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G-20: रूस से दोस्ती भारत की कामयाबी में बन रही है रोड़ा?

भारत की मेजबानी में चल रही जी-20 की बैठक में जापान के विदेश मंत्री नहीं आ रहे हैं. वित्त मंत्रियों की जी-20 की पिछली बैठक में भी भारत कोई साझा बयान जारी करने में असफल रहा था. सदस्य देश यूक्रेन के मुद्दे को लेकर एक मुद्दे पर सहमत नहीं हो पाए थे. कुछ विश्लेषक इसे भारत की कूटनीतिक नाकामयाबी के रूप में देख रहे हैं.

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भारत रूस को लेकर अपने नरम रुख पर अब भी कायम है (Photo- Reuters)
भारत रूस को लेकर अपने नरम रुख पर अब भी कायम है (Photo- Reuters)

भारत की नई दिल्ली में 1-2 मार्च को जी-20 देशों की बैठक चल रही है जिसमें जापान के विदेश मंत्री योशिमासा हयाशी भाग नहीं ले रहे हैं. उनके स्थान पर जापान के विदेश राज्य मंत्री केंजी यमादा बैठक में जापान का प्रतिनिधित्व करेंगे. जापान के विदेश मंत्री संसदीय कामकाज को प्राथमिकता देने के लिए जी-20 की अहम बैठक को छोड़ रहे हैं जिसे लेकर जापान में कुछ सांसद ही उनकी आलोचना कर रहे हैं.

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इधर, भारत के वैश्विक नेतृत्व और कूटनीति पर भी सवाल उठने लगे हैं कि इस अहम बैठक में सदस्य देश के विदेश मंत्री को बुला पाने में असफल रहा है. पिछले हफ्ते बेंगलुरु में आयोजित जी-20 की बैठक में भी मेजबान भारत यूक्रेन के मुद्दे पर सदस्य देशों के बीच असहमति के कारण संयुक्त बयान जारी करने में असफल रहा था.

वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की पिछली बैठक में यूक्रेन मुद्दे को लेकर भारी तनाव देखने को मिला था. भारत शुरू से ही नहीं चाहता है कि जी-20 बैठक में यूक्रेन के मुद्दे को लेकर किसी तरह की बातचीत हो. भारत रूस पर और अधिक प्रतिबंधों की चर्चा को लेकर भी असहमत था. भारत का कहना था कि जी-20 विकास के मुद्दों पर बात करने के लिए है, इसे सुरक्षा के मुद्दों में दखल नहीं देना चाहिए.

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यूक्रेन संकट की व्याख्या करने के लिए किसी शब्द पर सहमति बनाने में विफल भारत

रूस को लेकर भारत के नरम रुख की आलोचना होती रही है और जी-20 में भी भारत अपने रुख पर अड़ा हुआ है. भारत ने जी-20 की बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध को युद्ध कहने का विरोध किया और कहा कि इसे 'चुनौती' या 'संकट' जैसे शब्दों से संबोधित किया जाए. हालांकि, भारत इन शब्दों पर सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनाने में विफल रहा.

बेंगलुरु की बैठक में चीन ने यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा करने से इनकार कर दिया था. चीन ने साझा बयान के उस हिस्से पर भी आपत्ति जताई जिसमें यूक्रेन पर रूसी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की गई थी.

रूस और चीन के विरोध के कारण भारत साझा बयान जारी करने में असफल रहा और उसे जी-20 बैठक का सारांश, चेयर्स समरी पेश करना पड़ा. भारत ने इसमें कहा कि यूक्रेन में मौजूदा हालात और रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर देशों के अलग-अलग आकलन हैं. 

इंडोनेशिया से की जा रही तुलना

पिछले साल रूस-यूकेन युद्ध के बीच इंडोनेशिया के बाली में जी-20 की बैठक के बाद साझा बयान जारी किया गया था. उस दौरान भी रूस और चीन ने साझा बयान पर नाराजगी जाहिर की थी. हालांकि, मेजबान इंडोनेशिया इस नाराजगी के बावजूद भी एक ऐसा साझा बयान जारी करने में सफल रहा था जिस पर सभी देश सहमत हुए थे. 

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बाली के जी-20 के साझा बयान में कहा गया था कि बैठक में यूक्रेन की स्थिति पर चर्चा हुई है. बयान में कहा गया था, 'हमने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा सहित अन्य मंचों में व्यक्त किए गए अपने रुख को दोहराया. हम यूक्रेन के खिलाफ रूस द्वारा की गई आक्रामकता की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और यूक्रेन के क्षेत्र से रूस की पूर्ण और बिना शर्त वापसी की मांग करते हैं. अधिकांश सदस्यों ने यूक्रेन में युद्ध की कड़ी निंदा की.'

बयान में कहा गया कि रूस के युद्ध के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था की कमजोरियों का सामना करना पड़ रहा है. बयान में देशों ने स्वीकार किया कि जी-20 सुरक्षा मुद्दों को हल करने का मंच नहीं है, लेकिन साथ ही यह कहा कि सुरक्षा मुद्दों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण असर पड़ सकता है.

चीन ने भी बाली के साझा बयान को जारी करने में अड़ंगा नहीं डाला था. लेकिन इस बार चीन साझा बयान को अंतिम रूप देने के बीच में आ गया और उसने रूसी आक्रमण की आलोचना करने से इनकार कर दिया. रूस और चीन के विरोध के कारण मेजबान भारत साझा बयान जारी करने में असफल रहा है. इसे लेकर कई विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यह भारत की मेजबानी के लिए एक बड़ा झटका है. अगर भारत सभी देशों को एक साझा बयान पर सहमत कराने में सफल होता तो एक नेतृत्वकर्ता के रूप में उसकी छवि मजबूत होती.

