ग्वाटेमाला ने आधिकारिक तौर पर अपने दूतावास को तेल अवीव से यरूशलम ले गया. अमेरिका के बाद ग्वाटेमाला यरूशलम में अपने दूतावास को ले जाने वाला दूसरा देश बन गया है.
माना जाता है कि अमेरिका में एक बड़ा वर्ग इस्राइल की मान्यता का हिमायती है, इसलिए ट्रंप ने यरूशलम दूतावास अधिनियम 1995 के उस कानून के तहत फैसला लिया जिसके मुताबिक अमेरिका का इस्राइली दूतावास यरूशलम में होना चाहिए. पिछले महीने इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा था कि अमेरिका के अलावा और भी देश अपना दूतावास यरूशलम ले जाने को लेकर विचार कर रहे हैं.
यरूशलम पर आखिर इतना विवाद क्यों?
आपको बता दें कि ये विवाद सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि धार्मिक भी है. यहां विवाद असल रूप से शहर के ईस्ट हिस्से को लेकर है जहां पर यरूशलम के सबसे महत्वपूर्ण यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धार्मिक स्थल बने हैं. लेकिन इस्राइली सरकार पूरे यरूशलम को अपना हिस्सा मानती है. वहीं दूसरी तरफ फिलिस्तीन के लोग चाहते हैं कि जब भी फिलिस्तीन एक अलग देश बने तो ईस्ट यरूशलम ही उनकी राजधानी हो.
ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति मोरेल्स ने फेसबुक के जरिये बताया कि उन्होंने इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से बात करने के बाद दूतावास को यरूशलम ले जाने का फैसला लिया है. सोमवार को गाजा बॉर्डर पर इस्राइली सैनिकों ने दर्जनों फिलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों को गोली मार दी जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन द्वारा यरूशलम में अमेरिकी दूतावास के इज़राइल में उद्घाटन हुआ.