिनट बाद एक शख्‍स को वापस जिंदा कर दिया गया.

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Alfred Hospital
Alfred Hospital

अगर कोई मरने के बाद जिंदा लौट आए तो इसे करिश्‍मा ही कहा जाएगा और यह करिश्‍मा ऑस्‍ट्रेलिया के मेलबर्न में हुआ है, जहां क्लिनिकली डेड होने के 40 मिनट बाद एक शख्‍स को वापस जिंदा कर दिया गया. इसका श्रेय ऑस्‍ट्रेलिया की पहली मृत को जिंदा करने वाली तकनीक को जाता है.

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विक्‍टोरिया के रहने वाले 39 वर्षीय कॉलिन फीडल्‍र को दिल की बीमारी थी. वह 40-60 मिनट तक अल्‍फ्रेड अस्‍पताल में मृत पड़े रहे, लेकिन नई तकनीक ने उन्‍हें फिर से जिंदा कर दिया. फीडल्‍र ऐसे पहले शख्‍स नहीं हैं जिन्‍हें फिर से जिंदा किया गया हो. उनकी ही तरह 2 और लोगों को भी दिल का दौरा पड़ा और उन्‍हें भी इस तकनीक से जिंदा कर दिया गया.

अस्पताल में 2 नई मशीनों- मकेनिकल CPR मशीन और पोर्टेबल हार्ट-लंग मशीन का ट्रायल चल रहा है. सीपीआर जहां लगातार छाती को दबाने का काम करती है वहीं हार्ट-लंग मशीन मरीज के जरूरी अंगों जैसे कि दीमाग आदि तक ऑक्सिजन और खून का फ्लो बनाए रखती है.

हेराल्‍ड सन के मुताबिक पिछले साल फीडल्‍र को हार्ट अटैक आया था और उन्हें 40 मिनट तक क्लिनिकली डेड बताया गया. लेकिन अब उनका कहना है, 'मैं इतना भाग्यशाली हूं कि बयां तक नहीं कर सकता.'

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अब तक ऑटो पल्स मशीन और एक्स्ट्रा-कॉरपोरियल मेंब्रेन ऑक्सिजिनेशन तकनीक से दिल की बीमारी से ग्रस्‍त 7 मरीजों का इलाज किया जा चुका है. यह तकनीक डॉक्‍टर को दिल का दौरा पड़ने के कारणों को समझने और उसका इलाज करने का मौका देती है. इस दौरान मशीन खून और ऑक्सिजन सप्लाई बराबर करवाती रहती है, जिससे विकलांगता का खतरा जाता रहता है.

फीडल्‍र उन 3 मरीजों में से एक हैं, जो बिना किसी विकलांगता के अपने घर लौट पाए हैं.

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