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'भारत के लिए शर्मिंदगी वाली बात'

कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने 'द वायर' को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि जी-20 की बेंगलुरु बैठक में साझा बयान न जारी हो पाना और फिर रूस का भारत की तारीफ करना, भारत के लिए यह शर्मिंदा होने वाली बात है. उन्होंने कहा कि यह भारत की कूटनीति के लिए एक बड़ा झटका है.

थरूर ने कहा, 'जी-20 के बहुत से देशों ने रूसी युद्ध को चुनौती अथवा संकट कहकर संबोधित करने से इनकार कर दिया. भारत ने रूस के लिए अपनी लीडरशिप को झटका दिया है. इसके बाद रूस युद्ध शब्द का इस्तेमाल न करने के लिए भारत की प्रशंसा में बयान जारी करता है कि भारत ने मीटिंग में एक रचनात्मक भूमिका निभाई है. ये सब हास्यास्पद होता जा रहा है. भारत के लिए यह बेहद शर्मिंदगी की बात है क्योंकि अगर आप मेजबान है तो आप सबको एक साथ ले आते.'

उन्होंने आगे कहा कि भारत की कूटनीति यहां फेल हुई है. थरूर ने कहा, 'भारत को यहां फेल नहीं होना चाहिए था. एक मेजबान देश के लिए सभी सदस्य देशों को किसी साझा बयान पर राजी न कर पाना, किसी मित्र देश को युद्ध शब्द से नाराज करने से ज्यादा बड़ी असफलता है.'

थरूर ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री एक तरफ कहते हैं कि यह युग युद्ध का युग नहीं है और दूसरी तरफ भारत यूक्रेन में जो हो रहा है, उसे युद्ध कहने पर राजी नहीं है. भारत ने इसके लिए रूस की आलोचना तक नहीं की है. भारत की ये विरोधाभासी स्थिति हानिकारक है. 

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हालांकि, भारत सरकार के कुछ सूत्र इस आलोचना को पूर्णतः खारिज कर रहे हैं कि साझा बयान जारी न करवा पाना भारत की एक बड़ा नाकामयाबी है.

सूत्रों ने कहा, 'भारत की संतुलित स्थिति ने पिछले साल बाली घोषणा को बनाने में योगदान दिया था. विशेष रूप से, प्रधानमंत्री का यह कथन कि यह युद्ध का युग नहीं है, बहुत लोकप्रिय हुआ था. हमारा प्रयास जी-20 वित्त मंत्रियों की बैठक में बाली में सदस्यों के बीच बनी सहमति को प्रतिबिंबित करना था. भारत ने चेयर्स समरी में इसे व्यक्त भी किया. इसलिए कोई भी आलोचना तथ्यात्मक रूप से गलत है.'

करीबी मित्र जापान भारत की मेजबानी को ले रहा हल्के में?

भारत के करीबी मित्र जापान के विदेश मंत्री योशिमासा हयाशी संसदीय कामकाज को प्राथमिकता देते हुए जी-20 मीटिंग में शामिल होने के लिए भारत नहीं आ रहे हैं. इसे भी भारत की कूटनीति के झटके के रूप में देखा जा रहा है. जापानी विदेश मंत्री क्वॉड देशों (भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का संगठन) की शुक्रवार की बैठक में भाग लेने के लिए भारत आएंगे या नहीं, इसे लेकर भी संशय है. जापान इस साल जी-7 की मेजबानी भी करने वाला है जिसमें वो भारत को भी आमंत्रित करने वाला है. ऐसे में जापानी विदेश मंत्री का भारत न आना भारत को परेशान करने वाला है.

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वाशिंगटन स्थित हडसन इंस्टीट्यूट, सटोरू नागाओ के एक जापानी शोधकर्ता ने जोर देकर कहा कि जापानी विदेश मंत्री का जी-20 सम्मेलन में न आना भारत को परेशान करने वाला है.

जी-20 की बैठक में दक्षिण कोरिया क विदेश मंत्री भी हिस्सा नहीं ले रहे. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, घरेलू मामलों को लेकर वो बैठक में हिस्सा नहीं ले रहे हैं.

दक्षिण कोरिया भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़े निवेशकों में से एक है. भारत के उपभोक्ता वस्तुओं के बाजार में दक्षिण कोरियाई कंपनियों का दबदबा है. ऐसे में उसके विदेश मंत्री का जी-20 में हिस्सा लेने के लिए भारत न आना भारत के लिए एक झटके के रूप में देखा जा रहा है.

रूस का भारत की तारीफ करना भारत के लिए अहितकारी

जी-20 की बेंगलुरु बैठक के बाद रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर पश्चिमी देशों पर आरोप लगाया कि रूस विरोधी पश्चिमी देशों ने जी-20 को अस्थिर कर दिया है. इस बयान में रूस ने भारत की मेजबानी की तारीफ करते हुए कहा कि उसने सभी देशों के हितों को देखते हुए निष्पक्ष विचार करने की कोशिश की. रूस ने कहा कि भारत ने बैठक में संतुलित दृष्टिकोण अपनाया और सभी देशों के हितों को ध्यान में रखा.

रूस की इस तारीफ को हालांकि, कुछ विश्लेषक नकारात्मक तौर पर ले रहे हैं. विश्लेषकों का कहना है कि भारत रूस की अपनी दोस्ती के लिए जी-20 के सभी देशों को नाराज कर रहा है.  

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G-20 की बैठक से पहले रूस को लेकर इस बात पर अड़ा भारत

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