यूक्रेन के साथ युद्ध और पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध के कारण रूस भारत को पर्याप्त हथियार सप्लाई नहीं कर पा रहा है. ऐसे में सेना को पर्याप्त हथियार आपूर्ति हो इसके लिए भारत सरकार एक बड़ा कदम उठाने जा रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत, जर्मनी के साथ एक समझौता कर रहा है जिसके तहत दोनों देश मिलकर भारत में डीजल संचालित पनडुब्बियों का निर्माण करेंगे.
सेना के महत्वपूर्ण हथियारों के लिए भारत दशकों से रूस पर निर्भर रहा है. हथियारों के आयात-निर्यात पर नजर रखने वाली स्वीडिश संस्था SIPRI के मुताबिक, भारत को सबसे ज्यादा हथियार रूस निर्यात करता है. लेकिन पिछले एक साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से ही रूस भारत को हथियारों की पर्याप्त डिलीवरी नहीं कर पा रहा है. मार्च में संसदीय समिति ने भारतीय वायु सेना के हवाले से बताया था कि रूस ने इस साल हथियारों की बड़ी खेप डिलीवरी की योजना बनाई थी, लेकिन वो इसे यूक्रेन युद्ध के कारण डिलीवर नहीं कर पाएगा.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने भी बताया था कि वर्तमान में रूस के साथ सबसे बड़ी डील S-400 एयर डिफेंस सिस्टम है. भारत ने रूस से 5.4 अरब डॉलर में 5 एयर डिफेंस सिस्टम की डील की थी लेकिन अभी तक तीन ही डिलीवर हो पाई हैं. ऐसे में भारत हथियारों के लिए रूस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है.
जर्मनी और भारत संयुक्त रूप से बनाएंगे डीजल संचालित पनडुब्बी (diesel submarine)
इस डील से जुड़े लोगों का कहना है कि भारत और जर्मनी के बीच छह पनडुब्बियों के निर्माण के लिए 5.2 अरब डॉलर की अनुमानित राशि में समझौता होने की संभावना है. इस पनडुब्बी का निर्माण संयुक्त रूप से जर्मनी की थाइसेनक्रुप एजी (Thyssenkrupp AG’s marine arm) की समुद्री शाखा कंपनी और भारत की मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स करेगी.
जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरिसय मंगलवार को दो दिवसीय दौरे पर भारत पहुंचे हैं. दोनों देशों के प्रमुख अधिकारियों ने कहा है कि इसी दौरान इस समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे. जर्मनी के रक्षा मंत्री ने भी जर्मनी की सरकारी न्यूज प्रसारक ARD से बात करते हुए कहा है कि बुधवार को जब वह मुंबई जाएंगे तो यह सौदा मुख्य एजेंडे में होगा.
इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि इस डील में उनकी भूमिका भारतीय और जर्मन अधिकारियों के बीच बातचीत में मदद करने की है. यह समझौता न केवल भारतीय और जर्मन उद्योग के लिए बल्कि भारत-जर्मन रणनीतिक साझेदारी के लिए भी एक बड़ा और महत्वपूर्ण समझौता होगा.
हालांकि, भारतीय रक्षा मंत्रालय और मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स ने इस डील को लेकर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है. जर्मन रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता और थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (Thyssenkrupp Marine Systems) के प्रतिनिधि ने भी इस डील पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है.
Had fruitful discussions with the German Defence Minister, Mr Boris Pistorius. His passion for Yoga is commendable.
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) June 6, 2023
We discussed regional issues and our shared priorities. We also agreed to further strengthen defence co-operation between India & Germany. pic.twitter.com/W5ouqtOvIq
दो साल पहले जर्मनी ने नहीं दिखाई थी दिलचस्पी
दो साल पहले भारत ने जब टेंडर अनाउंस किया था तब जर्मनी की Kiel स्थित रक्षा निर्माण कंपनी ने भारत में संयुक्त रूप से पनडुब्बियों के निर्माण में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. लेकिन यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद चीन रूस के साथ संबंध बेहतर कर यूरोप में अपनी धाक जमाने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिम में चीन की बढ़ती कूटनीतिक और सैन्य मुखरता का मुकाबला करने के लिए जर्मनी भारत से बेहतर संबंध बनाने की कोशिश कर रहा है.
