स्वयंसेवी पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस ने रविवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन पर 196 देशों का साथ आना, मानवजाति का एक साझा मामले में एक साथ आना है. लेकिन, साथ ही चेताया भी कि अभी भी ऐसी कई बड़ी खाली जगहें हैं जिन्हें भरे जाने की जरूरत है.
ग्रीनपीस के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी निदेशक कुमी नायडू ने एक बयान में कहा, 'मानवजाति आज एक साझा मामले में एक साथ आई है. लेकिन, यही वह बात है जिसका सम्मेलन के समापन के बाद कोई अर्थ है. पेरिस समझौता एक लंबी यात्रा पर एक कदम भर है और इसके ऐसे हिस्से हैं जो मुझे परेशान और निराश कर रहे हैं, लेकिन फिर भी यह आगे बढ़ना है.'
उन्होंने कहा कि यह करार अपने आप हमें उस गड्ढे से बाहर नहीं निकालेगा जिसमें हम फंसे हैं. लेकिन, इसकी वजह से गड्ढे के किनारे की ऊंचाई कम हुई है.
पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में शनिवार शाम पेश समझौते के प्रारूप को 196 देशों के प्रतिनिधियों ने स्वीकार कर लिया. जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया के इस पहले सार्वभौमिक समझौते का उद्देश्य धरती के बढ़ते तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है. विकासशील देशों की मदद के लिए 100 अरब डालर के हरित कोष बनाने की कार्ययोजना भी बनी है.
नायडू ने कहा, 'समझौता बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री तक लाने का लक्ष्य दे रहा है लेकिन वार्ता में उत्सर्जन का लक्ष्य 3 डिग्री तक जा रहा है. यह एक बड़ी समस्या है, लेकिन फिर भी एक समाधान हुआ है.'
नायडू ने कहा कि पेरिस करार में केवल अक्षय ऊर्जा का जिक्र है. इस करार में कई बड़ी खाली जगहें लेकिन इसे स्वच्छ ऊर्जा से भरा जा सकता है.
उन्होंने कहा, 'अक्षय ऊर्जा और बढ़ते तापमान के बीच हम दौड़ में फंसे हैं. पेरिस समझौता अक्षय ऊर्जा को बड़ी बढ़त दे सकता है. पर्यावरण पर कार्रवाई का चक्का देरी से घूमता है लेकिन पेरिस में यह घूमा.'
नायडू ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अब तक हुई मौतों के कारण यह समय जश्न मनाने का नहीं है. यह समय अविलंब कार्रवाई का है.
उन्होंने कहा, 'सरकारें अपने अल्पकालिक लक्ष्यों को फिर से तय करें, अक्षय ऊर्जा पर तेजी से काम करें, जीवाश्म ईंधन को समर्थन देना तुरंत बंद करें और 2020 तक वनों की कटाई को पूरी तरह से रोक दें.'
ग्रीनपीस ने भारत के सौर ऊर्जा गठबंधन और अफ्रीका की अक्षय ऊर्जा जैसी पहलों का स्वागत किया है.
इनपुट- IANS