पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल राहिल शरीफ इस महीने की 29 तारीख को रिटायर होने वाले हैं. बीते दो दशकों में ऐसा पहली बार हो रहा है जब पड़ोसी मुल्क में आर्मी चीफ बिना सेवा विस्तार के ही तय समय पर पद छोड़ रहा है. राहिल शरीफ के उत्तराधिकारी के तौर पर चार अफसरों के नाम मीडिया में चल रहे हैं. लेकिन आखिरी फैसला प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को करना है कि सेना की कमान किसे सौंपनी है.
उरी हमले और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पैदा हुए हालात के बीच पिछले दिनों ऐसी खबरें आ रही थीं कि पाकिस्तान की सरकार आर्मी चीफ बदलने के मूड में नहीं है. भारत और पाकिस्तान की सरहद पर गर्म हुए माहौल के बीच आर्मी के टॉप पोस्ट पर बदलाव भारी पड़ सकता है, ऐसे में राहिल शरीफ को सेवा विस्तार दिए जाने अटकलें थीं. वैसे पाकिस्तान के इतिहास पर गौर किया जाए तो वहां कई सेना प्रमुख सत्ता हासिल करने के लिए तख्तापलट तक कर चुके हैं. इसकी कीमत मौजूदा पीएम नवाज शरीफ को भी भुगतनी पड़ी थी. वहीं, 1990 के दशक में जब नवाज शरीफ दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल जहांगीर करामात को कार्यकाल पूरा करने से पहले ही घर भेज दिया गया था.
पाकिस्तान में सेना और सरकार के बीच टकराव का पुराना इतिहास रहा है. आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर पिछले दिनों पाकिस्तान में सेना और सरकार के बीच तनातनी की खबरें भी आईं. ऐसे में नवाज शरीफ इस बार फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं. पाकिस्तान में सेना प्रमुख का पद बेहद शक्तिशाली पदों में से है. माना जाता है कि सेना प्रमुख पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से ताकतवर है. लेकिन नियुक्ति प्रधानमंत्री की ओर से ही की जाती है. प्रधानमंत्री मौजूदा जनरल और कैबिनेट के मंत्रियों से सलाह-मशविरा करने के बाद उम्मीदवारों की लिस्ट में से अगले आर्मी चीफ का नाम चुनते हैं. इस नाम की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजी जाती है, जिसपर औपचारिक मुहर लगती है. नया आर्मी चीफ उसी दिन पद संभालता है, जिस दिन निवर्तमान चीफ रिटायर होते हैं.
आखिरी वक्त तक पत्ते नहीं खोलते नवाज
साढ़े तीन दशक के सियासी सफर वाले नवाज शरीफ की सेना प्रमुख चुनने की अपनी शैली है. तीसरी बार पाकिस्तान के पीएम बने नवाज का अनुभव सेना प्रमुखों को लेकर अनुभव रहा है. बताया जाता है कि वो आखिरी वक्त तक पत्ते नहीं खोलते कि अगला आर्मी चीफ कौन होगा. जनरल जिया से लेकर जनरल शरीफ तक 15 अलग-अलग सेना प्रमुखों में से आठ के साथ शरीफ काम कर चुके हैं. इनमें से जनरल परवेज मुशर्रफ, जनरल जियाउद्दीन ख्वाजा और जनरल राहिल शरीफ नवाज की तरफ से सीधे नियुक्त किए गए थे. हालांकि जनरल ख्वाजा को बाद में आर्मी से बर्खास्त कर दिया गया था. जनरल आफिस नवाज और जनरल अब्दुल वहीद काकर की नियुक्ति में नवाज शरीफ की भूमिका सीमित थी क्योंकि उस वक्त राष्ट्रपति ईशाक खान पावरफुल थे.
29 नवंबर 2013 को नवाज शरीफ ने ही राहिल शरीफ को 15वां आर्मी चीफ नियुक्त किया था. उस वक्त दो सीनियर अफसरों को नजरअंदाज कर राहिल शरीफ सेना के प्रमुख बनाए गए थे. आमतौर पर पाकिस्तान में सेना प्रमुख तीन साल के लिए नियुक्त होते हैं. अगर राष्ट्रपति चाहें तो प्रधानमंत्री की सलाह से आर्मी चीफ को सेवा विस्तार दे सकते हैं. सेवा विस्तार पर भी राष्ट्रपति की औपचारिक मंजूरी जरूरी होती है. राहिल से पहले आर्मी चीफ रहे जनरल अशफाक परवेज कयानी लगातार छह साल इस पद पर रहे थे.
आर्मी चीफ के रिटायर होने की प्रकिया भी छोटी नहीं है. रिटायरमेंट की तारीख तय हो जाने के बाद आर्मी चीफ 'फेयरवेल टूर' यानी विदाई दौरे पर निकलते हैं. इस दौरान वो देशभर का दौरा करते हैं और सेना के अफसरों व जवानों से मिलते हैं. राहिल शरीफ का भी फेयरवेल टूर भी शुरू हो गया है. जनरल शरीफ के विदाई दौरे की शुरुआत लाहौर से हुई जहां सोमवार को उन्होंने आर्मी और रेंजर्स के अफसरों और जवानों को संबोधित किया. शरीफ इसके बाद गुजरांवाला गए जहां उन्होंने मांगला और गुजरांवाला कोर के अफसरों और जवानों को संबोधित किया. जनरल शरीफ जल्द ही कराची और पेशावर भी जाएंगे.
वैसे बतौर आर्मी चीफ जनरल शरीफ का कार्यकाल शानदार रहा है. जून 2014 में तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ उत्तरी वजीरिस्तान में ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब की शुरुआत जनरल शरीफ के कार्यकाल का गोल्डन पीरियड रहा. जनरल शरीफ को कराची में आतंकवाद का सफाया करने और शहर में शांति बहाल करने का भी क्रेडिट दिया जाता है. शरीफ 'एबीसी न्यूज प्वाइंट' की तरफ से साल 2015 के लिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मिलिट्री कमांडर के सम्मान से नवाजे गए. लेकिन पिछले कुछ दिनों से सरहद पर जिस तरह के हालात पैदा हुए हैं, उसे देखकर लगता है कि अगर पुराने आर्मी चीफ विदाई और नए आर्मी चीफ की नियुक्ति शांतिपूर्ण तरीके से हो गई तो पाकिस्तान के लोकतंत्र में यह मील का पत्थर साबित होगा.