जर्मन न्यूज नेटवर्क डीडब्ल्यू के अनुसार, फरवरी 2023 की शुरुआत में जर्मन सरकार ने भारत के लिए ही हथियार निर्यात पॉलिसी में बदलाव किया है. इस बदलाव से जर्मनी भारत को आसानी से हथियार सप्लाई कर सकता है. जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्ज का कहना है, "हम चाहते हैं कि जर्मन और यूरोपीय रक्षा कंपनियां भारत को रक्षा क्षेत्र में रूस पर निर्भरता कम करने में मदद करे. यूरोपीय देश भारत को आधुनिक सैन्य हथियार प्रदान करने के अपने प्रयासों को आगे बढ़ाएं."
भारत के साथ क्वाड ग्रुप में शामिल अन्य देश जैसे जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी समेत अन्य यूरोपीय देशों को भारत के साथ पनडुब्बियों के निर्माण के लिए टेक्नोलॉजी साझा करने पर जोर दे रहा है. हालांकि, रूस के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी और स्थानीय मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और रोजगार सृजित करने की नीति 'मेक इन इंडिया' के कारण यूरोपीय देश भारत के साथ टेक्नोलॉजी साझा करने से हिचकते हैं.
जर्मन की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स ही क्यों?
संयुक्त रूप से डीजल संचालित हमला करने वाली पनडुब्बियों के निर्माण के लिए भारत ने मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स और लार्सन एंड टुब्रो को शॉर्टलिस्ट किया. वहीं, जर्मनी ने रक्षा कंपनी थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स को शॉर्टलिस्ट किया. थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स विश्व स्तर की उन दो कंपनियों में से एक है, जिसके पास Air Independent Propulsion यानी वायु स्वतंत्र प्रणोदन है.
वायु स्वतंत्र प्रणोदन एक ऐसी तकनीक है जो पारंपरिक पनडुब्बियों को लंबे समय तक पानी के नीचे रहने में मदद करती है. इसके अलावा भारतीय नौसेना द्वारा अतीत में थिसेनक्रुप निर्मित पनडुब्बियों का उपयोग किया जाता रहा है. यही कारण है कि भारत ने दक्षिण कोरियाई कंपनी Daewoo और स्पनिश कंपनी Navantia group के ऊपर इसे तरजीह दी है.
भारत के लिए पनडुब्बी कितना महत्वपूर्ण
पड़ोसी देश चीन के साथ सीमा विवाद और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की दखल को नियंत्रित करने के लिए भारत रूस से आधुनिक हथियार खरीदता है. लेकिन यूक्रेन युद्ध और आर्थिक प्रतिबंध के कारण भारत रूस से खरीद रहे हथियारों का भुगतान नहीं कर पा रहा है. इस वजह से रूस से हथियार की डिलीवरी रुक गई है.
भारत के लिए पनडुब्बी बहुत जरूरी है क्योंकि भारतीय सेना में पहले से मौजूद पनडुब्बियां पुरानी हो चुकी हैं. हिंद महासागर में प्रभावी रूप से गश्त करने और चीनी हलचल पर नजर बनाए रखने के लिए भारतीय नौसेना को कम से कम 24 पारंपरिक पनडुब्बियों की जरूरत है, लेकिन फिलहाल भारत के पास 16 पनडुब्बियां ही हैं. इस 16 में से भी छह को छोड़कर बाकी पनडुब्बियां 30 साल से अधिक पुरानी हो चुकी हैं और अगले कुछ सालों में इनकी भी डिकमीशन्ड (सेवामुक्त) होने की संभावना है.