पाकिस्तान में आज शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट की शुरुआत होगी. इस्लामाबाद में होने वाली इस समिट में शामिल होने के लिये भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर सहित SCO सदस्य देशों के 15 दिग्गज लीडर मौजूद रहेंगे. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इस दौरान डिनर का आयोजन करेंगे और इसके साथ ही एससीओ की 23वीं समिट की शुरुआत होगी.
ये नेता SCO समिट में होंगे शामिल
1. भारत के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर
2. चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग
3. रूसी प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्टिन
4. ईरान के पहले उप-राष्ट्रपति मोहम्मद रजा आरिफ
5. बेलारूस के प्रधान मंत्री रोमन गोलोवचेंको
6. कजाकिस्तान के प्रधान मंत्री ओल्जास बेक्टेनोव
7. किर्गिस्तान की कैबिनेट के अध्यक्ष झापारोव अकीलबेक
8. ताजिकिस्तान के प्रधान मंत्री कोखिर रसूलजोदा
9. उज्बेकिस्तान के प्रधानमंत्री अब्दुल्ला अरिपोव
10. मंगोलियाई प्रधानमंत्री ओयुन-एर्डीन लुवसन्नामराय
11. तुर्कमेनिस्तान के मंत्रिपरिषद के उपाध्यक्ष राशिद मेरेडोव
12. एससीओ महासचिव झांग मिंग
13. एससीओ रैट्स कार्यकारी समिति के निदेशक रुसलान मिर्जायेव
14. एससीओ व्यापार परिषद के अध्यक्ष आतिफ इकराम शेख
15. एससीओ इंटरबैंक यूनियन परिषद के अध्यक्ष मराट येलिबायेव
इमरान की पार्टी नहीं करेगी विरोध-प्रदर्शन
बता दें कि पाकिस्तान की जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान इस्लामाबाद में विरोध-प्रदर्शन करने की चेतावनी दी थी. हालांकि, पाकिस्तान की सरकार ने कहा था कि वह सख्ती के साथ इससे निपटेगी, लेकिन इमरान खान की पार्टी (PTI) ने अपना विरोध-प्रदर्शन वापस ले लिया है.
क्या है SCO?
अप्रैल 1996 में एक बैठक हुई. इसमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल हुए. इस बैठक का मकसद था आपस में एक-दूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों को दूर करने के लिए सहयोग करना. तब इसे 'शंघाई फाइव' कहा गया. हालांकि, सही मायनों में इसका गठन 15 जून 2001 को हुआ. तब चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने 'शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन' की स्थापना की. इसके बाद नस्लीय और धार्मिक तनावों को दूर करने के अलावा कारोबार और निवेश बढ़ाना भी मकसद बन गया.1996 में जब शंघाई फाइव का गठन हुआ, तब इसका मकसद था कि चीन और रूस की सीमाओं पर तनाव कैसे रोका जाए और कैसे उन सीमाओं को सुधारा जाए. ये इसलिए क्योंकि उस समय बने नए देशों में तनाव था. ये मकसद सिर्फ तीन साल में ही हासिल हो गया. इसलिए इसे सबसे प्रभावी संगठन माना जाता है.