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बांग्लादेश में रविवार को होगा आम चुनाव, 10 घंटे के लिए बंद की गई इंटरनेट सेवाएं

बांग्लादेश में रविवार को आम चुनाव होने वाले हैं. इस बार दो बेगम शेख हसीना और खालिदा जिया आमने सामने नहीं हैं. चुनाव से पहले पूरे बांग्लादेश में 10 घंटे तक हाई स्पीड इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थी.

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चौथी बार पीएम बनने की उम्मीद में हसीना (फोटो-AP)
चौथी बार पीएम बनने की उम्मीद में हसीना (फोटो-AP)

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बांग्लादेश के लिए साल 2018 जाते- जाते काफी अहम साबित होने वाला है. दक्षिण एशिया के इस देश में रविवार को होने वाले चुनाव पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं. हालांकि बांग्लादेश में इस बार के चुनाव पिछले चुनावों की तुलना में अलग होंगे, क्योंकि इस बार 'दो बेगम' शेख हसीना और खालिदा जिया आमने-सामने नहीं होंगी. खालिदा जिया भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में सजा काट रही हैं.

इस बीच, बांग्लादेश में कई घंटों तक हाई स्पीड इंटरनेट सेवाएं बंद रहने के बाद शुक्रवार को सुबह बहाल कर दी गईं. आम चुनाव के मद्देनजर देश के दूरसंचार नियामक के आदेश के बाद गुरुवार देर रात को मोबाइल ऑपरेटरों ने अपनी 3जी और 4जी सेवाएं बंद कर दी थीं. बीडीन्यूज24 डॉट कॉम ने मोबाइल ऑपरेटरों के हवाले से बताया कि 11वें आम चुनाव से दो दिन पहले बांग्लादेश दूरसंचार नियामक आयोग (बीटीआरसी) ने गत रात करीब दस बजे आदेश जारी कर देश के चार मोबाइल ऑपरेटरों से 3जी और 4जी सेवाओं को बंद करने के लिए कहा.

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चौथी बार पीएम बनने की उम्मीद में हसीना

बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना (71) और पूर्व सैन्य तानाशाह जिया उर्रहमान की पत्नी खालिदा जिया (73) 1980 के दशक से बांग्लादेश की राजनीति की दो केंद्र बनी हुई हैं. हसीना जहां आगामी चुनाव में चौथी बार प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद संजोए हुए हैं वही खालिदा ढाका जेल में अपने राजनीतिक भविष्य के लिये संघर्ष कर रही हैं. बांग्लादेश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री खालिदा को नवंबर में भ्रष्टाचार के एक मामले में एक अदालत के आदेश के बाद सलाखों के पीछे डाल दिया गया था. इसके बाद उनके चुनाव लड़ने की संभावनाएं खत्म हो गई थीं.

बीएनपी ने चुनाव का किया था विरोध

जिया के समर्थकों का कहना है कि उन पर लगे आरोप राजनीति से प्रेरित हैं. उनके बेटे और बीएनपी के कार्यवाहक प्रमुख तारिक रहमान को भी जेल में डाला चुका है. बीएनपी ने अपने नेताओं को जेल में डाले जाने के विरोध में इन चुनावों में भाग नहीं लेने का फैसला लिया था, लेकिन कानूनी बाध्यताओं की वजह से पार्टी को अपना निर्णय बदलना पड़ा क्योंकि लगातार दो बार चुनाव में हिस्सा नहीं लेने पर बीएनपी का पंजीकरण रद्द किया जा सकता था.

एनयूएफ की दिलचस्पी

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जिया को सजा दिये जाने के बाद उभरे विपक्षी पार्टी के नेशनल यूनिटी फोरम (एनयूएफ) ने चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है. इस गठबंधन का मकसद चुनाव से पहले बीएनपी की सरकार के साथ बातचीत कराना है. इस गठबंधन का नेतृत्व अवामी लीग के पूर्व नेता और मशहूर न्यायविद कमाल हुसैन कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने खुद चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है.

भारत विरोधी रुख नहीं

पश्चिमी देशों के कई राजनयिक और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एनयूएफ के उभार ने सभी विपक्षी दलों की जीत और बीएनपी की संसद में वापसी की राह आसान बनाने की उम्मीदें बढ़ा दी हैं. बांग्लादेश के चुनाव को भारत के नजरिए से भी काफी अहम माना जा रहा है. इस बार चुनाव प्रचार में भारत विरोधी रुख न होना भारत के लिये राहत की बात है. इससे पहले भारत पर बांग्लादेश की राजनीति में दखल देने के आरोप लगते रहे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि कुछ साल से बीएनपी ने पुराना रुख छोड़कर भारत को सहयोगी के तौर पर देखना शुरू कर दिया है.

मोदी से मिली थीं शेख हसीना

बांग्लादेश के भारत के साथ संबंध इस साल और प्रगाढ़ हुए हैं. इसी साल मई में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि हालिया वर्ष भारत-बांग्लादेश के संबंधों का स्वर्णिम अध्याय हैं. इस दौरान दोनों देशों के बीच भूमि और तटीय सीमा से जुड़े पेचीदा मुद्दे हल हुए हैं. हसीना ने भी दोस्ताना माहौल में बचे हुए मुद्दों को सुलझाने की उम्मीद जताई थी.

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रोहिंग्या मसले पर मिला सबका साथ

इस बीच इस साल बांग्लादेश में रोहिंग्या का मुद्दा भी छाया रहा. बांग्लादेश को म्यांमार पर रोहिंग्या मुसलमानों को वापस बुलाने का दबाव बनाने के लिये कई देशों का साथ भी मिला. इसका नतीजा यह हुआ कि कई दौर की बातचीत के बाद म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों को वापस बुलाने के लिये राजी हो गया.

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