नई दिल्ली में भारत की अध्यक्षता में जब जी-20 की बैठक शुरू हुई तो पूरे विश्व की नजरें रूस और यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर टिकी थीं. पिछली बार इंडोनेशिया की राजधानी बाली में जी-20 की मीटिंग में युक्रेन में युद्ध को रूस की कड़ी निंदा की गई थी. इस बात पर रूस और चीन नाराज भी थे. वहीं पश्चिमी एक्सपर्ट्स को उम्मीद थी कि भारत में भी यूक्रेन युद्ध को लेकर कड़ा रुख देखने को मिल सकता है लेकिन नई दिल्ली में ऐसा कुछ नहीं हुआ.
जी-20 के घोषणा पत्र में यूक्रेन युद्ध का जिक्र तो किया गया लेकिन शब्दों का फेरबदल कुछ ऐसा रहा कि न वह अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशों को खराब लगा और ना ही रूस या चीन की आंखों में खटका. आखिरकार सर्वसम्मति के साथ सभी सदस्यों देशों ने घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर दिया.
घोषणापत्र पर बैठक में शामिल सभी देश राजी हो गए लेकिन वेस्टर्न मीडिया को नई दिल्ली में जी-20 मीटिंग का डिक्लेरेशन खास पसंद नहीं आया. कई प्रमुख अखबारों में एक्सपर्ट्स की ओर से कहा गया कि यूक्रेन में युद्ध को लेकर इस बार रूस की निंदा उस तरह से नहीं की गई, जिस तरह से बाली में आयोजित बैठक में की गई थी.
कहीं न कहीं भारत की अध्यक्षता में रूस के प्रति नरम रुख देखा गया. दूसरी ओर, कुछ एक्सपर्ट्स ने इसे भारत की कूटनीतिक जीत भी बताया, क्योंकि भारत युद्ध की शुरुआत से ही तटस्थ भूमिका में है.
यूक्रेन युद्ध को लेकर G-20 मीटिंर में नरम रुख
अंग्रेजी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने यूक्रेन युद्ध को लेकर नई दिल्ली में आयोजित जी-20 की मीटिंग का रुख नरम बताया. अखबार में सिंगापुर राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में एसोसिएट रिसर्च फेलो नाजिया हुसैन का बयान छापते हुए कहा, 'नई दिल्ली में जी-20 बैठक के घोषणापत्र में यूक्रेन युद्ध को लेकर सभी देशों का रुख नरम रहा.'
नाजिया हुसैन के अनुसार, यूक्रेन युद्ध को लेकर कुछ पॉइंट्स के साथ जॉइंट स्टेटमेंट पर अमेरिका, उसके सहयोगी व चीन और रूस की सहमति बनवाना भारत के लिए किसी जीत से कम नहीं है.
वहीं अखबार में जी-20 के लिए नई दिल्ली पहुंचे जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज का बयान भी छापा गया. जर्मन चांसलर ने मीडिया से बात करते हुए जी-20 में पेश घोषणापत्र की तारीफ की है.
जर्मन चांसलर ने इसे भारत की कूटनीतिक जीत बताया है. ओलाफ ने कहा कि आखिरकार रूस को भी अपना विरोध छोड़कर उस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े, जिसमें यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के बारे में कहा गया है.
वहीं अखबार में रूसी मीडिया के आधार पर जी-20 बैठक में शामिल रूसी शेरपा स्वेतलाना लुकास का भी बयान छापा गया. रूसी प्रतिनिधि (शेरपा) ने यूक्रेन मुद्दे को कहा कि घोषणापत्र पर जो लिखा गया, वह मौजूदा हालात को लेकर संतुलित नजरिया है. उन्होंने आगे कहा कि बैठक में सिर्फ यूक्रेन ही एक मुद्दा नहीं था.
यूक्रेन युद्ध की निंदा को लेकर जी-20 के सदस्यों में दरार, फिर भी सब राजी
दूसरी ओर, अंग्रेजी अखबार सीएनएन ने भी जी-20 के घोषणापत्र में रूस को लेकर नरम व्यवहार की आलोचना की. सीएनएन की खबर में कहा गया कि नई दिल्ली में वैश्विक नेता जी-20 की सालाना बैठक के जॉइंट स्टेटमेंट में क्लाइमेट चेंज और आर्थिक प्रगति के पॉइंट्स पर राजी हो गए, लेकिन कहीं न कहीं यूक्रेन में रूस के युद्ध की निंदा को लेकर दरार देखने को मिली.
सीएनएन के अनुसार, जॉइंट स्टेटमेंट में यूक्रेन युद्ध के बारे में भाषा को नरम रखा गया. कहीं न कहीं भारत का पक्ष अपने पश्चिमी सहयोगी अमेरिका और अन्य देशों के पक्ष के मुकाबले नरम देखा गया. हालांकि, अंत में स्टेटमेंट को अमेरिका की ओर से सराहा भी गया.
यूएस सिक्योरिटी एडवाइजर जेक सुलिवन ने इस घोषणापत्र को भारत की अध्यक्षता के लिए मील का पत्थर बताया. उन्होंने कहा कि घोषणापत्र में यूक्रेन को लेकर अहम चीजें कही गईं. और हमारा मानना है कि इस सिद्धांत पर टिके रहना कि, ''कोई भी राज्य क्षेत्रीय अधिग्रहण के लिए बल का प्रयोग नहीं कर सकता है.'' काफी अच्छा कार्य है.
आखिर कैसे बन गई सर्वसहमति, ऑस्ट्रेलियन पत्रकार हैरान
बीबीसी के अनुसार, मीडिया सेंटर में मौजूद ऑस्ट्रेलिया के सिडनी मॉर्निग हेराल्ड अखबार के एक पत्रकार ने कहा कि घोषणापत्र पर सर्वसहमति कैसे बन गई, यह सोचकर वे हैरान हैं.
वहीं यह भी हैरानी वाली बात है कि दो दिनों तक चलने वाले सम्मेलन में घोषणा पहले ही दिन कर दी गई. मॉर्निंग हेराल्ड के पत्रकार ने मजाकिया अंदाज में कहा कि अब दूसरे दिन कवर करने के लिए बचेगा ही क्या.
पीएम मोदी ने जो बाइडन को जॉइंट स्टेटमेंट के लिए राजी किया?
बीबीसी के अनुसार, शुक्रवार शाम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की मुलाकात भी हुई थी. ऐसे में एक अमेरिकी पत्रकार का मानना है कि इसी मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से सम्मेलन के घोषणापत्र पर उनकी सहमति ले ली होगी.
पिछले साल बाली सम्मेलन के घोषणा पत्र में रूस के यूक्रेन पर आक्रमण की कड़े शब्दों में निंदा की गई थी. बाद में रूस और चीन ने रूस की निंदा पर आपत्ति जताना शुरू किया था. इसके बाद भारत के पास अध्यक्षता आई तो सबकी निगाहें इसी पर टिकी हुई थी.
भारत की अध्यक्षता में जी-20 के वित्त मंत्रियों और विदेश मंत्रियों के सम्मेलनों के बाद घोषणा पत्र पर सहमति नहीं बन पाई थी. पश्चिमी देश चाहते थे कि रूस की कड़ी निंदा की जाए लेकिन रूस और चीन इसका विरोध कर रहे थे. जिसकी वजह से सामूहिक रूप से घोषणा पत्र जारी नहीं किया जा सका था.