पहले कोरोना को लेकर चीन दुनिया के सारे देशों के निशाने पर था अब एक नया मुद्दा उसे दुनिया के निशाने पर ले आया है. भोपाल में इसी हफ्ते जी-20 के अंतर्गत थिंक-20 की दो दिवसीय बैठक की शुरुआत हुई. जिसमें चीन में दो बच्चों में जेनेटिक बदलाव करने को अप्राकृतिक बताते हुए विरोध किया गया. बैठक में रिसर्च एंड इंफार्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपमेंट कंट्रीज (RIS) के डीजी प्रो. सचिन चतुर्वेदी ने कहा कि नेचर के खिलाफ जाकर इस तरह के एक्सपेरिमेंट्स आने वाली पीढ़ी के लिए बेहद चिंता का विषय हैं. उन्होंने आगे कहा कि जेनेटिक इंजीनियरिंग पर भी थिंक-20 की आगामी बैठकों में चर्चा की जाएगी.
ये मुद्दा तकरीबन पांच साल पुराना है लेकिन दुनिया इसे इंसानों के फ्यूचर के लिए खतरे के रूप में देख रही है. दरअसल साल 2018 में चीन में दो ऐसे बच्चे तैयार किए गए थे, जिन्हें एड्स, निमोनिया आदि नहीं हो सकने का दावा किया गया यानी कहा गया कि इन बच्चों को ऐसे जेनेटिक बदलावों के साथ तैयार किया गया है कि ये बीमारी प्रूफ हैं. जिसे लेकर इंटरनेशनल लेवल पर चीन को भारी विरोध का भी सामना करना पड़ा था. इतना ही नहीं जिस वैज्ञानिक ने यह काम किया था, उसे तीन साल की जेल भी हुई थी. इतना ही नहीं जेल की सजा के साथ-साथ साइंटिस्ट पर तीन मिलियन युआन ($ 430,000; £ 328,000) का जुर्माना भी लगाया गया.
हे जियानकुई (He Jiankui) नाम के एक साइंटिस्ट को मानव भ्रूणों पर एचआईवी के खिलाफ सुरक्षा देने की कोशिश और प्रकृति के विरुद्ध जाकर सरकारी प्रतिबंध का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया गया था. साइंटिस्ट ने जब अपने एक्सपेरिमेंट्स और जुड़वा बच्चों के जन्म की घोषणा की तो विश्व स्तर पर उसकी निंदा भी की गई. चीन की एक कोर्ट ने एक्स्पेरिमेट्स के लिए साइंटिस्ट के साथ मिलकर इस तरह की प्लानिंग करने के लिए दो पुरुषों, झांग रेनली और किन जिनझोउ को निचली सजा भी सुनाई.
उस दौरान सामने आयीं मीडिया रिपोर्ट्स की मानें ओ शेनझेन की एक अदालत ने कहा कि इन सभी आरोपियों ने व्यक्तिगत प्रसिद्धि और लाभ के लिए काम किया और मेडिकल मैनेजमेंट को गंभीर रूप से बाधित किया. कोर्ट ने कहा कि उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान और मेडिकल वर्ल्ड में नैतिकता की निचली रेखा को पार कर लिया है.
क्या था मामला
साल 2018, नवम्बर में एसोसिएटेड प्रेस द्वारा फिल्माए गए एक वीडियो में लूला और नाना नामक जीन-संपादित जुड़वां बच्चों के जन्म की घोषणा की. वीडियो जारी होने के बाद, चीन और दुनिया भर में साइंस फील्ड के एक्सपर्ट्स की प्रतिक्रिया तेज और जबरदस्त थी. वहीं अपने एक्सपेरिमेंट्स पर बात करते हुए साइंटिस्ट जियानकुई ने कहा कि मैं समझता हूं कि मेरा काम विवादास्पद होगा, लेकिन मेरा मानना है कि परिवारों को इस तकनीक की जरूरत है और मैं उनके लिए आलोचना स्वीकार करने को तैयार हूं.
इसी बीच चीनी सरकार ने बच्चों को पुलिस जांच के दायरे में रखा और साइंटिस्ट के ऐसे किसी भी शोध कार्य को रोकने का आदेश दिया. इतना ही नहीं जियानकुई को शेनझेन की एक यूनिवर्सिटी से भी निकाल दिया गया था जहां वो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के एक सहयोगी प्रोफेसर थे. इसके अलावा चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस ने उसके बारे में एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि हम मनुष्यों में जीन को लेकर बदलाव के इस एक्सपेरिमेंट का 'मजबूती से विरोध' करते हैं.
कैसे हुआ एक्सपेरिमेंट?
1. एक्सपेरिमेंट में ऐसे कपल को शामिल किया गया जिनमें पुरुष एचआईवी संक्रमित थे और फीमेल, नॉर्मल. ऐसे सभी पुरुष दवाओं के सहारे इन्फेक्शन के खतरों को रोकने की कोशिश कर रहे थे. ऐसे में उन्हें यह बताया गया कि वे अपने होने वाले बच्चों को एचआईवी से बचा सकते हैं.
2. जिसके बाद ऐसे कपल जिन्होंने रिसर्च में शामिल होने के लिए सभी शर्तों पर हामी भरी उन्हें ही इस ख़ास रिसर्च में शामिल किया गया.
3. भ्रूण तैयार करने के लिए आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल किया गया.
4. एक्सपेरिमेंट के जरिये लैब में भ्रूण तैयार किया गया, और उसके जीन में बदलाव भी किया गया.
5. रिपोर्ट्स के मुताबिक इसके बाद, भ्रूण बनने के तीन से पांच दिन बाद उसकी कुछ कोशिकाओं को हटाया गया और बहुत बारीकी से इसकी जांच भी की गई. बताया गया कि ऐसे करीब 16-22 भ्रूण तैयार किए गए जिनके जीन में उस दौरान बदलाव किया गया. जिसमें से 11 भ्रूण महिलाओं में प्रेग्नेंसी के लिए ट्रांसप्लांट किया गए.
6. इसी बीच टेस्ट में पता चला कि कुछ ट्विन बच्चों में जीन एडिटिंग हो पाई थी और कुछ में से सिर्फ एक में ही ऐसा हो सका जिनका जीन बदल सका. रिसर्च के मुताबिक जिन जुड़वा बच्चों में से सिर्फ एक में जीन एडिटिंग हुई है उनमें शामिल दूसरे बच्चे में एचआईवी का खतरा पूरी तरह से टला नहीं, ऐसे में कई साइंटिस्ट ने इसको लेकर जांच की और पाया कि ऐसा कहा जाना मुश्किल है कि जीन एडिटिंग पूरी तरह से बीमारी से बचा पाएगी.